Friday, March 16, 2012

जिम्मेदारी की भावना

अब देखिये साहब कि हमारी पार्टी देश में नंबर दो की पार्टी है। हमने पांच राज्यों में चुनाव लड़ा। एक दो जगह हम जीते या जीतते रह गए। जहां हम जीते वहां की किसी ने चर्चा नहीं की मगर उत्तर प्रदेश में हम हार गए तो हर कोई हमें टोंच रहा है। क्यों हार गए। पहले तो सरकार बनाने की बात कर रहे थे। अब बिलकुल चुप बैठे हो घर मंे छुप कर। अरे हार गए तो हार गए। अब कोई हारने के लिए चुनाव लड़ता है क्या ? हमने भी लड़ा। जैसे औरों ने लड़ा। अब हार जीत महत्वपूर्ण नहीं रह गई है। अब महत्वपूर्ण है मैदान में बने रहना। वामपंथियों ने यही तो गलती की है। मैदान से ही भाग गए। अब तो साहब क्या बताएं कोई पूछता तक नहीं है कि वामपंथी कितनी सीट लड़ रहे हैं। वो अपनी दो चार सीटें लड़कर हार हूर कर पॉलिट ब्यूरो की मीटिंग करने लगते हैं। मगर हम क्या खा के वामपंथियों का मजाक उड़ाएं ? अयोध्या तो उत्तर प्रदेश में है। भगवान राम तो हमारे हैं। लोग रास्ता चलते पूछ लेते हैं चिढ़ाने के लिए ’क्यों भई राममंदिर बनने की कोई तारीख मुकरर्र हुई की नहीं ?’
ये बात तो साहब सच है कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। एक बार माहौल बन गया था तो जीत गए थे। मगर बस एक ही बार तो चढ़ी काठ की हांडी। उसके बाद से दो नंबर तीन नंबर चार नंबर की लड़ाई चल रही है। वो तो भला हो इन टी वी वालों का। हर चैनल वाला रोज शाम को कुश्ती का जंगी मुकाबला आयोजित करता रहा। तो खबरों मंे हम लोग बने रहे। बिना बात की बात पर बहस करते, कीचड़ उछालते दिन कटते रहे। यूपी के साथ एक और मुश्किल है। इसकी विशालता। इसका क्या करें। आपको मालूम है कि नहीं कि यदि यूपी भारत का एक प्रांत न होकर स्वतंत्र देश होता तो दुनिया का पांचवां बड़ा देश होता। इस विशाल प्रदेश में एक दिक्कत ये है कि कोई प्रांत का वासी तो है ही नहीं। कोई यादव है तो कोई लोधी है तो कोई जाटव है। अब भैया हमारी तो बुनियाद ही है कि हिन्दू मुसलमान के फसाद में कुछ खा कमा लेें। मगर यहां तो कोई हिन्दू है ही नहीं। दूसरे मुसलमान इतनी तादात में हैं कि जीती बाजी पलट दें। इसीलिए हम लोग नरेन्द्र मोदी को कहें कि हे हिन्दू हृदय सम्राट दया करें और उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए न आएं। आप गुजरात ही सम्हाले रहें। यही बहोत है। यहां आपकी शकल दिखी नहीं कि हमारी दो चार सीटें गईं।
आपको बताएं कि ये उत्तर प्रदेश का चुनाव क्या है साला महासमर है। देश के किसी प्रदेश में इतनी मेहनत नहीं लगती जितनी यहां लगती है। हर कार्ड निकालो और खेलो। उमा भारती तक को मैदान में उतार दिया। पिटी गोट क्या कर लेती। उनकी क्या हैसियत है ये उनने खुद ही नाप लिया है। अब वापस किसी तरह पार्टी में आ गईं तो इससे वोटर को क्या फर्क पड़ता है। उनके कहे से कौन वोट देगा। उधर कल्याण सिंह नाम का एक वोट कटवा मैदान में उतर गया। उमा भारती आ गईं तो दो चार बड़े नेता घर बैठ गए। कह दिया कि अब उन्हीं से प्रचार करा लो। हम लोग तो मूर्ख हैं जो यू पी में इतने दिनों से पार्टी चला रहे हैं।
सबसे बढ़िया बात तो ये हुई भैया कि उधर चुनाव हारे और इधर राहुल गंाधी ने कह दिया कि ओ के मैं हार की जिम्मेदारी लेता हूं। नहीं लेते तो भी तो हारे ही रहते। मायावती से किसी ने पूछा भी नहीं और उनने कोई हार की जिम्मेदारी नहीं ली। वो किससे कहें हर बात की जिम्मेदारी तो उनने वैसे ही ले रखी है। उनकी पार्टी में केवल एक मेम्बर है। मायावती खुद। बाकी कोई की हिम्मत है कि कह सके कि बसपा उसकी है। जैसे तृणमूल कांग्रेस में एक मेम्बर है। ममता बैनर्जी। जैसे एडीएमके में एक मेम्बर है जयललिता। इनके यहां कभी पार्टी की मीटिंग नहीं होती। वैसे सचाई तो यही है कि कांग्रेस में भी एक ही मेम्बर है। सोनिया गंाधी। कितना महान लोकतंत्र है। विधायक दल की बैठक होती है। सारे विधायक मिलकर एक आदमी नहीं चुन पाते मुख्यमंत्री के लिए। वे सोनिया जी को अधिकृत कर देते हैं। और जब सोनिया जी मुख्यमंत्री की लाटरी निकाल देती हैं तो यही अनुशासित विधायक सड़क पर उतर आते हैं।
आप लोगो को मालूम भी नही होगा कि उत्तर प्रदेश में हमारी पार्टी का अध्यक्ष कौन है। चुनाव हारने के बाद उन्होंने एक दो दिन इंतजार किया। जब किसी ने उनसे कुछ न पूछा, न हार के कारण पूछे न स्तीफा मांगा तो उन्होंने अचानक बयान दे दिया कि मैं पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेता हूं और इस्तीफा देता हूं। फिर भी किसी ने कुछ नहीं कहा। न इस्तीफे पर कुछ कहा न जिम्मेदारी पर कुछ कहा। हमने कहा कि भाई चुनाव का मैच ड्रा नहीं होता। इसमें तो कोई एक ही जीतेगा। बाकी तीन को हारना ही है। काहे हलाकान हो रहे हो। अब लोकसभा के चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेने की तैयारी करो। और अपनी पार्टी की हार को ज्यादा भावुकता में मत लो। ..........................................सुखनवर

16 03 2012

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