Monday, April 27, 2009

प्रधानमंत्री पद की मार्केटिंग

कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या। कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातों का क्या। ये मनोजकुमार इतने बड़े भविष्यवक्ता कैसे हो गये मेरी समझ में नहीं आता। उन्हें कैसे पता चल गया कि चुनाव में वादे किये जाते हैं और नाते रिश्तों को लोग भूल जाते हैं। आगे कवि कहता है कि सारे नाते रिश्ते झूठे हैं और इन नातो का भरोसा न करना और अपने भरोसे रहना। ये बात वोटर को भी समझ में आ गई। वो वोट डालने ही नहीं गया। जब आतंक का कहर बरपा था तो संवेदनशील लोग भावुक होकर मोमबत्ती जला रहे थे। अब चुनाव का कहर बरपा है तो कह रहे हैं कि वोट जरूर देना। अच्छे उम्मीदवार को देना। अच्छा उम्मीदवार कौन है? ये संवेदनशील लोग नहीं बताते। पर कहते हैं वोट जरूर देना। ये लोग अंग्रेजी पढ़े लोग हैं। ये खुद वोट डालने नहीं जाते और जाते हैं तो किस किस को जिताते हैं ये पढ़े लिखे लोगों वाले मतदान क्षेत्रों का परिणाम देखने से पता चल जाता है। इनने सबकुछ पढ़ा है। ये सब कुछ जानते भी हैं। जब हत्यारे लुटेरे कालाबाजरिये चुनाव में खड़े हों तो वोट दिया या न दिया लोकतंत्र का तो भटरा बैठना ही है। गरीब जानता है। उसे लोकतंत्र के चांचले समझ में आते हैं। उसे अपने वोट की कीमत मालूम है। उसके वोट की कीमत दो कौड़ी की नहीं है। इसीलिये आजकल गरीब डंके की चोट पर जुलूस में जाने का, वोट डालने का हर चीज का पैसा ले लेता है। बस या ट्रक में बैठने के पहले ले लेता है। खाना पानी अलग। देने वाले देते हैं।
आजकल मार्केेटिंग का जमाना आ चुका है। हर चीज को बाजार में बेचना हैं। लोकतंत्र को भी बाजार में बेचना है। इसीलिये टी वी में बेशर्म विज्ञापन आ रहे हैं। हम तीन रूपये किलो अनाज देंगे। दूसरा कहता है हम दो रूपये देंगे। एक कहता है कि तीन लाख पर इन्कमटैक्स मुक्त कर देंगे। दूसरा कहता है हम तो पहले ही कह चुके हैं। एक कहता है कि हम लाडली लक्ष्मी योजना शुरू करेंगे तुम्हारी लड़की को एक लाख रूपये देंगे। दूसरा कहता है कि हमारी धनलक्ष्मी योजना तो पहले से है उसमें तो हम दो लाख रूपये देंगे। एक कहता है कि किसानों के सारे कर्जे माफ कर देंगे दूसरा कहता है कि हमने तो पहले ही कर दिये हैं। गरीब पूछता है भैया अब तक तुम्हें कौन रोक रहा था हमारी गरीबी दूर करने से। अनाज सस्ता देना था तो चुनाव तक क्यों रूके थे ? लाडली लक्ष्मी हो या धनलक्ष्मी हो भला तो हमारी लड़की का ही होना है अब तक क्यों रूके हो ? कर्जे माफ करना है, सस्ता कर्जा देना है तो दो ना भैया। कौन तुम्हें रेक रहा है।
एक शब्द है विकास। इससे बड़ा जालसाजी भरा शब्द लोकतंत्र में नहीं है। जो हुआ है वो विकास है। जो नहीं हुआ वो भविष्य में होने वाला विकास है। विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है। ऐसा कहते हुए शूरवीर चारों तरफ देखते हैं मेरी मिसाइल से कोई बचा तो नहीं । क्या बाकी आदमी विनाश के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं ? विकास वो है जो हम करते हैं। चाहे पांच साल में करें या पांच महीने में। ये विकास किसका है। विकास उसका है जो लखपति से करोड़पति बन गया। उसे अपनी मंहगी मोटरगाड़ी में चलने के लिए अच्छी सड़क बना दी। गाड़ी खरीदने को कर्जा दे दिया। उद्योग लगाने को कर्जा दे दिया। उद्योग डूबने पर मदद के लिए पैसा दे दिया। फिर उद्योग के लिए सब्सिडी दे दी। फिर बैंक का कर्जा माफ कर दिया। विकास ही विकास। बाकी एक जुमला तो है ही जिसे हर विरोधी वक्ता अपने भाषण के शुरू में गायत्री मंत्र के समान बोलता है ’’ कांग्रेस ने पिछले पचास सालों में कुछ नहीं किया’’। शर्म इनको मगर नहीं आती।
देश की सबसे पुरानी पार्टी की महिमा अपरंपार है। एक परिवार मंे तीन सदस्य हैं। मंा, बेटा, बेटी। ये सब कुछ तय करते हैं। यही वोट लेते हैं। ये ही प्रचार करते हैं। ये ही सवाल करते हैं। ये ही जवाब देते हैं। ये राजनीति के बहुत कच्चे खिलाड़ी हैं। पर ईमानदार हैं भोले हैं। राजीव गांधी भी भोले थे और जबरदस्ती राजनीति में खींच लाये गये थे। आरोप ये है कि कांग्रेस में वंशवाद है। ये सही है। पर ये इसलिये है कि कांग्रेस में जो लोग हैं वो इनके नाम पर यस सर बोलते हैं। ये कैरम की लाल गोटी हैं। ये ताश के खेल का इक्का हैं। इसीलिये ये हाईकमान है। सब इनके पीछे इसलिये खड़े हैं कि यदि ये हट जायें तो किसी के कंधे पर सिर न बचे। सब एक दूसरे का गला काट दें। चुनाव में टिकट उसे दिया जायेगा जिसके गुट का नेता टिकट हासिल करने के युद्ध में विजयी होगा। चुनाव जीतना जरूरी नहीं है। टिकट जीतना जरूरी है। जिसने टिकट ले ली उसने मैदान जीत लिया। अब चुनाव में उसकी जमानत जब्त हो जाये तो उनकी बला से। रीवां सतना क्षेत्र अर्जुन सिंह के कार्यक्षेत्र हैं। उस क्षेत्र की टिकट उन्हंे नही दी गई। मिलती तो भी शायद न जीतते लेकिन अभी तो पक्का है कि ये सीटें कांग्रेस नहीं जीत रही। मगर चेहरे पर शिकन नहीं है। क्योंकि टिकट युद्ध में उन्हें हराया जा चुका है।
कहने को कांग्रेस में लोकतंत्र है पर नीचे से ऊपर तक केवल मनोनयन है। हर प्रदेश में अनेक सेनापति हैं। उनकी अलग अलग सेनायें हैं। ये सेनायें कभी विरोधी दल से नहीं लड़तीं। ये केवल दूसरे सेनापतियों की सेनाओं को पराजित करना चाहती हैं। इन सेनाओं का एक ही काम है-सेनापति की जैजैकार करना। पूरे देश के ऐसे तमाम सेनापति केवल एक परिवार के सामने नतमस्तक हैं। वही इनमें युद्धविराम करा कर रखता है। एक बार शून्य पैदा हुआ जब पी वी नरसिंहाराव प्रधानमंत्री बन गये थे। उनके समय में कांग्रेस पार्टी का जो सत्यानाश हुआ वो कोई कैसे भूल सकता। वो मौनी बाबा कहलाते थे। वो भी इसीलिये प्रधानमंत्री थे क्योंकि वो तो बन गये थे पर कोई दूसरा न बन पाये। जैसे सबके झगड़े में देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन गये थे वैसे ही कांग्रेस के झगड़े में नरसिंहाराव बन गये थे। और तब तक बने रहे जब तक कांग्रेस को हरवा नहीं दिया। उपचार तब ही हो सका जब सोनिया जी मैदान में उतारी गईं। जब हैडमास्टर आया तभी कक्षा शांत हुई।........................................सुखनवर

Monday, April 20, 2009

वो मुझे इग्नोर करती है कभी मेरा नाम तक नहीं लेती

एक आदमी रात के अंधकार में कमरे के अंदर अकेला घूम रहा है। आदमी बुजुर्ग है। हालांकि मानने को तैयार नहीं है। चांद निकली है। रूई के समान बड़ी बड़ी मूंछें ओठों के उपर रखी हैं। देखने से ही लगता है कि आदमी की नींद उड़ चुकी है। आदमी कई बरसों से सोया नहीं है। हो सकता है पंाच बरसों से न सोया हो। कई लोगों का कहना है कि पांच बरस पहले भी ये सोता नहीं था पर किसी को पता नहीं था कि ये जाग रहा है। उस समय भी इसकी नींद हराम थी।
ये आदमी कौन है ? आखिर चाहता क्या है ? वो बार बार एक गोरी महिला की तस्वीर के पास जाता है। उसे चुनौती देता है। तू सामने तो आ फिर मैं बताउंगा। कभी कभी मुक्का दिखाता है। रात में कई बार नाम ले लेकर कोसता है। फिर उठता है और कुर्ता पाजामा उतारकर खाकी हाफ पेंट पहन लेता है। नमस्ते सदा वत्सले करता है। कमरे में घूमता रहता है। फिर नागपुर फोन लगाता है। काफी देर तक घंटी जाती है मगर फोन कोई नहीं उठाता। वापस आकर फिर जोधपुरी कोट पेंट पहन लेता है। आदमकद आईने के सामने खड़ा हो जाता है। काफी देर तक अपने को निहारता रहता है। आखिर मुझमें क्या कमी है ? उसके पास एक पगड़ी भी है उसे लगाकर देखता है। केवल दाढ़ी नहीं है वरना दिखता तो मैं भी वैसा ही हूं। अंग्रेजी मैं भी बढ़िया बोल लेता हूं। बल्कि मुझे हिन्दी आती है और उसे नहीं आती। फिर मुझमें क्या कमी है।
अचानक सिर धुनने लगता है। फिर कुछ नहीं सूझता। क्या करूं ? कहां जाऊं ?
एक परकीय काया का प्रवेश
प्रश्न: तेरा कष्ट क्या है बाबा ?
उत्तर: एक कष्ट हो तो बताऊं ?
प्रश्न: चलो एक ही बता दो ।
उत्तर: मैं उसे इतना कोसता हूं मगर वो मेरा नाम तक नहीं लेती। इससे मेरी खीझ और बढ़ जाती है। मैं आधा घंटा भाषण देता हूं तो सौ बार उसका नाम लेता हूं। वो एक घंटा भाषण देती है तो भी मेरा नाम तक नहीं लेती। मुझे इग्नोर करती है।
प्रश्न: और बोलो
उत्तर: ये इतने कठिन समय चुनाव हो रहे हैं कि कोई मुद्दा ही नहीं है। बड़ी मुश्किल से अपने गठबंधन और अपनी पार्टी के लोगों को तैयार किया कि एक मुद्दा तो ये मान लो कि देश के सामने सबसे बड़ी समस्या मेरी बढ़ती उम्र है। यदि इस बार भी नहीं बना तो अगला जन्म कब होगा कब मैं बड़ा होउंगा कब मैं प्रधानमंत्री बनूंगा ? साले सब गठबंधन वाले छोड़के चले गये। जोे बचे हैं वो चोरी छुपे कहते हैं कि अपनी तो सरकार नहीं बनना ये प्रधानमंत्री कहां से बनेंगे। कह दो कि हां बुढऊ तुम्हीं प्रधानमंत्री बनोगे। जाता क्या है। मेरी पार्टी के लड़के कहते हैं जब तक ये रहंेगे किसी को न बनने देंगे इसीलिए काहे को पंगा लें ?
प्रश्न: और बोलो बाबा
उत्तर: जब प्रधानमंत्री का तय हो गया तो मैंने आतंकवाद का मुद्दा उठाया तो ये कहते हैं कि कंधार कांड के बारे में क्या कहा्रेगे ? तब क्या कर रहे थे। बुरा फंसा दिया है।
बड़ी मुश्किल से एक और मुद्दा पकड़ के लाया। स्विस बैंक वाला। कहा देश का पैसा देश में लाओ। तो अपने ही लोग पीछे पड़ गये। कहने लगे सर जी अब ज्यादा न उछालो इस मामले को। हम लोगों की मेहनत की कमाई का पैसा है जो वहां जमा किया है। जब चंदा लेते हो तब नहीं पूछते धन कैसा है काला है कि सफेद है। ज्यादा स्विस बैंक स्विस बैंक करोगे तो नीचे से दरी खींच देंगे। एक तो तुम जैसी हारी हुई बाजी पर पैसा लगाएं और तुम हमारी जेब कटवाओ। रहने दो हमें नहीं लड़वाना तुम्हें चुनाव।
प्रश्न: और बोलो बाबा, बोलते जाओ। आज मन की पूरी भड़ास निकाल लो। कम से कम चैन से सो तो सकोगे।
उत्तर: एक वो वरूण गांधी है। लड़का है। उसे लगा कि वहां राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन सकता है तो यहां इस तरफ से मैं क्यों नहीं बन सकता। उसकी थोड़ी रस्सी क्या छोड़ी वो तो पूरी पाटीं के कपड़े नुचवा बैठा। उधर नरेन्द्र मोदी अलग उम्मीद से है। मुंह चलाना मैंने सिखाया आज ये मेरी ही रोजी रोटी छीनने में जुटे हैं। वरूण को बोला था कि थोड़ा माहौल गर्म करो मगर उसने तो आग ही लगा दी।
मैंने सोचा कि मनमोहन सिंह तो अर्थशास्त्री हैं। भाषण देना तो आता नहीं। उनको खुली बहस की चुनौती दे दी। मैंने सोचा कि अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव जैसी वाद विवाद प्रतियोगिता हो जाये तो मैं जीत जाऊंगा। मगर वो मुकाबले के लिए उतरे नहीं कहने लगे कि संसद में जब बोलने का मौका आता है तब या तो उपद्रव करते हो या बायकाट करते हो। हम तुमसे टी वी में क्यों बहस करें। हम तो तुम्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानते ही नहीं।
प्रश्न: फिर
उत्तर: फिर मैंने सोनिया को चुनौती दी
प्रश्न: फिर
उत्तर: (फूट फूट कर रोने की आवाज आती है।) उसने मेरी चुनौती सुनी तक नहीं। वो मुझे इग्नोर करती है। कभी मेरा नाम तक नहीं लेती। मैं उसे देख लूंगा।
प्रश्न: मगर कब ?
इतना कह कर वह परकीय आत्मा उड़ गई। बुजुर्ग फिर कमरे मैं बेचैन चक्कर लगा रहे हैं।
....................................सुखनवर

Sunday, April 19, 2009

एक वो गांधी एक ये गांधी

एक वो गांधी एक ये गांधी
इन दिनां में महात्मा गांधी को लेकर चिन्ता में हूं। उनके नाम का बहुत चर्चा है। उनका हमनाम जेल में है। वो भी कई बार जेल में रहे। जितने बार वर्तमान जेलयात्री का नाम लिया जाता है उतनी बार महात्मा गांधी की याद दिलाई जाती है। वो महात्मा थे तो ये आत्मा तो होंगे ही ऐसा भ्रम पैदा किया जा रहा है। उनने अभी अभी राजनीति में कदम रखा है। और वो भी भाजपा के परचम के तले। वरूण गंाधी खूब प्याज खा रहे हैं । नए मुल्ला हैं। पहले बोलते हैं फिर आडवाणी जी से पूछते हैं कैसी रही। वो कहते हैं बहुत अच्छे, खेंचे रहो। तुम्हें हम पार्टी का महासचिव, पार्टी की केन्द्रीय कार्यकारिणी में लेंगे। तुम चलो नागपुर। तुम्हें बाॅस से मिलवाते हैं। इन पार्टियों में जिस दिन आदमी पार्टी में शामिल होता है उसी दिन पार्टी का महासचिव बना दिया जाता है। केन्द्रीय कार्यकारिणी में शामिल हो जाता है। उसे ये गलतफहमी रहती है कि पार्टी मंे उसकी बड़ी पूछ है। वो नहीं जानता कि वो केवल एक मोहरा है। उसका चेहरा या उसके परिवार का इतिहास बिकाउ है। इसीलिए उसकी पूछ है।
वरूण जी युवा हैं। मुझे लगता है कि उनने वर्तमान भारतीय मीडिया का गहराई से अध्ययन किया है। इसीलिये उन्हें समझ आ गया कि राष्ट्रनेता बनने के लिये कुछ करना जरूरी नहीं है बस मुंह चलाना चाहिये और फिर मीडिया को समझा देना चाहिये कि हमने मुंह चला दिया है। अब आप अपना मंुह चलाओ। फिर कुछ करने की जरूरत नहीं। बाकी काम उत्साही चैनल वाले खुद कर लेंगे। वो जाकर हर पार्टी के नेता से पूछ लेंगे। प्रशंसा निंदा भत्र्सना करवा देंगे और उचित भुगतान मिलने पर दो चार दिन बस आप होंगे और टीवी चैनल के उत्साही छोकरे होंगे। यदि आप चाहें तो आपके किये के बारे में परिचर्चा की जा सकती है। जिसमें पूर्व घोषित टीमें खेलेंगी। एक पूरी तरह विरोध करेगी। एक पूरी तरह समर्थन करेगी। मीडिया चैनल के समन्वयक का काम तो देखने लायक रहता है। वो ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे न्यायाधीश और विरोधी पक्ष के वकील हो। वो कड़ी पूछताछ करते हैं और तत्काल निर्णय पारित करते जाते हैं। तो वरूण गांधी अभी चुनाव तक पूरा खेल खेलेंगे। वो हर बाॅल खेलेंगे। उनका सौभाग्य है कि उन्होंने भाजपा का दामन थामा है।
वरूण गांधी से पूछा गया कि आपने सी डी मंे कहा है कि हम मुसलमानों के हाथ काट डालेंगे। उनने कहा कि हमने नहीं कहा। ये सी डी झूठी है। उनसे कहा गया कि आप साबित करिये की सी डी झूठी है तो उनने कहा कि हम साबित नहीं करेंगे हम जेल जायेंगे। लड़का भाजपा का मुल्ला है। हर बात को इशू बनाना जानता है। न्यूज में रहना जानता है। अपराध को वीरता बनाना जानता है। अदालत ने कहा कि हमने आपको गिरफ्तार करने का आदेश नहीं दिया। वरूण ने कहा कि हम तो गिरफ्तार होने के लिए आए है। और गिरफ्तार हुए बिना नहीं मानेंगे। आप गिरफ्तार नहीं करेंगे तो भी हम उपद्रव करंेगे और आप गिरफ्तार करेंगे तो भी हम उपद्रव करेंगे। अदालत को अंत मंे कहना पड़ा कि आप थाने चले जाइये और चाहे जिस धारा में गिरफ्तार हो जाइये। गिरफ्तार वरूण जेल रवाना हो गये। उनके साथ जमा किये गये कई हजार लोग सड़कों पर उपद्रव करते रहे। न्यूज बनाते रहे। उपद्रव का काम पूर्ण हुआ। वापस गये । न्यूज बन गई। वरूण की माता जी बहुत ही अहिंसावादी है। उन्हें जानवरों पर अत्याचार बिल्कुल मंजूर नहीं। कुत्ते बिल्ली चूहे उनके प्रिय जानवर हैं। मुसलमानों को वो जानवर नहीं मानती। इसीलिये उनके लड़के को आजादी है कि वो उनके हाथ पैर काट डालने का आव्हान करे। मेनका गांधी अपने शहीद बच्चे से मिलने गईं। बाहर निकलकर उन्होंने बताया कि वरूण अभिमन्यु है। यानी वो द्रौपदी हुईं। स्वर्गीय संजय गांधी अर्जुन हुए। वो अपने को द्रौपदी क्यों मान रही हैं ? वरूण ने जो कुछ कहा वो अच्छी तरह सोच समझ कर कहा। उसके बाद जानबूझ कर गिरफ्तार हुए। बाद में उनपर रासुका लगा। वो अभिमन्यु कहां हुए। वरूण एक टुच्चे अपराध में जेल में हैं। मगर उनकी माताजी इस कदर गंभीर भाव बनाए हैं जैसे वो शहीद की मां हों।
वरूण चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा की टिकट पर। इस सीट से उनकी मां मेनका गांधी सांसद रह चुकी हैं। उनके मुद्दे क्या हैं? उनका मुद्दा है अधिकाधिक उग्र होकर खबरों में छाना। वो बाही तबाही बककर छा चुके हैं। भाजपा की ंिचता ये है कि चुनाव अभी काफी दूर हैं इस तरह के मुद्दे तत्काल भुनाने के लिए हैं। दिन बीतते ही ये बुलबुले के समान बैठ जाते हैं। इसीलिए किसी न किसी तरह इस मामले को जीवित रखना है। खबरें अच्छी आ रही हैं। खबरचियों ने फैला दिया है कि वरूण के मामले से चुनावों में उ प्र में भाजपा की स्थिति सुधरी है। कई सीटों पर फायदा हो रहा है। हिन्दु मुसलमान धर्म के नाम पर इकठ्ठे हो रहे हैं। राजनाथ सिंह की बांछंे खिलीं हुई हैं। सारे नेता यू पी के हैं और यूपी में राम मंदिर भी है और यू पी में भाजपा की लुद्दी सुटी हुई है। वरूण के मामले से भाजपा पहले सकपकाई मगर फिर आत्मविश्वास लौट आया। सोचा यूपी में इसी से नरेन्द्र मोदी का काम ले लेंगे। बेवकूफ है जो कहोगे उससे चार बोल ज्यादा ही बोलेगा। यूपी में विनय कटियारों की कारतूस बेकार हो चुकी हैं। समय आ गया है कि कोई नया बड़बोला तैयार किया जाए। वो तैयार हो चुका है। भाजपा का कहना है कि वो विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। सच है उसने वरूण गांधी का विकास किया है।
नब्बे के दशक को याद करिये। जब बावरी मस्जिद गिराई गई थी। सड़कों पर यही आडवाणी, यही उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा क्या क्या नहं कहा करती थी। साध्वी ऋतंभरा ने तो कीर्तिमान बनाया था। उनके उच्च विचारों को सुनने से सिर शर्म से झुक जाता था। ऐसी पार्टी चाहती है कि उसे राष्ट्र की बागडोर सौंप दी जाए। सौंप दीजिये। .....................................सुखनवर