Sunday, November 29, 2009

शेर कुत्ते बने

शेर कुत्ते बने
शेर कुत्तों के समान लड़ रहे हैं। एक दूसरे पर भोंक रहे हैं और जिस तिस को काटने को दौड़ रहे हैं। शेर चुनाव हार चुका है। शेर का भतीजा भी चुनाव हार चुका है। पर वो गर्व से फूल कर फटा जा रहा है। मीडिया ने उसे ऐसा हीरो बनाया जैसे उसकी सरकार बन गई हो। 13 सीटें जीतकर वो ऐंठ रहा है। जिनने सैकड़ों सीटें जीतीं और जो सरकार बना रहे हैं या बिगाड़ रहे हैं उनकी कोई पूछ नहीं है। जिनने शेर की पूंछ मरोड़ी उसकी पूछ है।
मीडिया के युवा उत्साही बता रहे हैं कि पिछले चालीस सालों से शेर का एकछत्र राज्य है। पहली बार यह छिन्न भिन्न हुआ है। ये एक छत्र राज्य कैसा है ? ये छत्रपति कहां से शेर बन गये ? ये मुम्बई के कपड़ा मजदूरों के विशाल और अजेय संगठन को तोड़ने के पैदा किये गये गंुडे थे। उस समय टेªड यूनियन का जमाना था। बम्बई से कामरेड एस ए डांगे ने अधिकतम मतों से संासद बनने का रिकार्ड बनाया था। बम्बई का कपड़ा मजदूर अपने हितों के लिये भी लड़ा और अंग्रेजों के खिलाफ भी लड़ा। ऐसे कपड़ा मिल मजदूर आंदोलन को तोड़ना था। इसके लिये बहुत कमीने आंदोलन की जरूरत थी। मुम्बई मराठियों की, दक्षिण भारतीयों को मारो, कपड़ा मिल मजदूरों के नेताओं की हत्या कर दो, कपड़ा मिल मजदूरों के आंदोलन को तोड़ो, कपड़ा मिल मालिकों से पैसा उलीचो और उनका काम करो इसके लिये शिवसेना बनाई गई थी। इसीलिये ये चुनाव नहीं लड़ती थी। जिनने बनवाई थी उनके खिलाफ ये चुनाव कैसे लड़ते ? आज भी इनका यही काम है। दुकानें, मकान जमीन खाली कराना, उनपर कब्जा करना, हर सौदे में कमीशन खाना। ये पवित्र राष्ट्रवादी कार्य ये करते हैं। ये अपनी मांद में घुसे बैठे रहते हैं। वहीं से दहाड़ते रहते हैं। इनसे डरता कौन है ? वो लोग जो सबसे डरते हैं। इनसे भी डरते हैं। सीधे सादे नौकरीपेशा लोग। काम धंधे से लगे लोग। रोजी रोटी कमाने में लगे लोग। जब तक सिर पर न आ जाये तब तक झगड़ा बरकाते हैं। सड़क पर यदि पत्थर पड़ा हो तो बरका कर चले जाते हैं। सामान्य मध्यमवर्गीय आचरण है। इससे मुम्बई के शेरों को ये लगता है कि मुम्बई में वे बहुत लोकप्रिय हैं। मुम्बई में किसी तरह जी रहे हिन्दी प्रदेशों के मजदूरों पर हमला करके ये शूरवीर बनते हैं। ये महाराष्ट्र तो दूर मुम्बई से भी बाहर नहीं निकलते। मुम्बई में बैठकर कश्मीर के उग्रवादियों को चुनौती देते हैं। हम तो उस दिन की राह देख रहे हैं जिस दिन ये शूरवीर श्रीनगर जाकर उग्रवादियों को चुनौती देंगे। मगर ये दिन कभी नहीं आएगा। मुम्बई के चुनाव परिणाम बार बार बताते हैं कि ये वहां चुनाव नहीं जीतते। अपनी गुंडागिरी को ये अपनी लोकप्रियता मानते हैं।
बहुत बार गंुडों डकैतों के गिरोहों में विद्रोह हो जाता है। कोई नौजवान उठ खड़ा होता है और कहता है कि अब मैं गद्दी सम्हालूंगा। अब तुम बूढ़े हो गये हो। जब हम कमाते हैं तो हम ही सरदार बनेंगे। बाल ठाकरे को चुनौती दी उसी के भतीजे ने। उसने कहा मैं सरदार बनूंगा। बाल ठाकरे का कहना था कि सरदार मेरा लड़का बनेगा। भतीजे का कहना था कि गुंडो की सरदारी भला आदमी नहीं कर सकता। उद्धव शरीफ आदमी है। उसके बस का नहीं है नंगों की सरदारी करना। मैं पैदायशी गुंडा हूं। मैं बनूंगा सरदार। बात नहीं मानी गई तो उसने अपना गिरोह अलग बना लिया।
हमारे देश में गंुडो से डरकर उनकी इज्जत करने का पुराना रिवाज है। फिर गुंडों के इलाके में रहने वाले पुलिस की अपेक्षा गुंडों की फीस चुकाना बेहतर समझते हैं। इसीलिये अमिताभ बच्चन भी बाल ठाकरे के घर हो आते हैं। करण जौहर जाकर गुंडे के पंाव पकड़ लेते हैं। भैया हमें धंधा करने दो बदले में अपनी फिरौती ले लो। अशोक चव्हाण कहते हैं कि करण जौहर हमारे पास क्यों नहीं आए। आते तो हम पूरी तरह से रक्षा करते। करण जौहर ही नहीं मुम्बई के बच्चे को भी पता है कि अशोक चव्हाण के भरोसे उनकी कितनी रक्षा होती। जब यूपी के लोग मुम्बई में गली गली हमलों का शिकार हो रहे थे, जब पूना और नासिक में लाइब्रेरी जलाई जा रहीं थीं और लेखक हमलों का शिकार हो रहे थे तब भी यही सरकार थी। इनने कितनी रक्षा की यह सबको पता है।
महाराष्ट्र का खेल पूरे देश को समझ में आ गया। पहले पिटवाओ फिर मरहम लगाओ। पीटने वाला बुरा बनेगा। मरहम लगाने वाला भला कहलायेगा। फिर महाराष्ट्र मंे तो जनता के पास कोई विकल्प भी नहीं था। उसे तो मरहम लगाने वाले को जिताना ही पड़ेगा। पीटने वाले को हराना ही पड़ेगा। मरहम वाले का काम बन गया। ये चुनाव तो निपट गया। अब पांच साल बाद देखेंगे। बहुत क्रू्र और बेशर्म राजनीति है।
-सुखनवर