Thursday, June 18, 2020

चक्रवर्ती सम्राट के मन की बाते


पिछले कई सालों से मैं ये पता लगा रहा हूं कि इतिहास कहां लिखा जा रहा है। कहीं न कहीं तो लिखा ही जा रहा होगा। जो भी लिख रहा हो उसी से सैटिंग करना है। मामला ये है कि मैं इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवाना चाहता हूं।  बचपन से यह पढ़ाया जाता है कि फलां ढिकां का नाम इतिहास मेंं स्वर्णक्षरों में लिखा गया है। मेरा नाम भी इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना है। मैं नगद भी दे सकता हूं और स्वर्ण भी दे सकता हूं। लिखने वाला कारीगर भी मैं दे सकता हूं। हजारों पड़े हैं।
भारत वर्ष के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी राजपुरूष को ये सूझा है। अब जब से मैंने राजपाट सम्हाला है मैं चाहता हूं कि इतिहास मुझसे ही शुरू हो और मुझ पर ही खत्म हो। इतिहास के पुनर्लेखन के लिए भी आदेश दे चुका हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे सामने ही मेरा मूल्यांकन हो जाए। अपना मूल्यांकन मैं खुद कर लूंगा। मेरे पास लेखक हैं कारिंदे हैं। मेरा युग भारत का स्वर्ण युग कहलाए।
मैं जम्बू द्वीप - आर्यावर्त का राजा हूं। एक विराट आयोजन करके चक्रवर्ती विक्र्रमादित्य की उपाधि लूंगा। प्राचीनकाल से राजा लोग विक्र्रमादित्य की पदवी धारण करते थे और चक्रवर्ती कहलाते थे। मैंने महाभारत रामायण सीरियल के कास्ट्यूम डिजायनरों से अवसर अनूकूल मणि माणिक युक्त भव्य कास्ट्यूम तैयार करने के लिए कह दिया है। अभी ये सोच रहा हूं कि इस भव्य समारोह को कहां आयोजित किया जाए। अयोध्या, बनारस, हल्दीघाटी, पानीपत, प्लासी, कुरूक्षेत्र हस्तिनापुर एवरेस्ट आदि के बारे में सोच रहा हूं। इसमें सभी देशों के राजाओं को बुलाउंगा। मैंने तो अश्वमेध यज्ञ की योजना बना ली थी मगर चीन पाकिस्तान मेें मेरा अश्व जा नहीं पाएगा तो रद्द कर दी।
इसी सिलसिले में मैं ये पता करवा रहा हूं कि ये राजा अकबर वगैरह को जो जिल्ले इलाही वगैरह कहा जाता था वो मुझे क्यों नहीं कहा जा सकता है। यदि ये सब किसी समारोह में होता हो तो वह मैं करवा दूंगा। वैसे मैंने गुजरात में खबर भेज दी है। वहां इस तरह के चाहने वाले बहुत हैं। कुछ नई उपाधियां जैसे तकदीरे हिन्दुस्तान, शहंशाह ए हिन्दुस्तान, वगैरह भी हो सकती हैं।
भारत वर्ष के इतिहास में किसी राजपुरूष ने पहली बार इतने देशों की यात्राएं की हैं। मैंने तो ऐसे ऐसे देशों की यात्राएं की हैं जहां हमारे देश का राजदूतावास नहीं था। कई देश के लोग तो घबरा गये। बोले आप क्यों आ रहे हैं। मैंने कहा भई मैं अपने जहाज से अपने खर्चे से आ रहा हूं। आप लोगों को केवल स्थानीय व्यवस्था करना है। उसका भी खर्च मैं दिलवा दूंगा। यदि जनता कम पड़े तो मैं उसकी भी व्यवस्था कर सकता हूं। तो इन यात्राओं की भी एक किताब बनती है। प्रकाशन विभाग को अभी तक ये काम कर चुके होना चाहिए था। अभी इनकी खबर लेता हूं।
2014 में मैं चाय वाला बना। देस के चाय वालों ने उसे गंभीरता से ले लिया। मेरे पास आए और बोले स्टेशन पर बेचे जाने वाली चाय सदियों से घटिया ही रही है। हमें आपका मार्गदर्शन चाहिए। उसका स्तर कैसे सुधारा जाए। मैंने कहा कि भाई जो चाय मैंने पूरे देस को बेच दी और लोगों ने पी ली और कह रहे हैं कि साठ सत्तर सालों में ऐसी चाय नहीं पी उसको तुम लोग घटिया कह रहे हो। शर्म आनी चाहिए। चाय ऐसे ही बिकेगी और सबको पीना पड़ेगी।
दुनिया में जो भी महान हुआ है उसने किताब लिखी है। हिटलर ने भी आत्मकथा लिखी थी। मेरे सलाहकारों का कहना है कि आत्मकथा तब लिखी जाती है जब अपनी कथा खत्म होने लगती है। इसीलिए मुझे लेख निबन्ध प्रवचन और विचार आदि लिखना थे। वो काम हो गया। तीसेक किताबें छप चुकी हैं। कुछ और भी छप रही हैं। लोग काम पर लगे हुए हैं। मुझे पता चला है कि महान और अमर होने के लिए कवि होना जरूरी है। एक को कहा है कि कविता की किताब छपा दो। किताब अंग्रेजी में है। मूल किताब गुजराती में है। पहले ही छप चुकी है। एक महिला को अभी अभी पद्मश्री दिया है। वो अनुवाद कर रही है। सहायकों ने कहा कि साहब लोग बोलेंगे असली हस्तलिपी वाली कापी दिखाओ। मैंने कहा बोल देा मैं लिख के फाड़ देता था।
मेरी बायोपिक बन चुकी है। सवा सौ करोड़ देसवासियों को बहुत पसंद आई। विस्व इतिहास में आज तक किसी फिल्म को इतने लोगों ने नहीं देखा। पर बहुत सारे क्षेत्र बाकी है। पेंटिंग है। यह क्षेत्र बिल्कुल खाली है। वैसे कई प्रस्ताव आए हैं। कलाकार हैं। वो कहते हैं कि हम जानते हैं आप पेंटर हैं। अब बताइये कैसे मना करूं। गायन वादन है। ड्रम तो मैं बजाता ही था। संगीत में हाथ आजमाना है। कई नृत्यांगनाओं ने तैयारी शुरू कर दी है मेरी कविताओं पर नृत्य प्रस्तुतियांे की। कई संगीतकार और गायक भी कविताओं की सुरसाधना में लग गए हैं। कविताओं पर पेंटिंग प्रदर्शनी तो शायद तैयार हो चुकी होगी। यह देस तो प्रतिभाओं की खान है। ज्योंहि मैं गद्दीनशीन हुआ, कुछ कलाकार और लेखक जुट गये और उन्होंने मेरी बाल लीलाओं पर एक कार्टून किताब बना डाली। कल्पना की हद है। पहले तो मुझे लगा कि ये मेरी खुशामद के लिए लिखी गई है। फिर मैं समझ गया कि ये कलाकार लोग तो कल्पना कर ही सकते हैं।
मैं सोच रहा था कि कि मेरा राज कितने साल चलेगा तो देखिये रूस में जार ने 63 साल राज किया। पुर्तगाल में सालाजार कितने साल रहा। 36 साल। स्पेन में फ्रेंको 35 साल रहा। मुसोलिनी और हिटलर हालांकि कम साल रहे यही करीब 15 -15 साल पर उन्होंने विश्व इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में तो लिखाया। मेरे साथी ने कहा है कि हम पचास साल राज करंेगे। मतलब अभी 43-44 साल और बचे हैं। हे भगवान कैसे गुजरेंगे भारत की जनता के ये साल। मगर भारत की सवा सौ करोड़ जनता की सेवा करने का सवाल है। करके ही रहूंगा।
सुखनवर
14 06 2020