Tuesday, March 29, 2011

ये विकीलीक्स क्या है

प्रश्न ये है कि ये विकीलीक्स क्या है ? उत्तर ये है कि भारतवर्ष के लिये ये सबसे बड़ा टाइमपास है। जब दूसरे पर गाज गिरे तो विकीलीक्स की लीक सही है जब अपने पर गिरे तब गलत है। विकीलीक्स को लीक करने वाला बहुत पंहुचा हुआ है। वो एक बार में लीक नहीं करता। एक बार लीक करता है फिर कुछ दिन मजे लेता है। फिर दूसरी लीक कर देता है। फिर मजे लेता है और फिर तीसरी लीक कर देता है। पहले उसने प्रधानमंत्री को फंसाया और संसद में हंगामा करवाया। प्रधानमंत्री और कांग्रेस कहती रही कि ये झूठ है विकीलीक्स की लीक्स भरोसे लायक नहीं हैं। इसके बाद विकीलीक्स ने भाजपा को घेर दिया। अरूण जेटली को फंसा दिया और आडवाणी को फंसवा दिया कि ये कह रहे थे कि आप हमारे अमेरिकाविरोधी बयानों को गंभीरता से न लें हम लोग भारतीय लोग समय समय पर राजनैतिक जरूरत के अनुसार आपको भला बुरा कहते हैं मगर दिल दिमाग से आपके साथ हैं। हम आपको ही अपना माई बाप मानते हैं। हम तो दिखावे के लिए परमाणु संधि का विरोध कर रहे हैं। हम सरकार में होते तो आपको बिलकुल तकलीफ न होती। हम तो बिना कागज देखे दस्तखत कर देते।
दो चक्कर पूरे हो जाने के बाद विकी साहब ने तीसरी लीक कर दी। चिदंबर को फंसवा दिया। कह दिया कि ये हमारे राजदूस से कह रहे थे कि अगर भारत में पश्चिम और दक्षिण हिस्से भर होते तो अच्छा रहता खूब प्रगति होती। बाकी हिस्से देश की सारी प्रगति खा जाते हैं। बस बाकी हिस्सों वाले नेताओं की बन आई। तीसरा मोर्चा खुल गया। इस बार मुलायम सिंह जी यज्ञ की वेदी पर बैठे और अपना आहुति दी। स्वाहा स्वाहा किया और चैन सेे सोये। संसद नहीं चलने दी। कहा चिदंबरम माफी मंागें। अब तो लोकसभा अध्यक्ष को भी समझ में आ गया है कि संसद कैसे चलाना है। उनने मनमोहनसिंह जी से सीख लिया। पहले मामले को टालो। फिर कमेटी या आयोग या समिति के हवाले करने के नाम पर बरकाओ फिर भी बात न बने तो मामले को मचा दो। सो मुलायम सिंह ने संसद नहीं चलने दी और भाजपा ने भी कहा कि हम भी आज बहिष्कार करेंगे और आज के दिन का भत्ता पक्का करेंगे और विश्राम करेंगे। चिदंबर को जी भर कोसा गया। वो थे नहीं। कांग्रेस के मंत्री ने कहा कि विकी लीक्स का भरोसा न किया जाए। कोई आदमी अपने घर चिठ्ठी में क्या लिखता है इससे आपको क्या मतलब ? वो अपनी नौकरी कर रहा है। वो अपने मालिक को खुश करना चाहता है। करे। हमारे चिंदंबर साहब तो संसद में थे नहीं । उनसे बाहर पूछा गया तो हंसे। उनने कहा कि मैं केबिल की निंदा करता हूं। वो हंसे इसलिए कि यदि विरोधी बेवकूफ हो तो राजकाज आसान हो जाता है। उनका राजकाज आसान हो गया। अब संसद में उन्हें कठिन प्रश्नों का उत्तर नहीं देना है। अब उन्हें कोई खतरा नहीं। वो आराम से बैटिंग करेंगे और रन बनायेंगे। अब मंहगाई, बजट की बदमाशियों पर कोई चर्चा नहीं होगी। अब देश में अराजकता और गंुडाराज पर कोई चर्चा नहीं होगी।
मनमोहन सिंह जी की सरकार गिरने वाली थी। उनने रातों रात बहुमत जुटा लिया। बहुत सारे सांसद अपनी पार्टी से पूछ कर या बिना पूछे सरकार के लिए वोट देने राजी हो गए। दरअसल उनका ह्दय परिवर्तन हो गया। उन्हें लगा कि मनमोहन सिंह जी मुसीबत में हैं याने राष्ट्र मुसीबत में है। तो राष्ट्र बचाने के लिए उनने पाला बदल लिया। सब जानते हैं कि इनका हदय परिवर्तन फ्री में तो होता नहीं। जैेसे कोई फ्री में चुनाव जीतता नहीं। इतने समय बाद ये उजागर बात विकीलीक्स ने लीक की। जनता को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। आश्चर्य हुआ तो भाजपा को। इसके सांसद उस दिन नोटों के बंडल संसद के अंदर उछाल रहे थे। ये बताने के लिये कि देखो ये पैसे हमें खरीदने को दिये गये पर हम बिके नहीं। कोई बात नहीं। जबकि ये ही सांसद पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछने के आरोप में दंडित हुए।
संसद में एक अद्भुत खिलाड़ी भावना का संचार हो गया है। अब संसद में जो होना चाहिए उसके अलावा सब हो रहा है। रोज संसद ठप्प होती है। रोज हंगामा होता है। रोज आरोप प्रत्यारोप लगते हैं। कोई जीतता नहीं कोई हारता नहीं। दूसरे दिन फिर अखाड़े में लोग जमा हो जाते हैं। वो दिन कब आएगा जब संसद में गंभीर बातचीत होगी। बिलों पर बहस होगी। बहस का परिणाम निकलेगा। पूरी राजनीति दिनभर की मेहनत के बाद शाम को टी वी में प्रमुखता से चर्चित होने पर केन्द्रित हो गई है।
............................सुखनवर

देश चल रहा है।

मैं पिछले कई दिनांे से काफी परेशान हूं। मैं राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना चाहता हूं। मैं अपने देश का श्रेष्ठ नागरिक बनना चाहता हूं। इसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं। यहां तक की मैं लगातार टी वी देखने तक को राजी हूं। राजी हूं क्या बल्कि देख ही रहा हूं। इस देश का आम नागरिक टी वी में जो कुछ दिखाया जा रहा है और अखबारों मंे जो कुछ छप रहा है उसी को देखने और पढ़ने के लिए मजबूर है। युवा पीढ़ी जरूर इन्टरनेट देखती है। और उसमंे जो ज्ञान का भंडार संचित है बल्कि सूचनाओं का भंडार संचित है उसका प्रस्फुटन उसके दिमाग और व्यवहार में दिखाई दे रहा है। मगर मैं युवा पीढ़ी से क्यों जलूं ? जब मैं युवा था तब मैंने अपने समय में क्या जुलुम नहीं ढ़ाए ? मैं तो आज की बात कर रहा हूं मैं टी वी देख देख कर राष्ट निर्माण के लिए प्रेरित हो रहा हूं। इसके तहत मुझे सुबह उठकर योग करना चाहिए। ये बात तो मेरी समझ में आ गई है। सुबह घूमने भी जाना चाहिए। जब मैं सुबह घूमने जाता हूं तो देखता हूं कि इक्का दुक्का लोग घूम रहे हैं। और ये भी इसीलिए घूम रहे हैं क्योंकि इन्हें डाक्टर ने कहा है। हमारे देश में यदि कोेई सुबह घूमता मिले तो समझ लीजिए कि ये ब्लड प्रेशर या डायबिटीस का ताजा मरीज है और इसे कल परसों ही डाक्टर ने घूमने को कहा है। ये ताजा मरीज जरूर एक नया खरीदा टेकिंग सूट धारण किए होगा। ये आदमी एकाध महीने से ज्यादा मार्निंग वॉक न करेगा। व्यायाम और मेहनत हमारे खून में ही नहीं है।
तो हमारे खून में क्या है ?
सुस्ती, अपने काम से काम। काम भी यदि हो तो वरना बैठे रहो। पहले घर के बाहर बैठो। फिर चौराहे पर जाकर बैठो। फिर घर आकर टी वी के सामने बैठ जाओ। आजादी मिलने के पहले कुछ लोगों के पास अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाने का काम था। ये लोग व्यस्त रहते थे। अंग्र्रेज चले गए तो ये लोग भी बेरोजगार हो गए। इन लोगों को जेल जाने की आदत पड़ गई थी। ये आदत गांधी जी ने डलवायी थी। आजादी के बाद काफी दिनों तक ये अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करते रहे और जेल जाते रहे। दूसरी आदत उन्होंने बहुत सोच समझ कर डलवायी थी। भूखे रहने की। उपवास करने की। उन्हें मालूम था कि कोई आदमी यदि कोई काम न करेगा तो उसके भूखे रहने के दिन आएंगे। उसके लिए भूखे रहने को एक आदर्श नाम दे दो। उपवास। एक और शब्द उन्होंने ईजाद किया था। वो भी इसी मजबूरी की उपज थी। वो है सत्याग्रह। कहीं भी जाकर बैठ जाओ। उठो नहीं कहो हम सत्याग्रह कर रहे हैं। आज भी हमारे यहां करोड़ों निखट्टू बिना काम किए अपने घर में सत्याग्रह करते रहते हैं। आखिरकार उन्हें बिना कुछ किए भोजन मिल ही जाता है। घर की महिला चाहे मां हो या पत्नी इन निखट्टुओं के लिए खाने का इंतजाम तो कर ही देती है।
सुबह आप ऑफिस चालू होने के पहले पंहुच जाएं और ऑफिस में काम करने वालों को आते हुए देखें। ऑफिस कर्मी बहुत धीरे से ऑफिस में प्रवेश करेंगे और इतने हारे थके दिखेंगे कि लगता है दसेक मील पैदल चलकर आ रहे हैं। इनकी दाढ़ी बढ़ी होगी जो ये साबित करेगी कि इन्हें समय नहीं मिला दाढ़ी बनाने का। कपड़े गंदे होेंगे क्योंकि इन्हें धोने का समय नहीं मिला। पर एक बात इनके चेहरे को देखते ही पता चलेगी कि इन्होंने नहाया है। इनके माथे पर भांति भांति के तिलक लगे रहेंगे। पूजा पाठ जरूर करेंगे। ऑफिस में पंहुचते ही ये लोग धम्म से कुर्सी पर गिर जाएंगे। अब काफी देर तक इनसे कोई उम्मीद नहीं की जाए। ये आफिस आने में थक चुके हैं और वैसे भी इनके जीवन का आज के दिन का सबसे महत्वपूर्ण काम हो चुका है। आफिस में ये हाजिर हो चुके हैं। जब ऐसे हारे थके लोगों का एक समूह बन जाएगा तो ये अपने शरीर को उठायेंगे और चाय पीने चले जाएंगे। धीरे धीरे जाएंगे और धीरे धीरे आएंगे। उनके लौटने के बाद ये लोग कुछ लोगों को ये कहकर टरकाएंगे कि बहुत काम है कल आना या साहब नहीं आए हैं। इस तरह टरकाने पर आदमी पैसे दे देता है। इसी बीच खाना खाने का समय हो जाएगा। ये खाना खायेंगे या घर चले जाएंगे या सो जाएंगे। शाम होने लगी है। घर चले जाएंगे। ये एक आम ऑफिसकर्मी की दिनचर्या है।
जो लोग ऑफिस नहीं जाते उनकी दिनचर्या भी कोई दिनचर्या है। वो धंधा करते हैं। और इन्हीं आफिसों में काम कराने के लिए चक्कर लगाते हैं। देश चल रहा है।

Sunday, March 13, 2011

इस देश को कौन चला रहा है

पूरा देश विश्वकप में डूब उतरा रहा है। हर समस्या का हल देश का क्र्रिकेट है। इसीलिए इस देश में पूरे समय क्र्रिकेट होता है। ठंड बरसात गर्मी हर मौसम क्र्रिकेट का मौसम। इसी में रहस्य छुपा है। क्र्रिकेट हर समस्या का हल है। जैसे हर आदमी थकहार कर शराब पी लेता है या कोई दूसरा नशा कर लेता है वैसे क्र्रिकेट में डूब जाना भी एक नशा है। इस नशे में देश की बड़ी से बड़ी समस्या भूली जा सकती है। ये मार्च का महीना है। 28 फरवरी को बजट पेश होता है। बजट पेश होते ही विश्व कप क्र्रिकेट शुरू हो जाता है। बजट की आलोचना एक दो दिन में विश्वकप की चर्चा में गुम हो जाती है।
क्या क्र्रिकेट इस देश के बच्चों का भविष्य नष्ट करने के लिये नहीं हैं ? मार्च में पूरे देश में बच्चों और कालेजी छात्रों की परीक्षाएं होती हैं। मार्च में विश्वकप का रखा जाना किसी अंतर्राष्टीय षडयंत्र का हिस्सा नहीं है ? यही नहीं विश्व कप समाप्त होते ही आई पी एल शुरू हो जाएगा। वो तो शुद्ध धंधा है। पैसे से पूरी दुनिया के खिलाड़ी खरीदे और फिर उनसे कहा खेलो सालों जब तक हमें मजा न आए। नहीं खेलोगे तो निकाल देंगे और पैसा नहीं देंगे। खराब खेलोगे तो निकाल देंगे और पैसा नहीं देंगे। बूढ़े हो जाओगे तो नहीं खिलाएंगे और पैसा तो खैर देंगे ही नहीं। आज से पचास साल पहले राजा हरिश्चंद्र फिल्म आई थी। उसमें एक दृश्य था एक मंडी है जहां बहुत से गुलाम खड़े है और एक आदमी उनकी बोली लगा रहा है। राजा हरिश्चंद्र भी गुलामों के बीच में खड़े हैं और उन्हंे भी एक चांडाल बोली लगाकर खरीदकर ले जाता है। हमारे आज की दुनिया के धुरंधर खिलाड़ी भी मंडी में खड़े होते हैं और बिकते हैं। न बिकने पर रोते हैं। खरीदने वाले भी कहते हैं कि हम जवान और सुंदर को खरीदेंगे बूढ़ों अधेड़ों को नहीं खरीदेंगे। एक बूढ़े ने न बिकने पर शिकायत भी कि मेरा मन इस बात से खट्टा हो गया है। अब मैं कभी बिकने नहीं जाउंगा। सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया।
क्र्रिकेट, क्र्रिकेट और क्र्रिकेट। उसी के चैनल, उसी की पत्रिकाएं और उसी के अखबार। जब भी आप कुछ पढ़ना चाहो कुछ देखना चाहो तो आपको केवल क्र्रिकेट देखना होगा। रास्ते में जाओगे तो दुकानों में झांक झांक कर क्र्रिकेट देखते लोग दिखंेगे। ऑफिस में काम करोगे तो चारों ओर कल का देखा हुआ मुंह से उगलते सहकर्मी मिलेंगे। ये कोई आज ही हो रहा है ऐसा नहीं है। क्र्रिकेट का जुनून इस देश में बहुत सोच समझ कर बनाया गया है। जब टी वी नहीं था तब रेडियो और कमेन्टी सबको उलझाए रखती थी। पर तब कम से कम आंखें खाली रहती थीं। कान और मुंह व्यस्त रहता था। अब तो क्र्रिकेट पूरे देश की रफतार रोक देता है। सारे काम बंद। बच्चों की पढ़ाई बंद।
मगर सबसे अच्छी बात ये है कि दुनिया में प्रलय आ जाए और देश में क्र्रिकेट चल रहा हो तो प्रलय का समाचार रोक दिया जाएगा। जापान में इस शताब्दी का सबसे बड़ा भूकंप आया सुनामी से न जाने कितने मारे गये लेकिन यदि आप टी वी देखें अखबार देखें तो यह त्रासदी पूरी तरह गायब है। एक एस एम एस चलाया गया कि उनके लिए प्रार्थना करो क्योंकि हम यही कर सकते हैं। और यह कह कर छुट्टी पा ली गई। पर क्र्रिकेट चल रहा है। इंडिया जीत रही है या हार रही है। बस यही जीवन है। यही जीवन मरण का प्रश्न है। इस बीच सतर्कता आयुक्त थॉमस का मामला चल रहा था। प्रधानमंत्री ने अपनी गलती मान ली। पर मानी तब जब सुप्रीम कोर्ट ने मनवायी। जब थॉमस को नियुक्त किया जा रहा था तो ये बात सच है कि सुषमा स्वराज ने उस मीटिंग में आपत्ति की थी और बहुत शालीन आपत्ति की थी। उनने कहा था कि तीन लोगों का पैनल है। जब थॉमस के नाम पर कुछ आपत्तियां हैं तो इन्हें न बनाकर दूसरे बेदाग आदमी को बनाइये। ये बात दूसरे ही दिन अखबारों में छपी थी। मगर जो भी कारण रहा हो इन्हीं प्रधानमंत्री महोदय ने थॉमस को बनवाया और फिर अड़े भी रहे कि बिलकुल ठीक किया है। उधर थॉमस भी अड़े रहे कि मैं क्यों दूं स्तीफा। नहीं दूंगा। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर थॉमस हटे। उन्हें बनाने वाले प्रधानमंत्री ने माफी मंागी। ऐसा लग रहा है जैसे मनमोहन सिंह जी से कोई व्यक्तिगत गलती हो गई हो। पर मनमेाहन सिंह जी आप जब माफी मांग रहे हैं तो आप भारत की संप्रभु सरकार की विश्वसनीयता दांव पर लगा रहे हैं। ये कैसी सरकार है जो देश के सबसे बड़े चौकीदार की नियुक्ति में जानबूझकर एक दागी को चुनती है और फिर उसे पाक साफ बताती है और फिर माफी मांग लेती है। ये कोई छोटी मोटी बात नहीं है। इससे पता चलता है कि देश कौन चला रहा है। कम से कम वो लोग तो नहीं चला रहे जो चलाते दिख रहे हैं। मगर क्र्रिकेट के हल्ले में सबकुछ डूब जाता है। इसीलिए तो क्र्रिकेट है।

...........................सुखनवर

बाबा का फुग्गा कब फूटेगा

बाबा का फुग्गा कब फूटेगा
बाबा के केश घने हैं। अच्छे काले हैं। ब्रम्हचर्य, योग, शीर्षासन, महाभृंगराज तेल इत्यादि का प्रताप है। केशों कोे लहराते हुए, कभी बांध कर पोनी टेल बनाकर बाबा योग करवाते हैं। बाबा ने योग की मार्केटिंग की। अब तक योग सीखना सिखाना पुण्य का काम माना जाता था। कोई योग के लिए पैसा ले तो उसे पापी माना जाता था। बाबा ने उसका अच्छा व्यापार किया। थोक व्यापार। प्रायः 10 15 लोगों को इकठ्ठा करके योग शिक्षक योग कराते हैं ताकि हरेक पर पूरा ध्यान दिया जा सके। बाबा ने इस रिटेल को थोक में बदला। 2-5 हजार लोगोें को एक साथ योग सिखाया। बाबा ने इस योग की फीस लगाई। न्यूनतम रू 500। बाकी फिर डीलक्स योग 1000। सुपर डीलक्स योग 2000। हाई प्रोफाइल योग रू 5000, 10000। एक बार में एक शहर से बाबा 30 -40 लाख रूपया उठाते हैं। इसके अलावा हर रोज दानदाताओं को प्रेरित करते हैं। पातंजलि ट्रस्ट में दान के लिए। उससे भी पैसा आ जाता है। कुछ लाख रूपये और। हर शहर में जब बाबा पंहुचते हैं तो महीनों पहले एक आयोजन समिति बन जाती है। शहर के प्रमुख व्यापारी और भाजपा नेता उसमें जुड़ जाते हैं। इस योग शिविर के लिए लाखों रूपये चंदा होता है। मैदान बुक होता है। लाखांे रूपयों की हरे रंग की दरी बिछाई जाती है। माइक सिस्टम लगता है। सभी कुछ अति भव्य। हम सबने अपने शहरों में देखा ही है बाबा के साथ जो पवित्र व्यापारी पवित्र राजनेता और पवित्र धर्माचार्य बैठते हैं। इनके पास केवल सफेद पैसा होता है। कभी कभी तो सरकार इतनी बेशर्म हो जाती है कि इनसे इनका सफेद पैसा ही काला कहकर जब्त कर लेती है। इन पवित्र लोगों पर छापे मारे जाते हैं। करोड़ों रूपये जब्त होते हैं। फिर भी ये लोग पीछे नहीं हटते। अच्छे काम किये ही जाते हैं। किये ही जाते हैं। हाय रे संसार की महिमा अजब कौतुक।
संसार का नियम है कि ज्यों ही पैसा आता है आदमी को और पैसा कमाने की सूझती है। और साथ में पैसे को न्यायपूर्ण साबित करने के लिए कुछ भले काम करने की सूझती है। छोटे लोग मंदिर बनाते हैं। सड़क के बीचोंबीच बन जाए तो उसका पुण्य ही अलग होता है। इसके बाद राजनीति करने की इच्छा जोर पकड़ लेती है। बाबा ने जब अटाटूट धन कमा लिया तो उन्हें राजनीति करने की सूझने लगी। बाबा को लग रहा है कि जो लाखों लोग उनसे फीस लेकर योग सीख रहे हैं और एक एक दो दो दिन में उनकी वर्षों की व्याधियां दूर हो रही हैं तो इस चमत्कार को वोट में बदला जाए। पिछले चुनाव में बहुत सोच समझ कर भाजपा ने योजनाबद्ध तरीके से यह मामला उठाया था कि विदेशी बैंकों में विदेशों में जो भारतीयों का कालाधन जमा है उसे वापस लाया जाए। चुनाव में पटकनी खाने के बाद भाजपा ने इस मुद्दे को बाबा रामदेव को सौंप दिया। बाबा इस बॉल से अब कुछ दिन आप खेल लो। बाबा ने अपनी पार्टी बना ली है। चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी है। बाबा की आर एस एस से दोस्ती जगजाहिर है। भाजपा उनके साथ है ही। भगवा वस्त्रधारी सब एक हो चुके हैं। तो बाबा ने कहा कि काला धन वापस आना चाहिए। इससे देश की सभी समस्याओ का हल हो जाएगा।
होम्योपैथी और आयुर्वेद में रोग को जड़ से खत्म करने की बात की जाती है। केवल लक्षण और बाहरी दर्द को खत्म नहीं करना है बल्कि रोग को जड़ से उखाड़ देना है। बाबा ने यहां थ्योरी बदल दी। रोग की जड़ के बारे में बात ही नहीं करते। काला धन वापस ले आओ। बस। सारा देश ईमानदार हो जाएगा। सरकारी लोग रिश्वत खाना बंद कर देंगे। व्यापारी रिश्वत देना बंद कर देंगे। भ्रष्टाचार बंद हो जाएगा। बाबा के पास हर चीज का हल है। भ्रष्टाचार मिटाओ। कांग्रेेस मिटाओ। मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी चिदंबरम सबको हटाओ। बाबा के पास हर समस्या का हल है। करेंसी बदल दो काला धन बाहर आ जाएगा। संधि तोड़ तो काला धन वापस आ जाएगा। पर बाबा यह नहंीं बताते कि जिन लोगों का काला धन विदेशों में रखा है उनके साथ क्या सलूक किया जाना है। ये काला धन हमारे देश की पवित्र लोकतंात्रिक व्यवस्था की पैदाइश है। भ्रष्टाचार कोई व्यवस्था नहीं है। यह हमारी व्यवस्था की पवित्र संतान है। जब तक व्यवस्था नहीं बदलोगे तब तक भ्रष्टाचार जारी रहेगा। बाबा तो निजाम बदलने की बात ही नहीं करते। गरीब किसान मजदूर की बात ही नहीं करते। देश की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या है। उसकी बात नहीं करते।
हर समझौते हर ठेके में पैसा लगता है। चुनाव लड़ने में हर चुनाव क्षेत्र में आज कल करोड़ों रूपये लगते हैं। बाबा चुनाव लड़ेंगे तो उनके उम्मीदवारों को भी हर चुनाव क्षेत्र में करोड़ों रूपये खर्च करने होंगे। ये कहां से आएंगे। बाबा किसी को मुफ्त में योग सिखाते नहीं। बाबा का काम कौन कार्यकर्ता मुफ्त मेें करेगा। ये करोड़ों रूपये कहां से आयेंगे। सवाल इस व्यवस्था का है जिसमें आर्थिक असुरक्षा इतनी है कि हर कोई ज्यादा से ज्यादा कमा लेना चाहता है। इसीलिये आज कल बाबा बनना भी धंधा हो गया है। संतों के रंगीन विज्ञापन छपते हैं। इंडिया टुडे में जैन संत अपने आपको विज्ञापित करते हैं। क्यों ? संतों को विज्ञापन की क्या जरूरत ? प्रतियोगिता का जमाना है। संतगिरी में भी प्रतियोगिता है। प्रवचन देना भी धंधा है। हर चीज धंधा है। तो जरूरत इस व्यवस्था को बदलने की है जिसकी चिंता कम से कम बाबा रामदेव को तो नहीं है। इसी लिए ये फुग्गा फूट्रेगा। कब फूटता है यही देखना है। ..........सुखनवर