Thursday, July 21, 2011

बरसात हो रही है

बरसात हो रही है। चारों ओर पानी ही पानी है। जून के महीने में बारिश शुरू हो जाती है। कोर्स की किताबों में लिखा रहता था कि वर्षा ऋतु का काल 15 जून से 15 सितंबर तक होता है। पर बारिश एक जून से 30 जून तक कभी भी शुरू हो सकती है। नहीं भी हो सकती है। कोई जरूरी नहीं कि जून मंे पानी बरसे। बादलों को भटकने की आदत होती है। हमारे लिए बारिश का मतलब हमारे इलाके में बारिश से होता है। हमारे इलाके में पानी नहीं गिरा यानी हमारे देश में सूखा पड़ गया भले ही देश के दूसरे हिस्सों में बाढ़ आ गई हो। देश काफी बड़ा है। कहीं पानी गिरता है कहीं नहीं गिरता। किताबों में पढ़ने से ऐसा लगता था कि राजस्थान में पानी गिरता ही नहीं है। इसीलिए वहां रेगिस्तान है। बाद में समझ में आया कि राजस्थान तक आते आते सारे बादल बरस चुके होते हैं इसीलिए पानी नहीं गिरता। फिर भी राजस्थान के लोग बिना पानी के भी सदियों से लड़ते चले आ रहे हैं। हाथों में तलवार लिए। वैसे पुराने जमाने में भी इतना पानी तो गिरता ही था कि राणा प्रताप को घास मिल जाती थी रोटी बनाने के लिए और जंगल थे भटकने के लिए।
समय के साथ हमारी सोच बदल गई है। हर साल मौसम विभाग को बताना होता है कि मानसून कब आएगा। देर से आएगा तो क्यों और जल्दी आएगा तो क्यों। अब कारण और उसका प्रकाशन बहुत जरूरी है। अब विज्ञान और मीडिया का जमाना है। जवाब देना पड़ता है। मीडिया की पहुंच बहुत भयानक है। वो कैमरा बैग थामे मौसम पंहुच जाते हैं। वहां सीधे प्रश्न दाग दिया जाता है बताईये मानसून कब आएगा। बड़े बाबू घबरा जाते हैं। वो घबराकर फाइल की नोटिंग निकाल कर पढ़ देते हैं जो साहब के पास से दस्तखत होकर आई है। दूसरे दिन मीडियाकर्मी फिर पंहुच जाता है। बहुत मुस्तैद है। बाहर ही खड़ा होकर आम जनता को संबोधित करने लगता है। देश में सूखा पड़ा है। और देश का मौसम विभाग सो रहा है। बड़ा सवाल ये है कि ये मौसम विभाग कब सही बता पायेगा कि पानी कब बरसेगा। एक दिन कुछ कहता है और दूसरे दिन कुछ। कल कहा था कि मानसून आ रहा है और आज तक मानसून का कोई अता पता नहीं है। जब तक अपने ए सी कमरों से निकलकर बादलों के तरफ झांकने की कोशिश मौसम विभाग नहीं करेगा। तब तक पानी नहीं गिर सकता। अब देखना ये है कि मौसम विभाग की नींद कब टूटती है। कैमरा मैन राम प्रसाद के साथ मैं लक्ष्मणप्रसाद।
मौसम में उथलपुथल पहले भी होती थी। अब भी होती है। हजारों सालों से मौसम अपना काम कर रहा है। कभी बरसात में बारिश होती है। कभी नहीं होती। सूखा पड़ जाता है। कभी कई साल तक ये चलता है तो अकाल पड़ जाता है। पर पहले कारण नहीं पूछा जाता था। अब सैटेलाइट है। वैज्ञानिक उपकरण हैं। तो जवाब देना पड़ता है। जवाब भी तय है। जंगल कट गये हैं। गर्मी बढ़ रही है। संतुलन बिगड़ गया है। ग्रीन हाउस इत्यादि। कारण बताने के लिए कुछ शब्द तय हो गये हैं। यदि बेमौसम पानी गिर जाए तो उसे वेस्टर्न डिस्टरबैंस कहते हैं। इसे हिन्दी में बताया ही नहीं जा सकता। मजा ही नहीं आता।
हमारे लिए बरसात स्कूल शुरू होने का मौसम था। जून का अंत आते आते बारिश शुरू हो जाती थी। कभी पुरानी ड्रेस और बरसाती निकाल दी जाती थी कभी नई खरीदी जाती थी। जब पानी गिरता था तो हल्की हल्की ठंड लगती रहती थी। हाफ पेंट हाफ शर्ट के कारण हाथ पैरों में ठंडक रहती थी। जब पानी गिरता था तो कक्षा में भी टपकता था। कक्षा में अंधेरा रहता था। उसी अंधेरे में पढ़ाई चलती रहती थी। कभी कोई छुट्टी नहीं। स्कूल मंे और फिर मुहल्ले में और फिर घर के आंगन में पानी भरा रहता था। उसी में पांव मारते नहाते थे । कपड़े कीचड़ में लतपथ। उस समय फोड़े बहुत हुआ करते थे। उनके निशान कुछ कुछ तो आज तक हैं। सल्फा पेंटिड नाम की दवाई सबसे तेज मानी जाती थी। पेनिसिलिन का इंजेक्शन रामबाण होता था। फोड़े के लिए चीरा लगवाना पड़ता था। शाम को पंखियां निकलती थीं तो घर भर जाता था। बरसात में प्रायः बिजली चली जाती थी तो लालटेन जलती थी। पंखे ट्यूबलाइट उस समय केवल बड़े घरों की शान थे। रेडियो बहुत बहुमूल्य था। इसीलिए कवि को जिंदगी भर बरसात की रात नहीं भूलती थी।
स्कूल में फुटबाल का ग्राउंड था। बरसात में फुटबाल का मजा ही कुछ और है। गोल के पास कीचड़ में फिसलते और गोल मारते तो आनंद ही कुछ और होता। इस आनंद की समाप्ति तब होती जब कीचड़ से सने हंसते खिलखिलाते घर पंहुचते और मां की डांट पड़ती।
.....................................सुखनवर

Friday, July 15, 2011

बिना इक्कों के ताश की गड्डी

मेरे हाथ में ताश की गड्डी थमा दी गई है और हर कोई उम्मीद करता है कि मैं इक्का दिखाऊं। मैं कहां से इक्का दिखाऊं। मेरे पास जो पत्ते हैं उनमें इक्के हैं ही नहीं। बहुत दिनों से ये चल रहा था। हर कोई कह रहा था खाली जगह भरो। मंत्रीमंडल के मंत्रीगण लगातार जेल जा रहे हैं। कुछ नए लोगों को मौका दो ताकि वे भी अपना हुनर दिखा सकें। मेरे पास चुनाव का कोई मौका नहीं था। दूसरी पार्टी के मिनिस्टरों की जगह खाली हुई थी। वो बताएं किसको बनाना चाहते हैं। वो तय ही नहीं कर पा रहे थे। ममता बनर्जी चाहती थीं कि वो चीफ मिनिस्टर भी रहें और रेल मिनिस्टर भी। उनकी पार्टी में भी बहुत से लोग उनकी जगह लेना चाहते हैं पर वो देने को तैयार नहीं हैं। उन्हंे लगता है कि आज किसी को बनाया तो कल वो सिर पर चढ़ जाएगा। वही डर जो मायावती को है।
डी एम के की हालत तो आप जानते ही हैं। सब भगे फिर रहे हैं। वहां घर के आदमी के अलावा मिनिस्टर बनाते नहीं हैं। टेलिकाम मंत्री के अलावा कुछ बनते नहीं हैं। स्पेक्ट्रम के अलावा कुछ जानते नहीं हैं। बी एस एन एल की ऐसी तैसी हो गई मिनिस्टर साहब को कोई फर्क ही नहीं है। उनकी बला से। ऐसे तो देश के मंत्रालय चल रहे हैं। शरद पवार हैं। खेती से लेकर क्रिकेट तक सब कुछ सम्हालना चाहते हैं। उन्हें भी कुछ बोल नहीं सकते। कृषि मंत्रालय कैसे चल रहा है भगवान ही जानता है। शरद पवार पुराने घाघ कांग्रेसी हैं। बहुत हुनर पैंतरे जानते हैं। कहीं फंसते नहीं हैं। लड़की दमाद लड़के बच्चे सबको सांसद विधायक बना दिया है। कृषि उत्पादन घट रहा है। खेती घाटे का सौदा हो गई है। लोग खाएंगे क्या जब अनाज पैदा ही नहीं होगा।
फिर भी साहब किया। मंत्री मंडल में फेरबदल किया। इस बार मैंने एक काम अपने मन का किया। पहले से लिस्ट निकलवा दी। जब मेरे को कुछ करने ही नहीं देना है तो मैं क्यों बुरा बनूं। लो बिगाड़ लो जिसको जो कुछ बिगाड़ना है। मुझे तो ताश के पत्ते फेंटना थे। दुक्के तिक्के बदलना थे। इंट की जगह लाल पान और हुकुम की जगह ईंट रखना थी। अब लोग कह रहे हैं मजा नहीं आया। पहले कहते थे इक्का दिखाओ। जब दिखा दिया तो कहने लगे कि ये र्तो इंट का है हमें तो हुकुम का इक्का देखना है। सब तो एक जैसे हैं। किसे बनाओ और किसे हटाओ। इस तरह से देश की सरकार चल रही है। क्या खाक चल रही है। जहां प्रधानमंत्री अपनी मर्जी न चला सके वहां सरकार चलाने का मतलब क्या है।
पहले लालू वगैरह थे तो हंसी ठठ्ठा करके देश को उलझाए रखते थे। अब तो मंत्रीमंडल में कोई है ही नहीं। मैं ही कुछ शेर शायरी कर लेता हूं। देश में पक्ष विपक्ष वकीलों के भरोसे चल रहा है। ये पेशेवर लोग हैं। बात को घुमाना जानते हैं। अभी आपने देखा बाबा रामदेव को कैसा घुमाया कपिल सिब्बल ने। अभी तक बाबा को चक्कर आ रहे हैं। वैसे हमारे देश को वकालत के पेशे से काफी कुछ मिला। नेहरू और गांधी भी वकील थे। उन्हंे बात को रखना और मनवाना आता है। जब से टेलिविजन पर 24 घंटा न्यूज चैनल चालू हुए हैं हर पार्टी को कुछ लोग रखना पड़ रहे हैं जो इनसे निपटते रहें। इसके लिए भी लोग नहीं मिलते। इन्हें पार्टी लाइन के अनुसार बोलना होता है। अब बताइये जब कोई पार्टी लाइन हो तब न उसके अनुसार बोले। इसीलिए वहां भी वकील साहब लोग लगा दिए हैं। उन्हें भी फायदा होता है। हम भी निश्चिंत हो जाते हैं।
मुझे तो मालूम है कि मेरा टेम्परेरी एपांइटमेंट है। राहुल बाबा अभी स्कूल में हैं। ज्योंही उनकी पढ़ाई पूरी हो जाएगी वो आ जाएंगे मैं चला जाऊंगा। ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ आता नहीं है। पर मैं कुछ कर नहीं पा रहा। मेरी मुश्किल ये है कि मैं कोई पॉलिसी बना कर लागू नहीं कर पा रहा हूं। मेरी अर्थशास्त्र की पढ़ाई बेकार चली जा रही है। वित्त मंत्रालय में भी एक वकील साहब बैठे हैं। गृहमंत्रालय में दूसरे वकील साहब बैठे हैं। ये अंग्रेजी के भरोसे मंत्रालय चला रहे हैं। जैसे भी चलेगा ये ही चलाएंगे। मैं किसी को बदल तो सकता नहीं। प्रधानमंत्री हूं। .........................................................सुखनवर

Friday, July 8, 2011

प्रधानमंत्री पद की इंटर्नी शिप

देखिये साहब मेरी इंटर्नशिप चल रही है। देर सबेर ये तो होना ही है। मुझे जिम्मेदारी सम्हालना ही है। आपने फिल्म गाइड देखी हो तो याद होगा कि देवानंद की कोई इच्छा नहीं थी आमरण अनशन करने की जैसे अभी रामदेव की नहीं थी। मगर जनता का दबाव ऐसा बना कि देवानंद के पास कोई चारा नहीं था आमरण को मरण में बदलने के अलावा। रामदेव तो खैर सलवार कुर्ते के कारण होनहार होते होते रह गये। तो मुझे मालूम है कि मुझे प्रधानमंत्री बनना है। बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी। कांग्रेस के नाम पर जो लोग देश में इकठ्ठे हैं वो मुझे प्रधानमंत्री बनाकर रहेंगे। मुझे अपना भविष्य साफ दिख रहा है।
मेरी हालत वही हैं चढ़ जा बेटा सूली पर भला करेंगे राम। कांग्रेस को आज मेरी जरूरत है। कांग्रेस के नाम पर इस समय सत्ता मिल सकती है। कांग्रेस में लोग बहुत होशियार हैं। उन्हें मालूम है कि वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। उन्होंने सच को स्वीकार कर लिया है। इसीलिए कांग्रेस में कुर्सी और पद लड़ाई नहीं है। लोग अधिक से अधिक से नंबर दो बनने की सोचते हैं। पहली सीट हमारे परिवार के लिए आरक्षित कर दी है। ये चालाकी नहीं तो और क्या है। ये तो वो सीट है जिसमें बम लगा है। कम से कम हमारे परिवार के लिए। मगर नहीं साहब बनना पड़ेगा। प्रधानमंत्री बनना पड़ेगा। जान का खतरा है तो भी बनो। देश के लिए बनो। आपको मालूम है देश क्या है ? आप समझते हैं 120 करोड़ लोग जहां रहते हें वो देश है। अरे नहीं साहब जहां एक करोड़ लोग रहते हैं वो दिल्ली ही देश है। यहां रहने वाले सौ दो सौ लोग देश चलाते हैं।
वैसे देश चलाना कोई कठिन काम नहीं है। दुनिया में अमेरिका का राज्य है। वो तय कर देता है कि हमें क्या करना है। व्यापार में अमेेरिकी कंपनियां का राज है। वो तय कर देती है कि हमारी आर्थिक नीति क्या होगी। अनाज चीनी के दाम सब ग्लोबल तय होते ैहैं। हथियार कंपनियां हैं वो हथियार दे देती हैं। अमेरिका है जो झगड़ा करा देता है। हम लोग हैं जो लड़ लेते हैं। हथियार खर्च हो जाते हैं। लड़ाई बराबरी की रहती है। दोनों के पास एक से हथियार हैं। लोग कहते हैं मनमोहन सिंह कुछ नहीं करते। कुछ नहीं कहते। अरे वो क्या कहें और क्या करें। उनके हाथ में क्या है। कल को मैं ही प्रधानमंत्री बन जाउंगा तो क्या कर लूंगा। मेरा और मेरे परिवार का एक ही काम है चुनाव जिताना और कांग्रेस की सरकार बनाना। अब इन कलमाडी को ही लें। वो क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे। जरूरत क्या है जब साधारण मंत्री बने रहने पर ही आप पूरा देश लूट सकते हो। अफसरों के और मजे हैं। जब तक मंत्री के मातहत रहो तब तक उसके साथ मिलकर कमाओ। जब मंत्री मुसीबत में पड़ जाऐ तो उसे दगा देकर कमाओ।
देश को चलाने के कुछ नियम समझ में आते हैं। मसलन कोई निर्णय मत लो। हमेशा टालो। निर्णय करना ही पड़ जाए तो ऐसा निर्णय करो कि समझ में ही न आए कि निर्णय आखिर क्या हुआ है। सारी परेशानी तो मध्यवर्ग को है। इसे अच्छी तनखाह दे दो सुविधाएं दे दो तो ये राजनीति छोड़कर प्रभु के गुन गाने लगता है। आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक हो जाता है। बजट में दस बीस हजार रूपये की छूट दे दो। मीडिया को मैनेज कर लो तो ये असली मुद्दे पर बात करना बंद कर देते हैं। तो देश तो चल जाता है।
असल चीज़ है मुनाफा। हम लोग इस दुनिया में क्यों हैं ? इसीलिए कि देशी विदेशी कंपनियांे को मुनाफा हो। जब तक हमारे जीने से मुनाफा होता है तब तक हम जीते हैं। जब हमारे मरने से मुनाफा होता है तो हमें मरना होता है। दुनिया चल ही इसीलिए रही है कि कुछ लोगों को मुनाफा हो रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध क्यों हुआ था ? क्योंकि इटली, जर्मनी, जापान को मुनाफा नहीं हो रहा था। उनने कहा हमें भी खिलाओ नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे। उनको नहीं खिलाया तो उनने पूरी दुनिया का खेल बिगाड़ दिया।
तो ऐसा है कि आप लोग देखेंगे कि मैं न चाहते हुए भी एक दिन इस देश का प्रधानमंत्री बनूंगा। इस देश की और मेरी नियति ही यही है। .................................................................सुखनवर

Wednesday, July 6, 2011

देश की जनता

अखबार रोज निकलते हैं। अखबार रोज पढ़े जाते हैं। अखबार पढ़ने के बाद घर में रखे जाते हैं। सुबह से रात तक कई किश्तों में अखबार पढ़ा जाता है। मनन किया जाता है। बहस की जाती है। अखबार में पत्रकार होते हैं। लेखक होते हैं। लेख और अन्य सामग्री लिखी जाती है। सम्पादकीय लिखा जाता है। यह जिम्मेदारी का काम होता है। लेकिन जब से टी वी आया तो खबरें पढ़ने की जगह खबरें देखने की चीज हो गई हैं। समय बदला और अब चौबीस घंटा समाचार दिखाने की जिम्मेदारी चैनलों ने ले ली है। ऐसे कई चैनल हैं। इसीलिए इनमें प्रतियोगिता है। और इसीलिए इसके मुंहचलाऊ पत्रकार दौड़ जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
कुछ तो इतने जोश में रहते हैं कि हकलाने लगते हैं। ये कहते हैं कि इनके पास समय बहुत कम है। इनके मुंह से शब्दों की बौछार निकलती है। इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि इनके ऑफिस में देश की जनता बैठी हुई है। ये तत्काल जान जाते हैं कि देश की जनता क्या जानना चाहती है। इन्हें हर रोज मुद्दा चाहिए। इसीलिए तेल की कीमतों में वृद्धि आदि इनके लिए वरदान बनकर आते हैं। दो तीन दिन उसमें निपट जाते हैं। यदि कोई मुद्दा नहीं मिलता तो फिर इन्हें मुद्दा बनाना पड़ता है।
चौबीस घंटा समाचार बटोरने के लिए बहुत से लड़के लड़कियां भरती हैं। ये बेचारे माइक और कैमरा लिए दौड़ते रहते हैं। राजनैतिक दलों ने इनसे निपटने के लिए कुछ लोग रख छोड़े हैं जो बहुत अभ्यास के साथ अटक अटक कर सम्हल सम्हल कर वक्तव्य देते हैं। कुछ केवल हिन्दी बोलते हैं कुछ केवल अंग्रेजी बोलते हैं। कुछ द्विभाषी भी हैं। कुछ केवल बदमाशी के लिए रखे गये हैं। ये ऐसे वक्तव्य देते हैं कि हल्ला मच जाए और मूल मुद्दा कहीं और चला जाए। बाइट लेने वालों के लिए ये सबसे उपयुक्त हैं।
अखबारों में समाचार अलग रहते हैं विचार अलग रहते हैं। जनता के और लेखकों बु़िद्धजीवियों के विचार अलग छपते हैं। अखबार और सम्पादक के विचार अलग छपते हैं। लेकिन इन चैनलों में विचार का कोई झंझट नहीं है। इनका खुद का कोई विचार है भी नहीं । इनका एक विचार है सनसनी और अधिक से अधिक विज्ञापन। इनके विचार बहुत तात्कालिक होते हैं। किसी से बात की और तुरंत मुंह मोड़ा और बातचीत को तोड़ा मरोड़ा और परोस दिया। ये छोकरे छोकरियां जिनका राजनैतिक ज्ञान शून्य है वो विश्लेषण कर देते हैं। ये समाचार नहीं बताते समाचार का विश्लेषण बताते हैं। इन्होंने दर्शक की ओर से सोचने समझने की जिम्मेदारी ले रखी है। ये एक घंटे में प्रतिशत में बता सकते हैं कि फलां मुद्दे पर देश की जनता क्या सोचती है। इनके पास पूरे देश से एस एम एस आ जाते हैं। इनका देश हमसे अलग है। हम तो एस एम एस करते नहीं।
पत्रकारिता में जिसे पीत पत्रकारिता कहा जाता है। घृणा से देखा जाता है। ऐसे अखबारों और इससे जुड़े लोगों को बिरादरी से बाहर रखा जाता है वही टी वी मीडिया में छाए हुए हैं। ये प्रायोजित कार्यक्रम बनाते हैं। ये प्रायोजित इंटरव्यू लेते हैं और प्रायोजित सर्वे करवाते हैं। हमारे देश में समाचार चैनलों को देखकर लगता है कि पूरा देश चोरी बटमारी लूट रिश्वत हत्या बलात्कार दुर्घटनाओं का शिकार है। पूरा देश बेइमानों और चोरों से भरा हुआ है। इसमें कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। इन चैनलों में देश की नारी कपड़े पहनती ही नहीं है। फिल्मों में नग्नता और हिंसा के अलावा कुछ नहीं हैं।
पर इस देश में बहुत कुछ अच्छा हो रहा है। नए उद्योग लग रहे हैं। बांध पुल सड़क बन रहे हैं। गांव गांव में कृषि में नए प्रयोग हो रहे हैं। समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है। बहुत से लोग बहुत मेहनत से अच्छा रच रहे हैं। अच्छा साहित्य रचा जा रहा है। अच्छी फिल्में बन रही हैं। अच्छी पढ़ाई हो रही है। बहुत सी नई खोजें हो रही हैं। विज्ञान आगे बढ़ रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में हम आगे बढ़ रहे हैं। नाटक हो रहे हैं। लोग कलाओं में रूचि ले रहे हैं। देश में जो कुछ अच्छा हो रहा है उसे दिखाने और बढ़ाने की जरूरत है। ...........................................सुखनवर