Wednesday, September 14, 2011

सन्यासी की बारात उर्फ आडवाणी की रथयात्रा

भाइयो,
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि आज का हमारा यह प्रशिक्षण वर्ग तब आरंभ हो रहा है जबकि आडवाणी जी एक बार फिर रथयात्रा की घोषणा कर चुके हैं। उन्होंने घोषणा करके हम सबको चौंका दिया। हममें से किसी को मालूम नहीं था कि उनके मन में क्या पक रहा है। अचानक उन्होंने घोषणा कर दी। उनकी उम्र 84 वर्ष है। वो इस देश का कल्याण करना चाहते हैं। वो देश का प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। वो देश के प्रधानमंत्री तब ही बनेंगे जब हमारी पार्टी सत्ता में आएगी। इसके लिए वो रथयात्रा करने का निश्चय कर चुके हैं। आपको सबको याद ही होगा कि सन्1992 में जो रथयात्रा उन्होंने की थी उसकी याद करके आज भी लाखांे लोग सिहर उठते हैं। ऐसी अकल ठिकाने लगाई थी आडवाणी जी ने। रथयात्रा का प्रताप ही ऐसा होता है।
आप लोगों ने देखा ही होगा कि जब भी कोई घटना होती है तो सबसे पहले आडवाणी जी सरकार से इस्तीफा मांगते हैं। इसका कारण उनके अंदर छुपी बैचेनी है। वो देश को अपने आपके के रूप में एक काबिल प्रधानमंत्री देना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि ये सरकार जल्द से जल्द गिर जाए ताकि उनकी बारी आए। इसमे ंबुरा क्या है। हर कोई अपना भला सोचता है। पिछले बार उन्होंने एनडीए की बैठक बुलाकर अपने को भावी प्रधानमंत्री घोषित करवा दिया था। कई लोगों ने उन्हें गलत समझा वो कुर्सी के भूखे नहीं हैं। वो इतिहास बनाना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि भूतपूर्व प्रधानमंत्रियांे में उनका भी नाम हो। पुराने जमाने से प्रधानमंत्री बनने के लिए लोगों ने क्या क्या नहीं किया। कई बन गये कई नहीं बन पाये। जो बन गये वो अमर हो गये। बाकी सब अमरसिंह हो गए। चौधरी चरण सिंह और चन्द्रशेखर चाहे जैसे बने चाहे जितने दिन के लिए बने लेकिन कहलाएंगे तो भूतपूर्व प्रधानमंत्री। और एक बाबू जगजीवनराम थे। जिंदगी दे दी उन्होंने कांग्रेस के लिए मगर इंदिरा जी ने ऐसा रास्ता रोका कि प्रधानमंत्री बनने की हसरत लिए वो दुनिया से चले गए।
अब राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की बातें चल रही हैं। ये कोई उम्र है प्रधानमंत्री बनने की। राहुल गांधी को खुद सोचना चाहिए कि जब आडवाणी जी जैसे सीनियर आदमी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश रखते हैं तो उन्हें बन जाने दें। मगर नहीं साहब गांव गांव घूम रहे हैं। प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। अरे जब तुम इतनी कम उम्र में प्रधानमंत्री बनना चाहते हो तो आडवाणी जी 84 साल में प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो उसमें क्या बुराई है ? कुछ तो सोचो।
पार्टी में भी कोई कम दुश्मन तो हैं नहीं। अब जैसे तैसे कुछ सर्वे वगैरह करवा कर हमने ऐसा माहौल बनाया कि हमारी पार्टी सत्ता में आने वाली है। तो दुश्मनों ने हल्ला करना शुरू कर दिया कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाएंगे। यानी अभी खीर पकी नहीं और खाने वालों में झगड़ा शुरू। सोचो आडवाणी जी को कितना बुरा लगा होगा। उनका ही जूनियर उनका ही प्रतिद्वंद्वी। वो तो नरेन्द्र मोदी को समझा दिया गया है कि जब समय आएगा तब देखेंगे अभी से मचलना मत। पहले सरकार बनाने की नौबत तो आए। अब आडवाणी जी सामने रहेंगे तो नरेन्द्र मोदी की हिम्मत है क्या कि प्रधानमंत्री बन जाए।
हम सब को भी उन पर दया आती है। आदमी जिंदगी भर काम करे और जब इनाम लेने का मौका आए तो वरिष्ठता के नाम पर कुर्सी दूसरे को थमा दी जाए। अब देखिए राम मंदिर आंदोलन आडवाणी जी के नेतृत्व में चला। अटलजी कहीं गए नहीं। दिल्ली में बैठे गोलमोल बातें करते रहे। जब चुनाव हुए, पार्टी जीती तो प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार। अरे उन्हें खुद ही कह देना था कि आडवाणी को बनाओ सारी मेहनत उसी की है। मगर उन्हेें गृहमंत्री बना दिया। वो तो आडवाणी जी ने लड़झगड़ कर अपने को उपप्रधानमंत्री बनवा लिया तो ठीक रहा वरना गृहमंत्री को कौन याद करता। गृहमंत्री तो बूटा सिंह भी रह चुके हैं। उप ही सही प्रधानमंत्री तो कहलाए।
हम सबने तो बहुत मना किया कि अब रथयात्रा से कुछ नहीं होने वाला। जहां अपनी सरकारें हैं वहां हमारे मुख्यमंत्रियों ने कोई कम गुल नहीं खिलाए हैं। इसीलिए जबरन फजीहत नहीं कराओ। मगर माने नहीं कहते हैं कि हम तो पुरानी रथयात्रा वाले सुनहरे दिन वापस लाएंगे। अभी सन्यास ले रहे थे अब बारात निकाल रहे हैं। कुछ समझ नहीं आता इन बुजुर्गों का। ............सुखनवर
15 09 2011

Monday, September 12, 2011

अमरसिंह भी अंदर

अनेक मुहावरे हैं जैस होम करते हाथ जले जिनका मायने ये होता है कि आप किसी का भला करने गये और खुद मुसीबत में पड़ गये। अब एक नया मुहावरा बन सकता है कि आप अमर सिंह हो गये। ये तो वही हुआ कि भला करने गये और अमर सिंह हो गये। अमरसिंह एक उद्योगपति हैं। काफी पैसा हो जाने से आदमी अमरसिंह हो जाता है। और अमरसिंह हो जाने से आदमी को यह मुगालता हो जाता है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर स्थापित है और वह शेषनाग मैं हूं। या ये दुनिया मैं चला रहा हंू। या मेरे बिना पत्ता नहीं खड़कता। आजकल मीडिया चैनलों के कारण भी बहुत लोगों को ये गुमान हो जाता है कि इस धरा पर जो कुछ हो रहा है वो उनकी इजाजत से हो रहा है।
जब पहली बार यू पी ए सरकार बनीं तो सोनिया जी ने एक पार्टी दी। सारे यूपीए दलों को बुलाया। वाम दलों को भी बुलाया। सब लोग पार्टी में अंदर थे। अमरसिंह और मुलायम सिंह भी पंहुचे। उन्हंे सोनिया जी ने बुलाया ही नहीं था। पर वामदलों ने कह दिया था कि तुम लोगों को तो बुलाना चाहिए। तुम लोग आ जाना। मगर गेट पर घुसने नहीं मिला। इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है। मगर वाह अमर सिंह। गेट से भगाए जाने को भी झेल गये। बोले हमें भोज में घुसने न मिले तो भी सोनिया जी हमारी नेता हैं। अमरसिंह के पास भांति भांति के गणित रहते हैं। उनने हिसाब लगा लिया कि अभी बुराई मोल लेना ठीक नहीं। उनने ये शिक्षा नहीं ली कि बिना बुलाये खाने पर नहीं जाना चाहिए। आत्मसम्मान की दो रोटी ज्यादा बेहतर हैं।
अमेरिका से परमाणु संधि पर जब विवाद हुआ तो वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सरकार अल्पमत में आ गई। अमरसिंह तत्काल सक्र्रिय हो गये। उन्हांेने बिना देर किए सरकार को बहुमत में लाने के लिए प्रयास शुरू कर दिये। उनके प्रयास सफल हुए। सरकार बच गई। जब शादी हो जाती है तो बहुत बार बिचौलिए के योगदान को नकार दिया जाता है। आज पूछा जा रहा है कि अमरसिंह की तो सरकार थी नहीं फिर उसे बचाने के लिए अमरसिंह ने पैसे क्यों लगाए। बातबहादुर अमरसिंह गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद आज तिहाड़ जेल में पंहुच चुके हैं। अमरसिंह की हालत बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की सी है। दीवाना आज जेल में है। जिस सरकार को उनने बचाया था वो आज भी है। वो सरकार बेदाग और अमरसिंह दागदार।
अमिताभ बच्चन जब मुसीबत मंे थे तब अमरसिंह ने उनकी सहायता की। वे उनके परिवार के सदस्य बन गये। यहां तक कि समाजवादी पार्टी के प्रचार के लिए निकल पड़े। जया बच्चन सांसद बन गईं। आज अमरसिंह अमिताभ बच्चन के परिवार से बाहर हैं। जया बच्चन समाजवादी पार्टी के अंदर हैं।
हमारे यहां बहुत से प्रांतीय दल राष्ट्रीय दलों से ज्यादा शक्तिशाली हैं मगर राष्ट्रीय मामलों में प्रांतीय दल और उनके नेता चुप रहते हैं। ये राष्ट्रीय सरकार में शामिल होते हैं मगर केवल मलाई खाने के लिए। मठा पीने का काम मुख्य दल को करना होता है। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा। यूपीए हो या एनडीए। जब परमाणु संधि पर विवाद चला तो लगा देश में केवल दो पक्ष हैं कांग्रेस और वामदल। बाकी सब चुप। उनके प्रांत का मामला नहीं है। उनका प्रांत तो जैसे भारत में है ही नहीं।
अमरसिंह पहले मुलायम सिंह के प्रशंसक बने। फिर सलाहकार बने। फिर मालिक बनने की कोशिश करने लगे। उन्हें लगा कि समाजवादी पार्टी उनकी हाई स्कूल छाप अंग्रेजी से चल रही है। समाजवादी पार्टी मुलायमसिंह की प्रोप्राइटरशिप कन्सर्न है। अमरसिंह उसे पार्टनरशिप में बदलना चाहते थे। मुलायमसिंह जी के सुपुत्र पार्टी का नेजा सम्हाल चुके हैं। समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह की बनाई हुई पार्टी है। वो बिना किसी अमरसिंह के सत्ता में आ चुकी है। इसीलिए आज अमरसिंह कहीं नहीं है। पहले भी उनके साथ कोई नहीं है। आज भी उनके साथ कोई नहीं है।
भारत की जनता को इन सब लोगों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए क्यांेकि अंदर क्या पकता है ये हम आप नहीं जानते।
.............................................सुखनवर
09 09 2011

Thursday, September 1, 2011

ब्रेंडेड आंदोलन का इवेंट मैनेजमेंट

ब्रेंडेड आंदोलन का इवेंट मैनेजमेंट
ये अच्छा हुआ कि पिछले दिनों देश से भ्रष्टाचार खत्म हो गया। जिस दिन रंग गुलाल हुई और खुशियां मनाईं गईं उस दिन के बाद से सारे भ्रष्टाचारी साधू हो गये। बहुत दिनांे से सब लोग परेशान थे कि देश से भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा। कब खत्म होगा ? पिछले बार भ्रष्टाचार खत्म हो ही गया था। जयप्रकाश जी ने खत्म कर दिया था। मगर फिर ऊग आया। जड़ों में मठा नहीं डाला गया था। कुछ दिन दबा रहा फिर निकल आया। उस समय जयप्रकाश जी आगे थे। भ्रष्टाचार से परेशान लोग उनके पीछे थे। इस बार भ्रष्टाचार के पुनर्जन्म की कोई गुंजाइश नहीं है। पुराना जमाना और था। उस समय भ्रष्टाचार से लड़ने के तरीके भी पुराने थे। इवेन्ट मैनेजमेंट नाम की कोई चीज नहीं थी। टी वी नहीं था। 24 घंटे चलने वाले न्यूज चैनल नहीं थे। इतने ओजस्वी टी वी वाले नहीं थे। अब तो टी वी वालों को देखकर लगता है कि क्या जरूरत किसी अदालत की। क्या जरूरत किसी वकील की। उत्साह से ऐसे भरे हुए कि हकलाने लगते हैं, लड़ने लगते और मुंह से झाग छोड़ने लगते हैं।
इसको कहते हैं योजनाबद्ध तरीके से काम करना। क्रमवार काम करना। एक के बाद एक कदम उठाना। अपने टाइम टेबिल पर काम करना। चौतरफा मार करना। पूरे देश में एक साथ आंदोलन। आंदोलन का झंडा होना चाहिए तो ठीक है और कोई झंडा क्यों रहे तिरंगा ही ठीक रहेगा। मगर ये क्या है लोग तिरंगा सीधे पकड़े रहते हैं। आप लोग ऐसा कीजिए कि इस इवेंट के लिए इसे ऊपर नीचे लहर के समान लहराइये। आजकल ब्रेंड के साथ ब्रंेड एम्बेसेडर, बें्रड फ्लैग, ब्रेंड कास्ट्यूम, बैं्रड स्लोगन सबकी जरूरत होती है। सारी व्यवस्था हो चुकी है। ब्रंेड स्लोगन रखो। वंदे मातरम। भ्रष्टाचार से लड़ाई का ये कैसा स्लोगन ? देखिये बहस मत करिये। हमें काम करने दीजिए। दादा जी के पीछे बैकड्राप में गांधी का बड़ा सा पोट्रेट रखो। एक दम सीधे पब्लिक के दिमाग में जाना चाहिए। एक वो गंाधी एक ये गांधी। मगर ब्रैंड एम्बेसेडर कौन रहेगा। जैसा आंदोलन है उसी टाइप का होना चाहिए। पता करो कौन हो सकता है जो कुछ दिन अनशन भी कर सके। अड़ियल हो, किसी की न माने।
पता चला कि महाराष्ट्र के एक गांव में एक लड़ाकू आदमी रहता है। कई बार अनशन कर चुका है। रामदेव टाइप नहीं निकलेगा कि तीन दिन में हवाइयां उड़ने लगें। महाराष्ट्र में कई मंत्रियांे को हटवा चुका है। अख्खड़ आदमी है। किसी की नहीं सुनता। बस एक मुश्किल है। राष्ट्रीय स्तर का नहीं है। प्रांतीय स्तर का है। चलो कोई बात नहीं। उन्हंे ही पकड़ो। मगर ध्यान रखना-आंदोलन और बातचीत हम करेंगे। हम तीनों की यह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है। ये हमारी कंपनी का इवेंट है। इसमें जो चाहे वो आए लेकिन अपनी सीमा में रहे। जो और लोग हैं उनको भगाओ। अपमान कर दो खुद भाग जाएंगे। दादा को आगे रखो। इवेंट के हिसाब से सौ जोड़ी सफेद कुर्ता पाजामा और टोपी तो दादा के लिए रखो। आंदोलन के समय हर चार घंटे में उनकी ड्रेस बदलो। हमेशा एकदम झक सफेद ड्रेस दिखना चाहिए। टी वी पर अच्छा दिखेगा। गांधी से इनकी तुलना करवाओ। तीन चार बार राजघाट ले चलेंगे। वहां बिल्कुल गांधी टाइप मुद्रा में एक फोटो सैशन करवा देना। दादा तो महाराष्ट्र वाली टोपी पहनता है। ऐसा करो टोपी को भी ब्रेंड बनाओ। उसमें लिखो आइ एम अन्ना। बहस मत करो यार। एकाध लाख टोपी बनवा कर बंटवा दो। पैसे को मुंह मत देखा। ये क्यों क्यों मत पूछा करो।
देश का मतलब होता है दिल्ली। यहीं पर सारे टी वी वाले हैं। उनको सबसे पहले साथ में लो। दिल्ली के स्कूलों में सौ डेढ़ सौ बसंे लगवा दो। बच्चों केा ढ़ो ढ़ो कर लाएंगी। बच्चों को दे दो मोमबत्ती और तिरंगा। मंुह पे पुतवा दो तिरंगा जैसे क्रिकेट मैच हो रहा हो। माहौल खिंच जाएगा। और बात समझ लो अपना मुद्दा है। जनलोकपाल बिल। इसके बारे में पब्लिक से कोई बात नहीं करना है। इस बिल पर कोई बहस हमें करना ही नहीं है। ये बिल क्या है ये किसी को पता नहीं चलना चाहिए। बस मुद्दा ये उठाओ कि इसमें प्रधानमंत्री को आना चाहिए। इसी पर बहस चलने दो। सरकार को उधेड़ के रख दो। जनता के बीच ये संदेश चला जाना चाहिए कि देश में तीन भ्रष्टाचारी हैं। प्रधानमंत्री, कपिल सिब्बल और चिदंबरम। सरकार भ्रष्ट है मतलब केन्द्र की कांग्रेस सरकार भ्रष्ट है। दस बारह दिन तो ये दादा अनशन खींच ले जाएगा। नहीं भी खींच पाएगा तो भी अपना काम तो बन जाएगा। यदि तबियत काफी बिगड़ गई तो बिगड़ जाए। अपना काम बन जाए फिर इनका जो होना होगा सो होगा। पूरे आंदोलन को इतनी ऊंचाई पर ले जाना है कि फिर आगामी तीस साल तक कोई आंदोलन न हो पाये। जनता का सारा गुस्सा प्रेशर कुकर की सीटी के समान निकल जाए। .....................................सुखनवर
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01 09 2011






अंग्रेजी बोलने वालों का संघर्ष


बुधिया खाना बना रही थी। सामने टी वी चल रहा था। बच्चे खेलते हुए बाहर चला गया। उसेन देखा कि एक बहुत सफेद झक्क कपड़े पहने दादा जी टोपी लगाकर बैठे हैं। उनके सामने हजारों लोग तिरंगा झंडा लहरा रहे हैं। ऐसा तो टी वी चाहे जब दिखता रहता है। पर आज खास बात ये थी कि ये दादाजी बैठे थे और सामने लोग तिरंगा लिये थे। दादा जी भाषण दे रहे थे। वो मालूम नहीं क्या बोल रहे थे। कुछ समझ नहीं आ रहा था। पर बाकी लोग बहुत जोर जोर से नारे लगा रहे थे सो लग रहा था कि जरूर कोई बड़ी बात कह रहे होंगे। उसका बड़ा लड़का घर आया तो उसने पूछा कि ये क्या हो रहा है। लड़के ने बताया कि बहुत अच्छा काम हो रहा है। अपने सब्जी के ठेले में से पुलिस वाला जो सब्जी उठा ले जाता है उस पर रोक लगने वाली है। वो जो डंडा फटकार कर हमसे पैसा वसूलता है वो भी अब खत्म होने वाला है। राशन दुकान वाला चाहे जब कह देता है कि राशन नहीं है मिट्टी का तेल नहीं है वो भी खत्म होने वाला है।
बुधिया बहुत खुश हुई। उसने लड़के से पूछा कि ये लोग ये बात तो कह नहीं रहे। फिर तू कैसे कह रहा है कि ये लोग पुलिसवाले राशनवाले का अत्याचार खत्म करने वाले हैं। लड़के ने बताया कि ऐसे सारे कामों को भ्रष्टाचार कहते हैं। ये खत्म होने वाला है। बुधिया को विश्वास नहीं हुआ। लड़के ने बताया कि अबकी बार जरूर खत्म हो जाएगा क्योंकि अब अंग्रेजी बोलने पढ़ने लिखने वाले लोग ये कह रहे हैं। हम लोगों की सुनता कौन है। जब अंग्रेजी में बात कही जाती है, जब अंग्रेजी बोलने वाले बच्चे बूढ़े ये बात कहते हैं तो उसका वजन होता है। ये लोग सफेद रंग की टी शर्ट पहने हैं। उसमें अंग्रेजी में लिखा है। काले लाल गोले बने हैं। इस सबका मतलब होता है अम्मा तू नहीं समझेगी। ये लोग बहुत ज्ञानी हैं। इन लोगों ने खुद अपना कानून लिखा है। उसे बनवाने वाले हैं।
बुधिया को फिर भी समझ नहीं आया। उसे समझ नहीं आया कि अभी किस कानून में लिखा है कि झूठ बोलो। बेईमानी करो। फिर भी दुनिया कर रही है। इन्हें कोई रोकता क्यांे नहीं ? अभी हमारी सब्जी नहीं बिक पाती है। मुश्किल से घर चल रहा है उस पर से एक बड़ी दुकान खुल गयी है चमचमाती हुई उसमें कार में बैठ कर लोग जाते हैं और सब्जी खरीदते हैं। हम दो पैसा कमा रहे थे तो ये भी इन अमीरों से नहीं देखा गया।
लड़के ने समझाया कि अम्मा उनका मतलब दूसरा है। वो बड़े लोग हैं। उन्हें बड़ा खेल खेलना पड़ता है। उनके खेल करोड़ों के होते हैं। उन्हें करोड़ों खिलाना पड़ते हैं। उनके लिए वो भ्रष्टाचार है। ये लोग एक दूसरे को जेल डालते रहते हैं। सारा नियम कानून वो ही समझते हैं। वही तोड़ते हैं। वही जेल जाते हैं। वही मुकदमा लड़ते हैं। वही कानून बनाते हैं। वही तोड़ते हैं। इन बड़े धंधे वालों को ये करोड़ों देना बहुत अखर रहा है। इसीलिए अब एक और कानून बना रहे हैं। हम लोगों के लिए तो पहले से कानून है। हमारी ठुकाई तो उसी कानून से होती है। पिछले साल पुलिस ने बापू जी को अंदर कर दिया था। एक साल लग गया उनको छुड़वाने में। कितना पैसा लगा। उसी अदालत में कितना पैसा लगा वकील को दिया बाबू को दिया। पुलिस को दिया। तब कहीं जाकर छूट पाये बापू।
अच्छा हुआ अभी ये नया कानून नहीं बना है। छोटी अदालत, मंझली अदालत, बड़ी अदालत और कहते हैं कि एक सबसे बड़ी अदालत दिल्ली में है। अपन लोगों के लिये तो अपने शहर की अदालत ही ठीक है। अपन कभी दिल्ली गये तो उस अदालत में तो घुसने भी नहीं मिलेगा। अब ये अंग्रेजी बोलने वाले आपस में लड़ रहे हैं। अभी कुछ दिन बाद एक दिन शहर बंद होगा। अम्मा उस दिन की रोटी पानी का इंतजाम करना पड़ेगा। उस दिन की कमाई तो गई। .................................सुखनवर
26 08 2011