Saturday, July 11, 2020

राजनीति में प्रवेश



युवक : दादा, देश की सेवा करना है। उसके लिए दादा राजनीति में प्रवेश करना चाहता हूं।
दादा : तेरा बाप क्या करता है
युवक : भड़भूंजा है। चना मूंगफली बेचता है।
दादा : तो तू राजनीति में प्रवेश नहीं कर सकता। तुझ जैसे भड़भूंजों, बाबू किरानियों की क्या औकात की राजनीति में प्रवेश              करें। ये राजघरानोें के बच्चों का काम है। उनका जंन्म धर्म संस्थापनाय होता है। तुम जैसे लोग क्या खा के राजनीति            में प्रवेश करेंगे। अबे राजनीति आलरेडी तुम्हारे अंदर प्रवेश कर चुकी है।
युवक : दादा आप भी तो राजनीति के घराने से नहीं हो। आपका बाप भी तो गेहूं चावल की दलाली करता था। फिर आप कैसे            राजनीति में कैसे आ गये।
दादा : देखो बेटा राजनीति और पत्रकारिता में कोई आदमी अपनी इच्छा से नहीं आता। बेरोजगारी से आता है। अपन ने पढ़ाई          लिखाई की नहीं। किसी काम के थे नहीं। बाप की कमाई से पेट भर जाता था। दिनभर टिल्लेनवीसी करता था। तो एक          दिन मोहल्ले के एम एल ए ने अपने साथ लटका लिया। उसे एक निठल्ले चेले की जरूरत थी और अपने को कोई काम            नहीं था। वो दो चार दिन में हमें दो चार सौ रूपैया दे देता था। कपड़े सिलवा देता था। खाना खिला देता था। फिर उसने          मेरे नाम पर ठेके लेना शुरू कर दिया। पैसा मिलने लगा। फिर हमने अपने नाम से ठेका लेना शुरू कर दिया। फिर हम           ठेकेदार हो गये। पैसा हो गया। विधायक चुनाव हार गया तो हमने पार्टी बदली और जीते हुए विधायक के घर बैठने               लगे। उसके चमचे हो गये।
युवक : ये तो हुई ठेकेदारी की बात। मगर आप तो पंहुचे हुए राजनीतिज्ञ हो। वो कैसे बन गए।
दादा : ये सब कुछ एक दो दिन में नहीं हो जाता। कठिन तपस्या करना होती है। ठेकेदारी हमारे देश में राजनीति की पाठशाला          है। जो ठेकेदार बना वो दूसरे दिन राजनीति के गलियारों में घूमने लगता है। उसे बिल देना है। पेमेन्ट लेना है। अगला             ठेका लेना है। दूसरों को ठेका नहीं लेने देना है। दूसरे ठेकेदार को पटकनी देना है। इसके लिए हमें कोई न कोई पार्टी में          रहना पड़ता है। जो पार्टियां चुनाव लड़ती हैं उन पार्टियों को पैसा देना पड़ता है। हार जीत तो जनता के हाथ में है। उसके          बाद तो एम एल ए हमारे हाथ में है। हमने चंदा दिया है। हमने उसका काम किया वो हमारा काम करता है।
युवक : मगर आप तो लगातार लोगों के लिए काम करते रहते हो ये तो जनसेवा ही है।
दादा : अरे सुनो यार ये कोई जनसेवा नहीं है। हमारे देश में कहीं कोई काम होता नहीं। आप टैक्स जमा करने जाओगे तो                अगला टैक्स नहीं लेगा। आप इलाज कराने जाओगे तो डाक्टर इलाज नहीं करेगा। आप रिपोर्ट करने जाओगे तो थाने          में रिपोर्ट नहीं लिखी जाएगी बल्कि आप साबुत थाने से बाहर निकल आओ तो बहुत बड़ी बात है। आप घूस देने जाओगे          तो कोई लेगा नहीं। इसीलिए कोई आदमी कहीं जाता है तो पहले एक नेता को साथ लेकर जाता है। नेता काम करवा              देता है। अपनी फीस ले लेता है। दूसरों की फीस दे देता है। हम भी यही करते हैं। हम काम करने वाले और करवाने वाले          के बीच की कड़ी हैं।
युवक : मगर आपके पास केस आते कहां से हैं।
दादा : सकल पदारथ हैं जग माही। करमहीन नर पावत नाहीं। कुछ नहीं करना पड़ता है। बस दुकान खोलना पड़ती है। दुकान          खोलेगे तो ग्राहक आयेंगे। ग्राहक आयेंगे तो दुकान चलेगी। अपन ने तो अब ये कर लिया है कि अपनी दुकान काफी              फैला ली है। काफी पार्टनर रख लिये हैं। इस काम में अब काफी विस्तार हो गया है। राजनीति अब उतनी सीधी सादी              रही नहीं जितनी गाँ धी जी के जमाने में थी। अब हम पंडे पुजारी गुंडे लठैत पुलिस सरकारी बाबू अफसर हर जात और          हर पार्टी के नेता को साधे रखते हैं। इससे बड़े बड़े काम हो जाते हैं। तुम्हें एक राज की बात बताता हूं। यदि तुम जिंदगी          भर अच्छे काम करोगे तो कोई तुम्हें दो कौड़ी में नहीं पूछेगा। मगर तुम अड़ी देते रहोगे तो तुम्हारी न्यूसेंस वेल्यू                   रहेगी। हर कोई सबसे पहले तुम्हें पूछेगा।
                    इसलिए बेटा राजनीति में प्रवेश की प्रतीक्षा मत करो। तुम जैसे अनपढों निठल्लों और मूर्खों के लिए ही                    राजनीति का मैदान बना है। खूब खेलो और लगातार बोलते रहो कि राजनीति बहुत गंदी जगह है। इसमें किसी भले               आदमी की कोई जगह नहीं है। इससे हम लोग इस देश के पैसे के हरे भरे मैदान को अनंतकाल तक चरते रहेंगे। लोग          हमें चोर बोलते रहेंगे। हमसे अपने काम कराते रहेंगे। और राजनीति से दूर रहेंगे। इसी में हमारी जीत है।
सुखनवर
11 07 2020

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