कल रात एक बड़ा भयानक सपना देखा। कुछ लोग अपनी अपनी पद्मश्री, पद्मभूषण सम्मान सरकार को लौटा रहे हैं। वो कहते जा रहे हैं कि हम इसके लायक नहीं। हमें आप लोगों ने गलती से दे दिया है। हमने तो मंागा भी नहीं था। हमें तो मालूम भी नहीं था कि इसका मतलब क्या होता है। जब सरकार दे रही थी तो उसे बताना चाहिये था कि हमें लेना पड़ेगा। हम मना भी नहीं कर सकते। नहीं तो देने वाले का अपमान हो जाता है। अब आप ही बताइये कि यदि एक दिन एक विज्ञापन में काम करने के लिये हमें 50 लाख मिल रहे हैं तो हमें क्या करना चाहिये ? क्या हमें नहीं लेना चाहिये ? क्यों नहीं लेना चाहिये ? आखिर हम इस दुनिया में क्यांे हैं ?इसीलिये न कि जितनी जल्दी हो सके जितना ज्यादा हो सके कमा सकें। अब एक तरफ पचास लाख रूपये और दूसरी तरफ एक फ्रेम उसमें तांबे का एक पटिया। तरस आता है साहब इस देश के लोगों पर। दिन भर समय खराब हो वो अलग। फिर हम लोगों को ये शर्ट पेंट पहनने की आदत भी तो नहीं है। कितने दिन हो गये हम लोग दूसरों के दिये हुए कपड़े पहनते हैं। आपको पता है भाई साहब ? हमारे कपड़ों के लिये चंदा देने वालों की लाइन लगी रहती है। जूते वाले, हवाईजहाज वाले, कच्छा बनियान वाले, बिड़ी सिगरेट वाले सब हम लोगों के कपड़े सिलवाते हैं और पैसा भी देते हैं। अब इन भले आदमियों की बात मानें उनका धंधा बढ़ायें कि ये फोकट का सरकारी सम्मान लेने जायें। वो तो हमें बहुत बाद में पता चला कि हमारे देश में इतने अजीब लोग हैं कि बिना पैसे का सम्मान लेने के लिये सालों तक जुगाड़ करते हैं। उन्हें लगता है कि एक कागज राष्ट्रपति के यहां से मिल जायेगा तो जीवन धन्य हो जायेगा। अजीब लोग हैं भाईसाहब।
आजकल जमाना पैसे कमाने का है भाई साहब। फिर हम लोग तो देश के लिये खेलते हैं। देश के लिये कमाते हैं। देश के लिये चंदे के कपड़े पहनते हैं। आपने वो हमारा पाजामा कमीज देखी है ? अरे वही रंगबिरंगी वाली जिसे पहनकर हम लोग क्रिकेट खेलते हैं। कभी कभी तो हमें भी हंसी आती है सर्कस का जोकर जैसे कपड़े पहनना पड़ते हैं। पांव के तलवे से लेकर सिर की टोपी तक कोई जगह नहीं छोड़ी भाई साहब। हम जगह थिगड़े लगे रहते हैं। जूता, साबुन, चिट फंड, सीमेंट, मोबाइल फोन किस चीज का विज्ञापन हमारे शरीर में नहीं चिपका है ? और सच बात तो यह है कि इन्हीं लोगों ने हमें बिकाऊ बनाया है। इन्हीं ने पैसा खर्च करके पहले हमें महान सि़़द्ध किया फिर हमसे कहा कि अब तुम महान खिलाड़ी हो गये हो अब हमारे सामान का विज्ञापन करो। हम तुम्हें उसका पैसा अलग से देंगे।
पर आप ये तो देखो कि इन लोगों का दिमाग कहां कहां दौड़ता है। इनने कहा कि घुड़दौड़ कोई खेल नहीं है। वो जुआं है। मगर लोग कितना आनंद लेते हैं। हम लोग क्रिकेट को जुआं बनायेंगे। हमने कहा कि आप पूरी दुनिया को जुआंघर बना दो हमें पैसे से मतलब। वो बोले तुम्हें बराबर पैसा मिलेगा। तुम लोगों को पुराना जमाना याद है कि नहीं। बड़े बड़े जमींदार, सामंत रात को नाचनेवालियों को बुलाते थे। गैस बत्ती की झकाझक रोशनी होती थी। रात भर नाच चलता था। नाचने वालियों को पैसा मिलता था वो रात भर नाचती थीं। लोग उनपर नोट लुटाते थे। बाद में उन्हें उनका मेहनताना दिया जाता था। खाना खाकर वो वापस रवाना हो जाती थीं किसी और सामंत के यहां नाचने। अब समय बदल गया है। अब वो जमींदार नहीं रहे। वो नाचने वालियां नहीं रहीं। अब हम लोगों ने उन जमींदारों की जगह ले ली है। अब तुम लोग वो नाचने वालियां हो। अब क्रिकेट का खेल वो नाच है। अब होंडा कंपनी जैसी वो कंपनी हैं जो अपना चैक और चिल्लर लिये खड़ी रहती हैं और मैच के अंत पर तुम नाचने वालों पर लुटाती हैं। पहले तीन तीन घंटे में सिनेमा हाॅल में पिक्चर देखी जाती थी अब तीन घंटे में पूरा क्रिकेट का खेल हो जाता है। पुराने सामंतों को एडवांस देकर गाने नाचने वालियों को बुलाना पड़ता था। अब उसमें बदलाव ये आया है कि हम तुम नाचने वालों को पूरा पैसा देकर खरीद लेते हैं। फिर तुम्हें जहां कहेंगे और जैसा कहेंगे तुम्हें नाचना होगा। नाचने में कोई गड़बड़ की तो लात मारकर बाहर निकाल देंगे। पैसा भी छीन लेंगे। हमने कहा हुजुर अरे आप हमें मौका और पैसा दीजिये हम नंगे नाचने को तैयार हैं। हमारे नाच से आपको कोई शिकायत नहीं होगी।
नाच शुरू हो चुका है। नंगे नाच रहे हैं। लुटाने वाले पैसा और चिल्लर फेंक रहे हैं। जो अच्छा नहीं नाचता मालिक उसे हंटर से मार मार कर सही कर देते हैें। हमारे सामंत महान हैं। उनने पैसा दिखाया है तो देशी ही नहीं दुनिया भर के नचैये गोरे काले पीले सभी दौड़ते हुए आ गये हैं। वसुधैव कुटुम्बकम। जनता ने मांग की कि जुआंघर में डांस होता है। तत्काल मांग पूरी हुई। देशी विदेशी नाचने वालियों का ढे़र लग गया। नचनियें बुला दी गई हैं। वो खुशी का इज़हार करती है। दर्शक भूखी नजरों से उन्हें देखता है। गुड क्रिकेट। इसी के लिये अरूण जेटली और नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि यूपीए की सरकार को लानत है जो चुनाव के दौरान इस महान महोत्सव का आयोजन भारतवर्ष में नहीं कर पाती। कितने शर्म की बात है। वो राष्ट्रभक्त लोग हैं। सोच समझकर कहते होंगे। ........................................सुखनवर
अंदाज़े बयां और apnikahi.blogspot.com
Tuesday, May 12, 2009
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