Wednesday, September 8, 2010

भगवान की होम डिलीवरी

भगवान की होम डिलीवरी
टी वी में विज्ञापन चल रहा है। एक अभिनेता बाबा जी बना है। कह रहा है कि हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त करने का सीधा सादा रास्ता हाथ आ चुका है। आपने आज तक बहुत से विज्ञापन देखे होंगे पर इस विज्ञापन जैसा न देखा होगा। मुझे काफी दिनों से इस विज्ञापन का इंतजार था। जब सब बिक रहा है तो भगवान न बिकें ऐसा कैसे हो सकता है। हमारे देश में राजनेता धर्म की जैसी मार्केटिंग कर रहे हैं उससे ये तय था कि भगवान पर श्रद्धा बिकेगी। बस दाम का इंतजार था। वो भी लग गया। रू 3400 का लाकेट और रू 100 डाकखर्च। भगवान की होम डिलीवरी। रू 3500 दीजिये और सीधे हनुमान जी का रक्षा कवच लगा कर शान से घूमिये। कोई विपत्ति आई तो आपको कुछ नहीं करना है। हनुमान जी को आप एडवांस दे चुके हैं। वो पैसा लेकर दगाबाजी नहीं करेंगे। वो आपकी रक्षा करेंगे। विज्ञापन में काफी उदाहरणों और गवाहों के माध्यम से बताया गया है कि उन्हें कैसे लाभ हुआ। कोई छात्र परीक्षा पास हो गया, कोई शेयर बाजार में डूब गया था उबर गया, कोई की नौकरी खतरे में पड़ गई थी उबर गया सभी रू 3500 खर्च करने पर। ये हमारी भारतीय संस्कृति है। ये हमारे भारतीय संस्कृति के रक्षक हैं। इनकी दृष्टि में भगवान को बेचना कतई गलत नहीं है। धर्म का काम है। आखिर आडवाणी और उनकी पार्टी क्या कर रहे हैं। अभी सोनिया गांधी ने पलटवार किया। वे महाकाल पंहुची और पूजा की। कोई रोक न पाया। अब क्या कहेंगे। विदेशी विधर्मी महिला ने महाकाल की पूजा की तो भारतीय संस्कृति का फायदा हुआ या नुक्सान ।
यदि भगवान का सीधा आशीर्वाद मिल चुका है तो हमें कुछ लाख रक्षा कवच खरीद लेना चाहिये। भारतीय सेना के जो जवान सीमा पर हैं उन सबको ये लाकेट पहनाया जा सकता है। कश्मीर में आतंकवाद से निपटने में भी ये कारगर हो सकता है। गोली बंदूक का कोई झंझट नहीं। वहां से एके 47 चली यहां हनुमान लाकेट से रोक ली। वहां से हैंडग्रेनेड फेंका यहां से लाकेट ने छेका। कभी कभी लगता है कि जब सब लाकेट पहन सकते हैं तो हमारा दुश्मन भी पहन सकता है। तब क्या होगा। भगवान किसकी रक्षा करेंगे ? कुछ ही दिन में सारे आतंकवादी नागपुर मंे आर एस एस कार्यालय के सामने खड़े होकर आत्मसमर्पण कर देंगे। कहंेगे हम सन्यास लेते हैं सुदर्शन जी। जब आप 3500 रू में हमारी लाखों की राइफल बेकार कर देते हैं तो अब हम जी के क्या करेंगे।
सबसे अच्छी बात ये है कि इस लाकेट को सीधे हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त है ये बात बार बार जोर देकर कही जा रही है। इस दावे के पीछे कौन सा प्रमाण है ? पर हमारे देश में प्रमाण और तर्क की कोेई जरूरत नहीं है। एक दिन योजना बनाकर खबर फैला दी जाती है कि गणेश जी दूध पी रहे हैं। लाखों लोग मान लेते हैं। धर्म की राजनीति करने वाले राजनेता खुश होते हैं और इस बात को प्रमाणिक बनाते हैं कि हां गणेश जी दूध पी रहे हैं। पर सचाई पर बात नहीं करते। गणेश जी दूध पी रहे हैं तो पहले क्यों नहीं पी रहे थे और अब उस दिन के बाद से क्यों नहीं पी रहे हैं ? कोई तर्क नही। एक बाबाजी बना अभिनेता अभिनय करते हुए बार बार विश्वास दिला रहा है कि ये लाकेट हनुमान जी से सीधे आशीर्वाद प्राप्त है याने ये बाबा जी का रोज का संपर्क हनुमान जी से है। जितने लाकेट प्रतिदिन बनते हैं हनुमान जी आकर उसे अभिमंत्रित कर देते हैं। पाठकों को याद होगा कि तुलसीदास जी की रामचरितमानस को भगवान ने इसी शैली में अधिकृत किया था। क्या हनुमान जी भी इस बाजार की दुनिया में हिस्सेदार हो गये हैं और लाकेट बेचकर कमाई कर रहे हैं?
एक होता है श्री यंत्र। इसे घर के दरवाजे पर ठोंक लीजिये। बस सारी बाधायें समाप्त। बहुत सस्ता मिलता है। बड़ी श्रद्धा से लोग खरीदते हैं। श्री यंत्र से फायदा न हो तो वास्तु वाले दुकानदार आ जायेंगे। अपना दरवाजा उखड़वा लो। दायें हो तो बायें लगा लो। बायें हो तो पीछे लगा लो। आज कल तो किसी के घर जाओ और घर में मिस्त्री काम करता दिखे तो समझ लीजिये कि वास्तुदोष हो चुका है। वास्तु शास्त्री इस घर में घुस चुका है। वो घर को तुड़वा कर ही रहेगा। इससे लगता है कि अयोध्या के महल में काफी वास्तुदोष रहा होगा। रावण का महल भी काफी वास्तु दोष वाला होगा। सुग्रीव बाली का महल भी वास्तु दोष वाला रहा होगा। उस समय उन लोगों को भी समझ में आ गया होगा पर कुछ कर नहीं पाये। दरअसल इन महलों में जो चीफ इंजीनियर, सुपरवाइजर, चौकीदार वगैरा होते होंगे वो काफी भाग्यशाली रहे होंगे। बिना बाधा के काम करते होंगे क्योंकि उस समय वास्तुशास्त्री नहीं थे।
बहुत आश्चर्य है कि आजकल पी डब्लू डी और प्रधानमंत्री सड़क निर्माण योजना जैसे विभागों में चीफ आफ दी वास्तुशास्त्र, असिस्टेंट वास्तुशास्त्री, जूनियर वास्तुशास्त्री जैसे पद क्यों नहीं बने हैं। अभी जो पुल सड़क खराब निर्माण के कारण टूट जाते हैं वो वास्तु के सिर पर थोपे जा सकते हैं। जैसे पुल की दिशा गलत थी। सड़क पीली मिट्टी पर बनी थी। इसे काली मिट्टी पर बनाते और उपर से गोबर लीप देते तो सड़क पचास साल चलती। ..................................................सुखनवर