Tuesday, June 28, 2011

भगवा भगोड़ा

बाबा जी मन्ने तो ये बताओ कि तुम भागे क्यों ?
अरे भगते नहीं तो क्या करते ? हमें क्या मालूम था कि आंदोलन करने में पुलिस के डंडे खाने पड़ेंगे। रात को बढ़िया सो रहा था। पुलिस आ गई। बोली चलो उठो। धारा 144 लगा दी है। भगो यहां से। उठाओ बोरिया बिस्तरा। मैंने चारों ओर देखा। आस पास कोई नहीं। बालकृष्ण का भी पता नहीं। जो लोग दिनभर मुझे चढ़ाते रहे वो सब गायब। दिन भर तो कहते रहे बाबा और गाली दो, सरकार से कोई समझौता नहीं करना। अनशन जारी रखना है। सत्याग्रह से अपन सरकार पलट देंगे। रात को सारे गायब। अब मुझे तो काटो तो खून नहीं। जो पुलिस अपने को बाबा जी बाबा जी कहती पीछे पीछे घूमती थी वो लठ्ठ फटकार रही थी। मैं भगा मंच पर आया तो काफी लोग दिखे तो मैंने सोचा इनके बीच घुस जाऊं। मैं मंच के किनारे गया तो किसी ने जोर से धक्का दिया तो मैं मंच के नीचे आ गया। अब तो मुझे खयाल ही नहीं रहा कि मैं रामदेव हूं। मुझे तो बस ये लगा कि मेरे पीछे पुलिस लगी है। मुझे भगना है। मैं भागा। इतने दिनों से योग कर रहा हंू पर सब बेकार। घबराहट के मारे बुरा हाल।
अरे जे सब तो ठीक है पर औरतों के कपड़े क्यों पहन लिये ?
अरे वही तो बता रहा हूं। ये पुलिस का प्रपंच बहुत बुरा है। पूरे पंडाल मंे हल्ला हो रहा था। बाबा कहां हैं कहां है बाबा। सामने माताएं बहनें दिखीं तो मैं जल्दी से जाकर उनके बीच में छुप गया। महिलाओं से मेरी घबराहट देखी नहीं गई। उनने घेरा बना लिया और कहने लगीं बाबा घबराओ मत आप तो हमारे कपड़े पहन लो और हमारे साथ भग चलो। मैंने भी लुंगी फंेकी और सलवार कुर्ता पहना और माताओं बहनों के बीच छुप कर भागा और पास में एक पुल था उसके नीचे छुपा रहा।
अरे पर मन्ने तो ये बताओ कि तुम तो इतने बड़े योगी ठहरे औरतों के कपड़े पहनकर भगते तुम्हें शर्म न आई ?
अरे तू शर्म की बात करता है। अरे यहां जान पर बनी हुई थी। तू तो औरतों के कपड़े की बात करता है मैं तो बिना कपड़ों के भी भाग जाता। मुझे क्या मालूम कि आंदोलन करने में ऐसा होता है। चार चार मंत्री एयरपोर्ट पर लेने आते हैं और फिर पुलिस से पिटवाते हैं। इतना छुपकर भागा फिर भी पुलिस वालों ने पकड़ लिया। साले बहुत बदमाश होते हैं। उनने कहा ये लंबी दाढ़ी वाली औरत कौन है। बस फिर क्या था। मुझे उठाया और जहाज में रखा और हरिद्वार पंहुचा दिया।
अरे पर तेरे चेहरे पर बारा क्यों बजे हुए थे ?
मैं राजनीति करने गया और राजनीति का शिकार हो गया। ये भगवा राजनीति वालों ने मुझे निपटा दिया। मैं सोच रहा था कि मैं योग और राजनीति को मिलाकर कर राष्ट्र का निर्माण करूंगा पर अब मैं केवल योग के काम का रह गया हूं।
हरिद्वार में आकर तुम्हें अनशन करने की क्या सूझी ?
अरे मुझे क्या सूझी साले इन भगवा वालों की जय हो कहने लगे बाबा तुम तो आमरण अनशन करो। ये साले मुझे गाइड का देवानंद बनाना चाह रहे थे। यदि मैं अपनी अकल न लगाता तो इनके चक्कर में तो मर ही जाता। तीन दिनों में ही सर चकराने लगा। मैंने तो तुरंत कहा भैया कोई बहाना बनाओ और मेरा ये अनशन निपटाओ नहीं तो मैं निपट जाउंगा। पूरा धंधा चौपट हो जाएगा। किसी तरह अनशन तोड़ा तो जान बची।
अब आगे क्या करने का इरादा है ?
बड़े लोगों ने कहा है कि धंधे वाले को राजनीति में नहीं पड़ना चाहिये। तो अपन तो अपना धंधा देखेंगे। योग सिखायंेगे। फीस लेंगे। दवाई बेचेंगे दाम लेंगे। स्कूल कालेज विश्वविद्यालय खोल लिए हैं वो चलायेंगे।
जयप्रकाश जी ने जब राजनीति छोड़ी तो उन्हें लाल भगोड़ा कहा जाता था आपको क्या कहा जाएगा ?
भगवा भगोड़ा।

Thursday, June 9, 2011

मि. भ्रष्टाचार

मि. भ्रष्टाचार आत्मविश्वास से भरे हुए थे जब मैंने पूछा
प्रश्न: आप इस समय बहुत चर्चा में हैं। कैसा लग रहा है ?
उत्तर: चर्चा में रहूं न रहूं मेरा अस्तित्व सनातन है। मैं कण कण में व्याप्त हूं। मैं हर खाये पिये के दिल में बसता हूं। वो सब मुझे हृदय से चाहते हैं’
प्रश्न:आपका मतलब गरीब अमीर सभी भ्रष्टाचारी हैं ?
उत्तर: जिनके पास खाने को नहीं है वो कैसे भ्रष्टाचार करेंगे। उनके लिये तो भुखमरी और ईमानदारी ही बची है। उनके पास बेईमान होने का अवसर ही कहां है ? जिनके पास है वो कोई मौका नहीं छोड़ते। बहुत ज्यादा लोग ऐसे हैं जो जीवन भर भ्रष्ट होने के लिए तैयार बैठे रहे पर मौका ही नहीं मिला। ये दूसरे तरह के ईमानदार हैं। ये काफी जोर से बोलते हैं।’
प्रश्न:अभी रामलीला मैदान में हजारों लोग जमा हुए आपकी इतनी मिट्टी पलीद की। आपको डर नहीं लगा ?
उत्तर: जो लोग जमा हुए उन्हें पता ही नहीं था कि वे किस लिए जमा किए गए हैं। जब कारसेवक अयोध्या जा रहे थे तो क्या उन्हें पता था कि वे क्यों जा रहे हैं ? जो ले जा रहे थे उन्हें पता था कि इनसे क्या करवाना है। उनने करवाया और आज तक उसी की दाल रोटी खा रहे हैं। रामलीला मैदान में तो सरकार की सावधानी ने सारा खेल ही बिगाड़ दिया। रामलीला मैदान में आग से या भगदड़ से या विस्फोट से या किसी और नायाब तरीके से सौ दो सौ लोग मर जाते तो कहा जाता कि इस भ्रष्टाचारी सरकार ने ये करवाया। देश भर में इतना खराब माहौल हो जाता कि सरकार तो गिर ही जाती देश कहां जाता इसकी कल्पना की जा सकती है। लेकिन इस बार सरकार ने वो मूर्खता नहीं की जो नरसिंह राव सरकार ने की थी। रातों रात एक्शन लेकर सारी योजना का सत्यानाश कर दिया। इसीलिए तो भगवा पार्टी चोट खाए सांप की तरह बर्ताव कर रहीं है। सारा दर्द उसी को है। बाबा बौरा गए हैं कभी कुछ बोलते हैं कभी कुछ। रोज नई पोल खुल रही है। संघ को खुलकर सामने आना पड़ा। सारे भ्रम टूट रहे हैं।
प्रश्न:भ्रष्टाचार जी आपका भाई काला धन तो संकट में है। मजे से स्विट्जरलैंड में ठंडी आबोहबा में रह रहा था। उसे अब भारत की गर्मी सहन करना पड़ेगी। सरकार भी उसे वहां से लाने को तैयार है।
उत्तर: पुराने जमाने में एक महान राजा हर्ष हुए थे। उनकी खासियत ये थी कि वो हर दो चार साल में अपना पूरा धन जनता को बांट देते थे। पाठ्य पुस्तकों में ये तो लिखा है पर ये नहीं लिखा कि हर दो चार साल में उनके पास फिर धन कैसे इकठ्ठा हो जाता था। आदमी दस लाख कमाता है और एक लाख की घोषणा करता है। काला धन इस तरह से बनता है। काला धन का उत्पादन रोकने की इच्छा या ताकत या अक्ल इन बाबाओं में तो नहीं है। कालाधन तो अंधों का हाथी है। हर कोई अपनी औकात के मुताबिक नाप रहा है।’
प्रश्न:क्या मतलब ?
उत्तर: सामान्य आदमी से पुलिस वाला दस रूपये ले लेता है तो उसके लिए वो भ्रष्टाचार है। बड़े कार्पोरेट से बड़ा अधिकारी या मंत्री करोड़ो ले लेता है तो उसके लिए वो भ्रष्टाचार है। सामान्य आदमी आम सभा में गुस्सा निकालता है। कार्पोरेट पांच सितारा होटल में बैठकर गुस्सा निकालता है। अपने अपने भ्रष्टाचार हैं। अपना भ्रष्ट आचरण आदमी नहीं देखता। दूसरे का देखता है। इसीलिए में हूं और रहूंगा।..............................................................सुखनवर

Wednesday, June 1, 2011

तर्क तिरोहित

प बंगाल में वाम मोर्चा हार गया। ममता बैनर्जी जीत गईं। चुनाव से जीतीं। कहा गया कि पहली बार प बंगाल के मतदाता को निष्पक्ष मतदान का मौका मिला। कहा गया कि चौंतीस साल पुराने कुशासन का अंत हुआ। समझ में नहीं आ रहा क्या बंगाल में चौंतीस साल के बाद चुनाव हुए हैं ? पिछले चुनाव किसने कराए थे ? उसी चुनाव आयोग ने जिसने ये चुनाव कराये। चुनाव तो हर पांच साल में होते रहे। यदि गलत चुनाव होते रहे तो जिन्हें शिकायत है चुनाव का बहिष्कार क्यों नहीं करते रहे ? जब एक समय सिद्धार्थ शंकर राय मुख्यमंत्री बने थे तो सी पी एम ने चुनावों में धांधली की शिकायत की थी। पर इसी कारण सी पी एम के जीते हुए विधायक पूरे पांच साल तक विधान सभा में नहीं घुसे। चौंतीस साल के कुशासन की शिकायत करने वाले हर बार चुनाव लड़ते रहे। हारते रहे। यही नहीं सिद्धांतों के इतने पक्के थे कि कांग्रेस को छोड़कर भाजपा से मिलकर भी चुनाव लड़ते रहे। हारते रहे। यदि इस चुनाव में ममता जीतीं तो पिछले चुनाव में ममता हारीं भी तो थीं। यदि इस बार ममता मुक्तिदाता हैं क्योंकि चुनाव जीतीं है तो पिछली बार तक सीपीएम मुक्तिदाता रही क्योंकि वो चुनाव जीतती रही। तो फिर कुशासन 34 साल का कहां रहा, ज्यादा से ज्यादा पांच साल का रहा।
ज्यादा समय सत्ता में रहने पर आत्मविश्वास बढ़ जाता है। मध्यप्रदेश में जब दिग्विजय सिंह दूसरी बार चुनाव लड़ रहे थे तो उनका प्रसिद्ध इंटरव्यू आया था। चुनाव लड़े नहीं जाते मैनेज किये जाते हैं। सी पी एम को तो पिछले तीन सालों से लगातार चुनाव हारने के संकेत मिल चुके थे। दरअसल सी पी एम ने कांग्रेस और भाजपा से कुछ नहीं सीखा। इनकी सरकारों में हर कुछ दिन में मुख्यमंत्री बदल दिया जाता है। जनता की शिकायत दूर हो जाती है। ये अपने ही अंदर विरोध का निपटारा कर देते हैं। सी पी एम ने यदि साल भर पहले बुद्धदेव दासगुप्ता को बदल दिया होता तो तृणमूल का तीन चौथाई विरोध फुस्स हो जाता। ममता बैनर्जी की जगह सी पी एम वाले खुद ही बुद्धदेव को गरियाने लगते। अपनों को गरियाने में तो ये लोग उस्ताद हैं ही फिर ममता किसे क्या कहतीं। ये दसियों साल से आजमाया हुआ नुस्खा है।
पर सी पी एम के निर्णयों पर क्या कहा जाए ? इनके विचारपूर्ण निर्णय की वजह से देश को देवगौड़ा जी जैसा प्रधानमंत्री मिला। लालू मुलायम शरद तीनों यादव एक बात में एकमत थे कि हम एकदूसरे में से किसी को प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे। ज्योति बसु के नाम पर सभी सहमत थे। पर सी पी एम ने कहा कि हम देश पर राज नहीं करेंगे। हम संघर्ष करेंगे। ज्योति बसु प्रधानमंत्री नहीं बने। देवगौड़ा देश पर लद गये। सोमनाथ चटर्जी को पार्टी अनुशासन का हंटर मारकर पार्टी से निकाल दिया। कोई तर्क नहीं। तर्क तिरोहित।
इस देश की जनता को अभी भी समझ नहीं आ रहा है कि इस देश में इतनी सारी कम्युनिष्ट पार्टियां क्यों हैं ? एटक और सिटू क्यों हैं ? जनवादी लेखक संघ और प्रगतिशील लेखक संघ क्यों हैं ? ए आई एस एफ और एस एफ आई क्यों हैं ? इनमें क्या सैद्धांतिक मतभेद हैं ? क्यों हर महत्वपूर्ण मौके पर ये पार्टियां गलत निर्णय लेती हैं ? क्यों माफी मांगती हैं ? क्यांे कहती हैं कि गलती हो गई। यदि आपको सत्ता में नहीं रहना है और देश को चलाने की औकात आप में नहीं है तो जनता आपको क्यों चुने ?
राज्य सरकार हो या नगर पालिका इन्हें दलाल और ठेकेदार चलाते हैं। इन्हीं के माध्यम से सारे काम होते हैं चाहे तबादले हों या निर्माण कार्य। इसीलिए राज्य सरकार बदलने का मतलब दलालों और ठेकेदारों की शिफ्टिंग। 34 सालों से जमे हुए संबंध ढ़ीले होंगे फिर टूटेंगे। फिर नए बनेंगे। पांच साल तो लग जाएंगे। तब तक में सी पी एम में भी सफाई हो जाएगी। सी पी एम में बचे हुए असली कार्यकर्ता फिर से पानी के ऊपर निकल आएंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि सी पी एम फिर सत्ता में आ जाए। या न भी आए। यही जयललिता जब पिछला चुनाव हारीं थीं तो इनकी केवल दो सीट बची थीं। इनने अपने गोद लिए पुत्र की शादी करोड़ों रूपये खर्च करके की थी। उसी के बाद हुए चुनाव में इन्हीं भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ सत्ता से बाहर हुईं थीं। जनता के पास विकल्प क्या है ? नागनाथ सांपनाथ में से एक को चुनना है। तर्क तो है ही नहीं। तर्क तिरोहित। .....................सुखनवर