Wednesday, August 24, 2011

ठप्प करने वालों का धर्म


हमारे भाजयुमो के लड़के संसद की तरफ बढ़ रहे थे। कुछ हजार लोग थे। उन्होंने कुछ बेरिकेड तोड़े थे और कुछ पत्थर फेंके थे। वो आगे बढ़ रहे थे। बढ़ते चले जा रहे थे। यदि पुलिस न रोकती तो संसद पर पंहुच जाते। संसद में बहस करने के लिए सांसद तो थे ही। ये क्यों बढ़ रहे थे ? इनके इरादे साफ थे। इनने छुपाए भी नहीं थे। हर पार्टी की युवा शाखा को इसी काम में लगाया जाता है। चढ़ जा बेटा सूली पर भला करेंगे राम। तो युवा अपने काम में लग चुके थे। पुलिस तो पूरे संसद के सत्र के दौरान ही तैयार रहती है। उसने पानी की बंदूक चलाई। फिर लाठियां भांजी। जुलूस तितर बितर हो गया। शाहनवाज खान ने तुरंत चिदंबरम पर आरोप लगाया कि इसी आदमी ने हमारे लड़कों को पुलिस से पिटवाया। बहुत गुस्से में थे। उनने कह दिया कि अब चिदंबरम के स्तीफे के नीचे किसी बात से हम नहीं मानेंगे। उनने अपने स्तीफे की बात नहीं की जबकि लड़कों को पिटने के लिए भेजा तो उन्हीं ने था।
अखबारांे मे छपा और टी वी चैनलों ने खैर अपना आग लगाने का खेल पूरी ताकत से खेला ही कि सबका निशाना सोनिया और शीला हैं। दरअसल आज के समय में कुल मिलाकर भाजपा इस दौरान महिला नेताओं से परेशान है। उत्तर प्रदेश में मायावती नाक में दम किए है। बंगाल में ममता ने दगा दे दिया। अपने ही घर में उमा ने क्या कम कुहराम मचाया। उधर जयललिता घास नहीं डालती। वो अलग से नरेन्द्र मोदी को भर बुला लेती है। जबकि भाजपा की नेता स्वयं महिला हैं।
मगर सारा गुस्सा सोनिया पर क्यों ? शीला पर क्यों ? 2004 में हमारे स्व प्रमोद महाजन जी ने सब सैट कर दिया था। पंडितों ज्योतिषियों से पूछ लिया था। सर्वे करवा लिया था, जीत रहे थे। अरबों रूपये खर्च कर दिये थे। शाइनिंग इंडिया का अभियान चला रखा था। सरकार अपनी थी। जलवा ही कुछ और था। मगर ये सोनिया गांधी ने चुनाव में उतर कर सब कबाड़ा कर दिया। हम कहते रहे । विदेशी महिला है। हिन्दी आती नहीं। भारतीय संस्कृति को जानती नहीं है। विधवा है। मगर क्या बताएं साहब सब किया धरा मिट्टी में मिल गया। अच्छी भली सरकार चल रही थी। समय से पहले चुनाव करवा लिए कि चुनाव तो जीत ही रहे हैं। मगर बैठे ठाले सरकार से बाहर हो गए। अब कहते हैं कि हमारी सरकार इतनी अच्छी थी। लोग पूछते हैं कि फिर हार क्यों गए ?
शीला दीक्षित की कहानी भी सोनिया जी से कुछ कम नहीं है। हर बार चुनाव जीत रही हैं। दिल्ली में मेटो चलना शीला दीक्षित की उपलब्धि मानी जाती है। दिल्ली में कभी भाजपा की सरकार थी ये बात लोग भूल चुके हैं। दिल्ली में इतने अतिक्रमण तोड़े गए। दुकानें और घर तोड़े गए उसके बाद भी लोगों ने शीला दीक्षित को जिताया। शीला दीक्षित और सोनिया जी की खासियत है कि वो मीडिया को घास नहीं डालती। मीडिया के छोकरे अपने ओछे प्रश्नों को लेकर घूमते रहते हैं और वे कार में आगे बढ़ जाती हैं। बहुत बार तो वो डांटती भी हैं कि जाइये रिपोर्ट पढ़ कर आइये फिर बात कीजिए। मीडिया यदि जिम्मेदार हो जाए तो देश का काफी भला हो जाए।
संसद सत्र शुरू हुआ तो घोषित किया गया कि मंहगाई पर घेरेंगे। फिर कहा कि कामनवेल्थ घोटाले पर घेरेंगे। फिर टू जी स्पेक्टम पर घेरेंगे। तीनों पर घेराबंदी होती रही। समय निकल गया। अब वही उदास संसद है। उंघते हुए कुछ गिनेचुने सांसद। उनके बीच में कुछ रूटीन सवाल जवाब। संसद मेें कोई थ्रिल नहीं बचा। अब इंतजार है कि इसी बीच कोई घटना घट जाए तो उसी बहाने कुछ सक्रियता हो जाए।
हर संसद सत्र के पहले अब रणनीति बनती है कि आगामी सत्र में क्या होना है। अब इसे घोषित कर देना चाहिए कि रणनीति इस बात की बनती है कि कैसे कुछ नहीं होने देना है। जब संसद का सत्र नहीं चलता तब मांग होती है कि विशेष सत्र बुलाया जाए। जब सत्र होता है तब उसे ठप्प कर दिया जाता है। दरअसल अब चर्चा करने वाले लोग बचे नहीं हैं। अब ठप्प करने वाले बचे हैं तो अपना धर्म पूरा कर रहे हैं।-------------सुखनवर 12 08 2011

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