Saturday, September 26, 2009

बाघ घट रहे हैं



बाघ घट रहे हैं ये लोगों के लिये बड़ी चिन्ता का विषय है। अखबारों में संपादकीय लिखे जा रहे हैं। टी वी चैनल में सुंदर और सुंदरियां विलाप कर रही हैं और बाघोें के माता पिताओं को कोस रही हैं कि आप लोग परिवार नियोजन को इतनी गंभीरता से क्यों ले रहे हैं। वो मनुष्यों के लिये चलाया जा रहा है। आप लोग अपने ऊपर क्यों ले रहे हैं। मनुष्य पशु बन रहा है। ये चिन्ता का विषय नहीं है। पशु मनुष्य बन रहा है। ये चिन्ता का विषय है। यदि सभी बाघ भेड़िये मनुष्य हो गये तो मनुष्यों का क्या होगा। वे कहां जायेंगे।
मनुष्य इस मुगालते में बरसों से रहा है कि वह पशुओं से श्रेष्ठ है। आज तक कभी किसी पशु ने चुनौती नहीं दी कि मनुष्य तू हमसे श्रेष्ठ नहीं है। किसी वाद विवाद प्रतियोगिता में आजतक कोई पशु नहीं आया। मनुष्य अविजेय है। हर आदमी दूसरे आदमी को पशु कहता है पर कोई पशु किसी दूसरे पशु को मनुष्य नहीं कहता। इसीलिये तो वो पशु है। उसमें मनुष्य का एक भी गुण नहीं है। मार्क ट्वेन ने कहा कि यदि तुम किसी कुत्ते को रोटी दोगे तो वह तुम्हें काटेगा नहीं। आदमी और कुत्ते में यही फर्क है। फिर भी कुत्ते कुत्ते हैं और आदमी आदमी। कुत्ते आदमी नहीं हैं और आदमी कुत्ते नहीं हैं।
बाघ के लिए मनुष्य जाति में कोई इज्जत तो है नहीं। कभी अकेले में मिल जाए तो डर जरूर लगता है। मनुष्यों में डर के कारण इज्जत करने की प्रवृत्ति देख्ी गई है। इस लिहाज से यदि बाघ के लिए कोई इज्जत है तो भी वो कोई बड़ी गर्व की बात नहीं है। आप बाघ से डरते हैं उससे आपको जान का खतरा है इसीलिए आप उसकी इज्जत करते हैं आपको बड़ा खतरा है कि हाय ये बाघ इस दुनिया में नहीं रहेगा तो हम किससे डरेंगे।
बाघ के डरावनेपन में भी एक खूबसूरती तो है इसीलिए हम बाघ को बहुत सुंदर जानवर मानते हैं और उससे डरते हैं। मुहल्ले में कोई गुंडा रहता है तो उसे गुंडा नहीं कहते। उसे बड़े भाई कहते हैं। उसकी इज्जत करते हैं। और उसकी चिरौरी करते हैं। उसे निरंतर आभास दिलाते रहते हैं हम उसकी इज्जत करते हैं। वो भी समझता है कि ये मेरी इज्जत नहीं करते ये मुझसे डरते हैं। गुंडा मुहल्ले का बाध है और बाघ जंगल का गंुडा है। जैसे मुहल्ले में गुंडा नहीं होता तो मुहल्ला सूना लगता है वैसे जंगल में बाघ न रहे तो जंगल जंगल नहीं लगता।
इस जंगल के गंुडे के घटने से देश चिन्तित है। ये बाघ घट न पायें इसके लिए खास जंगल बनाये गये हैं। ये बाघ मर न पायें इसीलिये जंगल महकमा तैनात है जो दिन रात इनकी रक्षा में लगा है। इस महकमे में बड़े और छोटे तरह तरह के साहब हैं जो टी ए, डी ए, भोपाल, तबादला, इन्क्वायरी, चार्जशीट, साहब की विजिट, रेस्ट हाउस, सस्पेंशन, डांट डपट, ब्लड प्रेशर, डायबिटिज, बैडमिंटन, योगा, रामदेव, रविशंकर, इत्यादि के बीच बाघों की रक्षा का दायित्व सम्हाले हंै। वो लगातार इनकी आबादी बढ़ाने के लिए तरह तरह के तरीके अपना रहा है। हर रोज बाघ लाइन हाजिर होते हैं और अपनी गिनती करवाते हैं। वो निगरानी में रहते हैं। ये सब चल रहा था तभी किसी विघ्न संतोषी ने खबर फैला दी है कि पन्ना टाइगर रिजर्व में तो एक भी टाइगर नही है। एक भी यानी एक भी टाइगर नहीं है। तो टाइगर रिजर्व क्या है और उसमें तैनात लोग किसको रिजर्व कर रहे हैं। जंगल के जंगली अधिकारियों ने आश्चर्य प्रकट किया । आश्चर्य तो उन्हें भी नहीं हुआ पर उनने आश्चर्यचकित होने का लगभग विश्वसनीय अभिनय किया। साहबों की बैठकें हुईं। बैठकों में वनमंत्री ने बाघों के विलुप्त हो जाने पर चिन्ता प्रकट की। गुस्सा प्रकट किया कि जंगल केवल लकड़ी चोरी और आदिवासियों को बेदखल करने के लिए नहीं है। वरन् उनका एक और उपयोग है कि वहां बाघ को रोके रखना है। बाघ की जगह जंगल में है। बाघ जंगल मंे रहे शहर न आने पाये। यदि बाघ शहरों में रहने लगे तो मनुष्यों का रहना दूभर हो जायेगा। अस्तु बाघ भले मर जाये पर शहर न आने पाये। शहरों में हम मनुष्य रहते हैं। हम भी पहले जंगलों में रहते थे। बाघ के गले में हाथ डालकर घूमते थे। वो भी क्या दिन थे। अब तो सिर्फ याद बाकी है। उस याद को अब याद रहने दो। उसकी याद न दिलाओ। बाघ मरे या जिये उसके कारण हम न मरें। मंत्री जी के वचनों का पालन हुआ। कुछ तबादले हुए। कुछ लाइन अटैच हुए। फिर सब कुछ सब कोई भूल गये।
.............................................सुखनवर
अंदाज़े बयां और apnikahi.blogspot.com