Wednesday, August 24, 2011

सपना

अरे ये क्या हो रहा है भाई। वकील लोग हड़ताल पर हैं। क्यों हैं हड़ताल पर। कह रहे हैं अब हम अन्ना के साथ हैं। अब हम भ्रष्टाचारियों के मुकदमे नहीं लड़ेंगे। और तो और ये जो अदालतों में बैठे बाबू लोग खुले आम रिश्वत लेते हैं उन्होंने भी कह दिया है कि अब हम देश के लिए भूखे मरेंगे और रिश्वत नहीं लेंगे। वो लेंगे कैसे जब देने वाले सब देशभक्त हो गए हैं। वो देंगे ही नहीं। वो रिश्वत देने के बजाए अनशन कर देंगे। बाबू घर आ जाएगा और तारीख बढ़ाकर कागज दे जाएगा।
पुलिस वाला खड़ा रहेगा पर किसी रिक्शेवाले से पैसा नहीं झटकेगा। जनता बेखौफ होकर थाने में घुसेगी। उसे मालूम है कि उसकी शिकायत सुनने के बजाए उसे शिकायत करने के जुर्म में अंदर नहीं किया जाएगा। जुआरी जुआ खेलना बंद कर देंगे। सटोरिये सट्टा खिलाना बंद कर देंगे। जब जुआ सट्टा चोरी बंद हो जाएगी तो पुलिस थाने तो मंदिर हो जाएंगे। पुलिस वाले सभी पुजारी हो जाएंगे। हर थाने में वैसे भी मंदिर है ही। उसी में थानेदार साहब का दफतर लग जाएगा। थाने जाएंगे तो पैसे खर्च नहीं होंगे। हर पुलिस वाला अपनी तनखाह में से ही गुजर करेगा। इसे कहते हैं ईमानदारी की कमाई। किसी ने यदि किसी खाकी वर्दी वाले को भ्रष्ट करने की कोशिश की तो आमरण अनशन शुरू कर दिया जाएगा।
कलेक्टोरेट जाइये। आर टी ओ जाइये। पी डब्लू डी जाइये। नगर निगम जाइये। चारों तरफ साधू ही साधू। कोई बेइमान रिश्वतखोर ढूंढे ही नहीं मिल रहा। सब साधू कह रहे हैं बताइये आपका क्या काम है ? आपस में छीना झपटी कर रहे हैं। नहीं हम करेंगे आपका काम। नहीं हम करेंगे आपका काम। खबरदार जो हमें पैसा दिखाने की कोशिश की। आप हमें भ्रष्टाचारी बनाना चाहते हैं। कहां रहते हैं आप। हम आपके घर के सामने आमरण अनशन कर देंगे। हमारे डिपार्ट को बदनाम करने की कोशिश न करें। अब हम देश के लिए काम करेंगे। अब हमें ईमानदारी से काम करने में बिलकुल शर्म नहीं आती।
सड़कें सीमेन्ट से बनने लगीं। उधड़ना बंद हो गयीं। ठेकेदारों ने कमीशन देना बंद कर दिया। इंजीनियरांें ने कमीशन लेना बंद कर दिया। भवन पुल सभी बिलकुल मजबूत। कोई छूट नहीं। ईमानदारी से काम करना होगा। वरना वरना क्या - आमरण अनशन।
स्कूलों में फीस घट गई। बोले जरूरत से ज्यादा फीस नहीं लेंगे। जितना पढ़ायेंगे उतनी ही फीस लेंगे। किताबों और ड्रेस में कमीशन नहीं खायेंगे। बच्चों के मां बाप से अच्छा व्यवहार करेंगे। हर बच्चे को बराबर का समझेंगे। उनके के साथ भेदभाव नहीं करेंगे।
अस्पतालों में डाक्टर केवल नौकरी करेंगे। प्राइवेट प्रेक्टिस नहीं करेंगे। मरीज को अपने घर नहीं बुलायेंगे। अस्पतालों में असली दवाएं मिलेंगी और मरीजों को बाहर से नहीं लेना पड़ंेगी। उल्टी सीधी दवाईयां नहीं लिखी जाएंगी। मरीजों को जबरन अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाएगा। बिना जरूरत आई सी सी यू में भर्ती नहीं किया जाएगा। बेमतलब ऑपरेशन नहीं किया जाएगा। मरीजों ने भी कह दिया कि मेडिकल बिल लेने के लिए अस्पताल में भर्ती नहीं होंगे।
अब कोई लड़की दहेज के कारण बिना शादी के नहीं रह जाएगी। लड़कों के मां बाप ने तय कर लिया है कि अपने लड़कों की शादी में दहेज नहीं लेंगे।
आप हंस रहे हैं ? आप क्यों हंस रहे हैं ? वैसे आप ठीक सोच रहे हैं। आपको अपने आप पर हंसना चाहिए। अन्ना के भरोसे न रहिये। अपने को बदलिये। वरना यूं ही सपना देखिये। ...........................सुखनवर
17 08 2011

ठप्प करने वालों का धर्म


हमारे भाजयुमो के लड़के संसद की तरफ बढ़ रहे थे। कुछ हजार लोग थे। उन्होंने कुछ बेरिकेड तोड़े थे और कुछ पत्थर फेंके थे। वो आगे बढ़ रहे थे। बढ़ते चले जा रहे थे। यदि पुलिस न रोकती तो संसद पर पंहुच जाते। संसद में बहस करने के लिए सांसद तो थे ही। ये क्यों बढ़ रहे थे ? इनके इरादे साफ थे। इनने छुपाए भी नहीं थे। हर पार्टी की युवा शाखा को इसी काम में लगाया जाता है। चढ़ जा बेटा सूली पर भला करेंगे राम। तो युवा अपने काम में लग चुके थे। पुलिस तो पूरे संसद के सत्र के दौरान ही तैयार रहती है। उसने पानी की बंदूक चलाई। फिर लाठियां भांजी। जुलूस तितर बितर हो गया। शाहनवाज खान ने तुरंत चिदंबरम पर आरोप लगाया कि इसी आदमी ने हमारे लड़कों को पुलिस से पिटवाया। बहुत गुस्से में थे। उनने कह दिया कि अब चिदंबरम के स्तीफे के नीचे किसी बात से हम नहीं मानेंगे। उनने अपने स्तीफे की बात नहीं की जबकि लड़कों को पिटने के लिए भेजा तो उन्हीं ने था।
अखबारांे मे छपा और टी वी चैनलों ने खैर अपना आग लगाने का खेल पूरी ताकत से खेला ही कि सबका निशाना सोनिया और शीला हैं। दरअसल आज के समय में कुल मिलाकर भाजपा इस दौरान महिला नेताओं से परेशान है। उत्तर प्रदेश में मायावती नाक में दम किए है। बंगाल में ममता ने दगा दे दिया। अपने ही घर में उमा ने क्या कम कुहराम मचाया। उधर जयललिता घास नहीं डालती। वो अलग से नरेन्द्र मोदी को भर बुला लेती है। जबकि भाजपा की नेता स्वयं महिला हैं।
मगर सारा गुस्सा सोनिया पर क्यों ? शीला पर क्यों ? 2004 में हमारे स्व प्रमोद महाजन जी ने सब सैट कर दिया था। पंडितों ज्योतिषियों से पूछ लिया था। सर्वे करवा लिया था, जीत रहे थे। अरबों रूपये खर्च कर दिये थे। शाइनिंग इंडिया का अभियान चला रखा था। सरकार अपनी थी। जलवा ही कुछ और था। मगर ये सोनिया गांधी ने चुनाव में उतर कर सब कबाड़ा कर दिया। हम कहते रहे । विदेशी महिला है। हिन्दी आती नहीं। भारतीय संस्कृति को जानती नहीं है। विधवा है। मगर क्या बताएं साहब सब किया धरा मिट्टी में मिल गया। अच्छी भली सरकार चल रही थी। समय से पहले चुनाव करवा लिए कि चुनाव तो जीत ही रहे हैं। मगर बैठे ठाले सरकार से बाहर हो गए। अब कहते हैं कि हमारी सरकार इतनी अच्छी थी। लोग पूछते हैं कि फिर हार क्यों गए ?
शीला दीक्षित की कहानी भी सोनिया जी से कुछ कम नहीं है। हर बार चुनाव जीत रही हैं। दिल्ली में मेटो चलना शीला दीक्षित की उपलब्धि मानी जाती है। दिल्ली में कभी भाजपा की सरकार थी ये बात लोग भूल चुके हैं। दिल्ली में इतने अतिक्रमण तोड़े गए। दुकानें और घर तोड़े गए उसके बाद भी लोगों ने शीला दीक्षित को जिताया। शीला दीक्षित और सोनिया जी की खासियत है कि वो मीडिया को घास नहीं डालती। मीडिया के छोकरे अपने ओछे प्रश्नों को लेकर घूमते रहते हैं और वे कार में आगे बढ़ जाती हैं। बहुत बार तो वो डांटती भी हैं कि जाइये रिपोर्ट पढ़ कर आइये फिर बात कीजिए। मीडिया यदि जिम्मेदार हो जाए तो देश का काफी भला हो जाए।
संसद सत्र शुरू हुआ तो घोषित किया गया कि मंहगाई पर घेरेंगे। फिर कहा कि कामनवेल्थ घोटाले पर घेरेंगे। फिर टू जी स्पेक्टम पर घेरेंगे। तीनों पर घेराबंदी होती रही। समय निकल गया। अब वही उदास संसद है। उंघते हुए कुछ गिनेचुने सांसद। उनके बीच में कुछ रूटीन सवाल जवाब। संसद मेें कोई थ्रिल नहीं बचा। अब इंतजार है कि इसी बीच कोई घटना घट जाए तो उसी बहाने कुछ सक्रियता हो जाए।
हर संसद सत्र के पहले अब रणनीति बनती है कि आगामी सत्र में क्या होना है। अब इसे घोषित कर देना चाहिए कि रणनीति इस बात की बनती है कि कैसे कुछ नहीं होने देना है। जब संसद का सत्र नहीं चलता तब मांग होती है कि विशेष सत्र बुलाया जाए। जब सत्र होता है तब उसे ठप्प कर दिया जाता है। दरअसल अब चर्चा करने वाले लोग बचे नहीं हैं। अब ठप्प करने वाले बचे हैं तो अपना धर्म पूरा कर रहे हैं।-------------सुखनवर 12 08 2011

युवा लेखक के बिन मांगे सुझाव

एक युवा कॉलम लेखक चेतन भगत ने भाजपा को पांच बिना मांगे सुझाव दिये हैं। उनमें से एक तो बहुत ही जबरदस्त है। ये सुझाव वैसा ही है जैसे ये सवाल कि क्या आपने चोरी करना छोड़ दिया है ? सुझाव ये है कि भाजपा को एक साफसुथरी भ्रष्टाचार मुक्त पार्टी बनना चाहिए। इसके लिए उसे हर साल दस नेताओं के नाम घोषित करना चाहिए और उन्हें पार्टी से निकाल देना चाहिए। कुछ ही सालों में भाजपा एक नई साफसुथरी पार्टी बन जाएगी। यदि भाजपा इस सुझाव को माने नहीं केवल विचार ही करे तो उसका परिणाम क्या होगा ? पार्टी यह स्वीकार करेगी कि वो भ्रष्ट है। वो इतनी भ्रष्ट है कि उसमें से हर साल दस भ्रष्ट लोगों को नाम घोषित कर निकाला जा सकता है। भ्रष्टों की संख्या इतनी अधिक है। यहां पार्टी की मुश्किल ये है कि लोकायुक्त से लेकर आम जन तक हर कोई कह रहा है कि येदियुररप्पा भ्रष्ट हैं पर उन्हें पार्टी की तो छोड़ो मुख्यमंत्री से तक हटाया नहीं जा पा रहा है। किसी को भ्रष्ट कहना और फिर उस कारण उसे पार्टी से निकालना कितना कठिन होता है ये तो भ्रष्ट ही जानता है। भ्रष्ट की गति भ्रष्ट जाने। और फिर अंतिम फैसला तो अदालत का होता है। अदालत के फैसले के बिना आप किसी को कैसे भ्रष्ट कह सकते हैं। तो ये कहना तो बहुत ही कठिन है कि ये दस लोग भ्रष्ट हैं। आखिर ये निर्णय कौन करेगा कि फलां लोग भ्रष्ट हैं। जो लोग निर्णय करेंगे वो भ्रष्ट नहीं हैं इसका निर्णय कौन करेगा।
फिर भाजपा के ऊपर भी कोई है। वो सर्वशक्तिमान है। हर पार्टी का हाई कमांड है। हाई कमांड के निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती। चाहे कांग्रेस का हो या भाजपा का हो या कम्युनिष्ट पार्टी का। ये हाई कमांड पार्टी हित में जनता से ऊपर होकर सोचता है। पार्टी के शीर्ष नेताओं की बैठककक्ष के पीछे एक अंधेरा बंद कमरा होता है। नेता गण अपना निर्णय लिखकर उस कमरे के अंदर रख देते हैं। थोड़ी देर में हाईकमांड का निर्णय आ जाता है। ये कब क्या निर्णय कर ले। कोई भरोसा नहीं। डी एम के के हाई कमांड के निर्णय के कारण ही आज उसके नेता जेल में हैं।
दूसरा सुझाव और जबरदस्त है। वो ये कि पार्टी अपना प्रधानमंत्री घोषित करे। ये कहने से काम नहीं चलेगा कि हमारे पास बहुत लोग हैं। यदि ये युवा लेखक आडवाणी जी को मिल जाता तो पिट ही जाता। इसे भाजपा के बारे में इतना भी ज्ञान नहीं है और ये भाजपा को सुझाव देने चला है। क्या इसे मालूम नहीं कि पिछले चुनाव में आडवाणी जी बिना जीत की गुंजाइश के स्पेशल मीटिंग बुलाकर अपने आप को प्रधानमंत्री घोषित करवा चुके हैं। फिर सन्यास ले चुके हैं। फिर सन्यासी चोला उतार कर फंेक चुके हैं। वे जबतक हैं तब तक भाजपा में कोई प्रधानमंत्री बनने की सोच भी नहीं सकता। और फिर टीम में दस लोग दौड़ रहे हैं और आप दौड़ को बीच में रोक के एक को फर्स्ट कह दोगे तो बाकी लोग काहे को दौड़ेगे ? ये तो खेल भावना के विपरीत है। जब तक नाम घोषित नहीं है तब तक हर किसी के मन में आस है। आज नाम घोषित हो जाएगा तो बाकी लोग कहेंगे कि भैया आप को प्रधानमंत्री बनना है तो आप मेहनत करो जिता लो चुनाव।
चेतन भगत ने ये सुझाव भाजपा को ही क्यों दिये गये हैं ? दरअसल चेतन भगत को भाजपा से बहुत आशाएं हैं। उन्हें लगता है कि भाजपा में एक आदर्श दक्षिणपंथी पार्टी होने के पूरे गुण हैं। यदि भाजपा रिपब्लिकन पार्टी या डेमोक्रेटिक पार्टी टाइप की कोई पार्टी हो जाए तो देश को अमेरिका बनने से कौन रोक सकता है। वैसे भी मेरा भारत महान। आखिर हम इस देश में क्यों रह रहे हैं ? अमेरिका क्यों नहीं जा रहे। ताकि एक दिन ये देश अमेरिका हो जाए। बाजू में चीन भी अमेरिका बनने में लगा हुआ है। चारों तरफ दुनिया के देश अमेरिका बनने में लगे हुए हैं। हमारे देश में समस्या ये है कि पंथ का कोई झगड़ा नहीं है। नीतियों में कोई मतभेद नहीं है। इसलिए मतभेद के मुद्दे हैं परिवारवाद, सोनिया गंाधी, राहुल गांधी बस। इससे ज्यादा कुछ नहीं। दिक्कत ये कि ये मुद्दे नहीं हैं व्यक्ति हैं। और कांग्रेस को चुनाव जिता ले जाते हैं। .........................सुखनवर 29 07 2011