Saturday, November 21, 2015

मार्गदर्शक मार्ग के दर्शक हो गए

अब आपको क्या बताएं पत्रकार जी। सुबह से तैयार होकर बैठ जाते हैं। नहा धोकर। इस बुढापे जब कल का ठिकाना नहीं है अभी दर्जी से नए कुर्ता धोती बंडी सिलवाए हैं। हम लोग समझाते हैं। भई हो गया। जितना मिलना था मिल गया। अब छोड़ो भी। नए लोग आगे आएंगे। आएंगे क्या आ चुके हैं। अब उनके दिन आएं हैं। सचाई को मान लो न दादा जी। मगर नहीं साहब सुबह से तैयार होकर बाहर कुर्सी लगाकर बैठे हैं। बार बार उठते हैं बाहर झांकते हैं। कोई आया क्या। हम पूछते हैं क्यों रास्ता देख रहे हो तो बोलते हैं हम मार्गदर्शक मंडल हैं। हमारे से मार्गदर्शन लेने नरेन्द्र आएगा, अरूण आएगा। राजनाथ आएगा। गडकरी आएगा। मगर कोई नहीं आता। अरे पत्रकार जी। ये मार्गदर्शक मंडल में हैं या मार्ग के दर्शक हैं। दिन भर रास्ता देखते रहते हैं। और तो और जोशी जी को चिढ़ाने  के लिए मैट्रिक फेल को शिक्षामंत्री बना दिया। विदेश मंत्री बिचारी आज तक विदेश जाने को तरस रही है। वकील साहब को वित्त मंत्री बना दिया।
महीनों गुजर गये हैं। कोई नहीं आया पर इनका दिल नहीं मानता। मानने कोे तैयार नहीं कि इनके दिन लद गए हैं। अरे भई आपको मौका मिला तो था। उस समय आपने अपने को भावी प्रधानमंत्री बनवा लिया था। आप समझे सब आपके कायल हो गए हैं। बाकी लोगों ने सोचा हम चुनाव तो जीतने वाले नहीं हैं काहे को बुढऊ से संबंध खराब करें। कह दिया हां आप ही हो हमारे प्रधानमंत्री। शान से चुनाव हारे। घर बैठ गए। मगर किस्मत तो देखो। पांच साल फिर निकल गए बुढऊ टंच हैं। फिर चुनाव आ गए। इस बार नरेन्द्र अड़ गए। बोले पिछले बार ये थे इस बार मैं रहूंगा। पहले घोषणा करो। नागपुर से ऑर्डर ले आए। चुनाव लड़ गए। अरे इनकी तो टिकिट के लाले पड़ गये थे। चुनाव के पहले ही मार्गदर्शक बनाए दे रहे थे। जैसे तैसे करके तो टिकटें मिलीं। हवा अच्छी बही। सब जीत गए। मगर हसरत तो दिल में ही रह गई। प्रधानमंत्री बनने की। रथ यात्रा निकाली। मस्जिद गिराई। अच्छा माहौल बना। आज भी लोग उन दिनों को याद करके सिहर उठते हैं। मगर जब चुनाव जीते अपनी सरकार बनी तो अटल जी ने एक बार न कहा कि सारी मेहनत इनकी है इन्हें बनाओ प्रधानमंत्री। बना दिया गृहमंत्री।
ले देके इस बार सरकार बनी तब तो हालात ही बेकाबू हैं। प्रधानमंत्री तो छोड़ो संसद सदस्य मान लें वोई बहुत है। ऐसी छीछालेदर इस बुढापे में किसी की न हो भाई। पेंशनर की भी ज्यादा इज्जत होती है भाई। कहते हैं, अब देखो आप लोग अपनी अपनी लठिया सम्हालो दादाजी लोग और एक कमरे में बैठो। हम लोग तुमसे सलाह लिया करेंगे। तुम लोग सोचते रहा करो कौन कौन सी सलाह देना है। अब वे तीनों चारों बिचारे सोच सोच के बैठे हैं कि येे सलाह देंगे वो सलाह देंगे मगर कोई आता ही नहीं। एक को तो देश में रहने की फुर्सत नहीं। दूसरे को चालें चलने से फुर्सत नहीं। एक दो बार सोचा कि नागपुर हेडक्वार्टर में शिकायत कर देंगे फिर देखते हैं कैसे नहीं आते ये जवान रस्ते में। मगर नागपुर से भी डाक आना बंद हो गई।
अब देखो बिहार के चुनाव थे। हम लोग से एक बार पूछ लेते तो क्या बिगड़ जाता। हम लोग की तो वोई हालत हो गई जो शाहजहां की आगरा के किले में थी। बस कमरे में बैठे रहो और ताजमहल तकते रहो। अब हम प्रधानमंत्री की कुर्सी तक रहे हैं। अरे क्या मालूम कब कौन सा चमत्कार हो जाए। कहो किसी को दया आ जाए। अरे दो चार दिनों के लिए ही बन जाएं प्रधानमंत्री। मगर चालाकी तो देखो। बिहार चुनाव में हम लोगों को दो कौड़ी को नई पूछो मगर हार गए (और भैया हार तो ऐसी बेहतरीन हुई है कि तबियत खुश हो गई ) तो कहने लगे कि हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। काए भैया हमारी काहे की जिम्मेदारी। एक सभा में तो लेके नहीं गए। हमारी तो छोड़ो जे दोनों गुजरातियों ने मिलकर बिहारियों को ही बिहार चुनाव से बाहर कर दिया। अब मान लो चुनाव जीत ही जाते तो क्या गुजरात से लाते बिहार का मुख्यमंत्री।
तो भैया ऐसा है कि सब ठीक है। सब जानते हैं। पुरानी कहावत है। गरीब की हाय नहीं लेना चाहिए। और हम तो उजागर कह रहे। हां हमारी हाय लगी और जब तक हम रहेंगे और लगेगी। अब जीत तो लो बेटा कोई चुनाव तुम। ..................सुखनवर

16 11 2015

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