Thursday, July 2, 2020

टाइगर जिन्दा है और चूहे खा रहा है।



ये उदारीकरण हमने शुरू नहीं किया। ये मनमोहन सिंह ने शुरू किया। ये उनका विचार था कि देश में व्यापार बढ़ना चाहिए। तो बढ़ गया। खूब आयात निर्यात हो रहा है। देखिये व्यापार में  उन्नति के लिए क्या नहीं करना पड़ता। बकरीद के लिए बकरा कैसे तैयार किया जाता है ? बढिया खिलाते पिलाते हैं। वजन बढाते हैं। फिर कुर्बानी देते हैं। हमारा अपना मालिक है। लेन देन वो करता है। डील वो करता है। उसने बताया कि सौदा हो गया है। तुम लोगों को बेच दिया है। तो साहब हमारा निर्यात हो गया। ऐसा नहीं है। इस बार पूरा बाड़ा ही बेच दिया गया। बकरों का सरदार खुद भी हम लोगों के साथ आगे आगे चल रहा है। हमारी चमड़ी गोश्त हड्डी सब बिकी है। मंहगे दाम पर बिकी है। व्यापार का तो नियम है। खरीददार की कितनी गरज है इससे बकरे का दाम तय होता है। जब एक बार दिल्ली के खरीददार ने तय कर लिया कि ये बकरे और बकरे वाला हम हर कीमत पर खरीदेंगे तो फिर अच्छा दाम तो मिलना ही था।
देखिये ये जमीर वगैरह की बात न कीजै। काहे का जमीर। मालिक चुनाव लड़ाता है। तो हम लड़ते हैं। वो जिताता है तो जीतते हैं। वो पैसा लगाता है। हम तो बंधुआ मजदूर हैं। इसीलिए जो मालिक कहता है कि वो हम करते हैं। उसने बताया अच्छा दाम मिल रहा है। ऐसा मौका कम मिलता है। डील साॅलिड है। अजी नहीं हमें थोड़ी मालूम था कि क्या डील है। डील तो वही करते हैं। जब तिरंगे में थे तो भी उन्होंने ही डील की थी। हमें पता चला कि हम मिनिस्टर बन गये हैं। अरे हमारे महाराजा बहुत जोरदार आदमी हैं। नौजवान हैं। उन्हें अंग्रेजी आती है। बड़े घर के आदमी हैं। हवाई जहाज से चलते हैं। बड़े बड़े धंधे हैं। कितनी बातें तो हमें मालूम नहीं हैं। और साब हमें पता भी नहीं करना है। नौकर आदमी को मालिक के बारे में ज्यादा पता नहीं करना चाहिए। अरे उनने हमें बेचा है तो अपना नफा नुकसान देखकर ही बेचा होगा। इतने सालों से ये सुअरबाड़ा चला रहे हैं। उनके पहले उनके पिता जी चलाते थे। उसके पहले उनके। लंबा सिलसिला है। राजा महाराजाओं की बात हम आप क्या समझेंगे। वो कब किसके साथ हो जाएं कोई भरोसा नहीं। जब अंग्रेज थे तो उनके साथ थे। अब उनको लगा कि ज्यादा दिन सत्ता से अलग रहे तो धंधे पर खतरा है। कब कौन सा केस चल जाए। कब कौन सा छापा पड़ जाए। राजा लोगों की इज्जत अलग चीज होती है। सीधे दिल्ली में जाकर काली कार निकाली। नए मालिक के साथ समझौते पर दस्तखत किए। बिक गये। वो बिके तो हम बिक गये।
पैसा ? अरे सबकुछ पैसे के लिए ही हो रहा है भाई साब। पैसा नहीं लेंगे तो क्या मुफत में बिक जाएंगे। आपने आज तक सुना है कि बिना पैसे के किसी ने अपने आपको बेचा है ?
              मगर एक बात कहें साहब इस मंहगाई के जमाने में दाम बढि़या मिले। वो तो और भी देने को तैयार थे। मगर हमारी भी नैतिकता है। वाजिब दाम से एक पैसा ज्यादा लेना हमें भी मंजूर नहीं है। अब हिसाब लगाइये। पिछले विधान सभा चुनाव का खर्चा। फिर बिकने का मेहनताना ( मानदेय )। फिर आगे चार साल की तनखाह भत्ते वगैरह का नुकसान। फिर अगला चुनाव लड़ने का खर्चा। वैसे इस पार्टी के पास पैसा बहुत है और कार्यकर्ता बहुत मूर्ख और समर्पित। तो चुनाव का पैसा उपर से आ जाता है और खर्चा कम होता है। फिर हम लोगों को तो मालिक ही देते हैं। आखिर हमें बेचकर ही तो वो अपना व्यापार कर पाते हैं। अब अगला चुनाव नई पार्टी से क्या पता जीते कि न जीते तो उसका मुआवजा।
अब इसमें चरित्र की बात कहां से आ गई। यानी हमारा निर्यात हो गया तो हम चरित्रहीन हो गये। और जिनने हमारा आयात किया वो ? वो चरित्रहीन नहीं हैं। हम न बिकते तो वो खरीद पाते ? चरित्र की बात तो आप करो नहीं। काहे का चरित्र। भेड़ बकरियों का कौन सा चरित्र होता है। भेड़ बकरियां और तमाम जानवर गले में रस्सी बांध का खिरका बनाकर लाए ले जाए जाते हैं। जो खाने को दिया जाता है वो खाते हैं। जो खिलाता है उसके लिए में में में में करते हैं। अच्छा आप शेर की बात सोच रहे हैं। वो तो कबके खत्म हो गये। अब तो कुछ नमूने के लिये चिडि़या घर और राष्ट्रीय उद्यानों में रखे गए हैं। वो भी शाकाहारी टाइप के। भोपाल दिल्ली में जो घूम रहे हैं वो तो हम ही लोग हैं। शेर की खाल ओढ़े हुए। हमारे महाराज भी तो अपने को शेर कहते हैं। कैसे शेर हैं ये तो आपने देख लिया। गोश्त के नाम पर चूहा बिल्ली खा रहे हैं।
अब दो तीन महीनों बाद चुनाव होंगे। उससे निपटना होगा। टिकट तो मिल जाना चाहिए। मालिक ने बात कर ली होगी। हम न जीतेंगे तो मालिक काहे के मालिक रह जाएंगे। एक बात है कि हमारे इस पार्टी में आ जाने से इस पार्टी के पुराने लोग तो हमें निपटाएंगे। उनसे कैसे निपटा जाएगा ये देखना पड़ेगा। वैसे हमें हमारी जनता पर पूरा भरोसा है। वो कहावत है न कि जनता को वही मिलता है जिसके वो लायक होती है। यदि वो इसी लायक है कि हम जैसे नालायकों को अपना नेता बनाये तो हम क्या करें। अपने इलाके में जब हम जाएंगे तो जो हमें गाली देते थे वो हमारा जयकारा लगायेंगे। जो हमारा जयकारा लगाते थे वो अब भी हमारा जयकारा लगायेंगे। अंग्रेजों ने यूं ही थोड़ी इतने सालों तक भारत में राज किया है। वो लातें मारते थे और हम जयकारा लगाते थे और गांधी को गोली मारते थे।
सुखनवर

02 07 2020

No comments: