कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या। कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातों का क्या। ये मनोजकुमार इतने बड़े भविष्यवक्ता कैसे हो गये मेरी समझ में नहीं आता। उन्हें कैसे पता चल गया कि चुनाव में वादे किये जाते हैं और नाते रिश्तों को लोग भूल जाते हैं। आगे कवि कहता है कि सारे नाते रिश्ते झूठे हैं और इन नातो का भरोसा न करना और अपने भरोसे रहना। ये बात वोटर को भी समझ में आ गई। वो वोट डालने ही नहीं गया। जब आतंक का कहर बरपा था तो संवेदनशील लोग भावुक होकर मोमबत्ती जला रहे थे। अब चुनाव का कहर बरपा है तो कह रहे हैं कि वोट जरूर देना। अच्छे उम्मीदवार को देना। अच्छा उम्मीदवार कौन है? ये संवेदनशील लोग नहीं बताते। पर कहते हैं वोट जरूर देना। ये लोग अंग्रेजी पढ़े लोग हैं। ये खुद वोट डालने नहीं जाते और जाते हैं तो किस किस को जिताते हैं ये पढ़े लिखे लोगों वाले मतदान क्षेत्रों का परिणाम देखने से पता चल जाता है। इनने सबकुछ पढ़ा है। ये सब कुछ जानते भी हैं। जब हत्यारे लुटेरे कालाबाजरिये चुनाव में खड़े हों तो वोट दिया या न दिया लोकतंत्र का तो भटरा बैठना ही है। गरीब जानता है। उसे लोकतंत्र के चांचले समझ में आते हैं। उसे अपने वोट की कीमत मालूम है। उसके वोट की कीमत दो कौड़ी की नहीं है। इसीलिये आजकल गरीब डंके की चोट पर जुलूस में जाने का, वोट डालने का हर चीज का पैसा ले लेता है। बस या ट्रक में बैठने के पहले ले लेता है। खाना पानी अलग। देने वाले देते हैं।
आजकल मार्केेटिंग का जमाना आ चुका है। हर चीज को बाजार में बेचना हैं। लोकतंत्र को भी बाजार में बेचना है। इसीलिये टी वी में बेशर्म विज्ञापन आ रहे हैं। हम तीन रूपये किलो अनाज देंगे। दूसरा कहता है हम दो रूपये देंगे। एक कहता है कि तीन लाख पर इन्कमटैक्स मुक्त कर देंगे। दूसरा कहता है हम तो पहले ही कह चुके हैं। एक कहता है कि हम लाडली लक्ष्मी योजना शुरू करेंगे तुम्हारी लड़की को एक लाख रूपये देंगे। दूसरा कहता है कि हमारी धनलक्ष्मी योजना तो पहले से है उसमें तो हम दो लाख रूपये देंगे। एक कहता है कि किसानों के सारे कर्जे माफ कर देंगे दूसरा कहता है कि हमने तो पहले ही कर दिये हैं। गरीब पूछता है भैया अब तक तुम्हें कौन रोक रहा था हमारी गरीबी दूर करने से। अनाज सस्ता देना था तो चुनाव तक क्यों रूके थे ? लाडली लक्ष्मी हो या धनलक्ष्मी हो भला तो हमारी लड़की का ही होना है अब तक क्यों रूके हो ? कर्जे माफ करना है, सस्ता कर्जा देना है तो दो ना भैया। कौन तुम्हें रेक रहा है।
एक शब्द है विकास। इससे बड़ा जालसाजी भरा शब्द लोकतंत्र में नहीं है। जो हुआ है वो विकास है। जो नहीं हुआ वो भविष्य में होने वाला विकास है। विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जा रहा है। ऐसा कहते हुए शूरवीर चारों तरफ देखते हैं मेरी मिसाइल से कोई बचा तो नहीं । क्या बाकी आदमी विनाश के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं ? विकास वो है जो हम करते हैं। चाहे पांच साल में करें या पांच महीने में। ये विकास किसका है। विकास उसका है जो लखपति से करोड़पति बन गया। उसे अपनी मंहगी मोटरगाड़ी में चलने के लिए अच्छी सड़क बना दी। गाड़ी खरीदने को कर्जा दे दिया। उद्योग लगाने को कर्जा दे दिया। उद्योग डूबने पर मदद के लिए पैसा दे दिया। फिर उद्योग के लिए सब्सिडी दे दी। फिर बैंक का कर्जा माफ कर दिया। विकास ही विकास। बाकी एक जुमला तो है ही जिसे हर विरोधी वक्ता अपने भाषण के शुरू में गायत्री मंत्र के समान बोलता है ’’ कांग्रेस ने पिछले पचास सालों में कुछ नहीं किया’’। शर्म इनको मगर नहीं आती।
देश की सबसे पुरानी पार्टी की महिमा अपरंपार है। एक परिवार मंे तीन सदस्य हैं। मंा, बेटा, बेटी। ये सब कुछ तय करते हैं। यही वोट लेते हैं। ये ही प्रचार करते हैं। ये ही सवाल करते हैं। ये ही जवाब देते हैं। ये राजनीति के बहुत कच्चे खिलाड़ी हैं। पर ईमानदार हैं भोले हैं। राजीव गांधी भी भोले थे और जबरदस्ती राजनीति में खींच लाये गये थे। आरोप ये है कि कांग्रेस में वंशवाद है। ये सही है। पर ये इसलिये है कि कांग्रेस में जो लोग हैं वो इनके नाम पर यस सर बोलते हैं। ये कैरम की लाल गोटी हैं। ये ताश के खेल का इक्का हैं। इसीलिये ये हाईकमान है। सब इनके पीछे इसलिये खड़े हैं कि यदि ये हट जायें तो किसी के कंधे पर सिर न बचे। सब एक दूसरे का गला काट दें। चुनाव में टिकट उसे दिया जायेगा जिसके गुट का नेता टिकट हासिल करने के युद्ध में विजयी होगा। चुनाव जीतना जरूरी नहीं है। टिकट जीतना जरूरी है। जिसने टिकट ले ली उसने मैदान जीत लिया। अब चुनाव में उसकी जमानत जब्त हो जाये तो उनकी बला से। रीवां सतना क्षेत्र अर्जुन सिंह के कार्यक्षेत्र हैं। उस क्षेत्र की टिकट उन्हंे नही दी गई। मिलती तो भी शायद न जीतते लेकिन अभी तो पक्का है कि ये सीटें कांग्रेस नहीं जीत रही। मगर चेहरे पर शिकन नहीं है। क्योंकि टिकट युद्ध में उन्हें हराया जा चुका है।
कहने को कांग्रेस में लोकतंत्र है पर नीचे से ऊपर तक केवल मनोनयन है। हर प्रदेश में अनेक सेनापति हैं। उनकी अलग अलग सेनायें हैं। ये सेनायें कभी विरोधी दल से नहीं लड़तीं। ये केवल दूसरे सेनापतियों की सेनाओं को पराजित करना चाहती हैं। इन सेनाओं का एक ही काम है-सेनापति की जैजैकार करना। पूरे देश के ऐसे तमाम सेनापति केवल एक परिवार के सामने नतमस्तक हैं। वही इनमें युद्धविराम करा कर रखता है। एक बार शून्य पैदा हुआ जब पी वी नरसिंहाराव प्रधानमंत्री बन गये थे। उनके समय में कांग्रेस पार्टी का जो सत्यानाश हुआ वो कोई कैसे भूल सकता। वो मौनी बाबा कहलाते थे। वो भी इसीलिये प्रधानमंत्री थे क्योंकि वो तो बन गये थे पर कोई दूसरा न बन पाये। जैसे सबके झगड़े में देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन गये थे वैसे ही कांग्रेस के झगड़े में नरसिंहाराव बन गये थे। और तब तक बने रहे जब तक कांग्रेस को हरवा नहीं दिया। उपचार तब ही हो सका जब सोनिया जी मैदान में उतारी गईं। जब हैडमास्टर आया तभी कक्षा शांत हुई।........................................सुखनवर
Monday, April 27, 2009
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3 comments:
मार्केटिंग के लिए पी० एम० पद तैयार।
लोकतंत्र बाजार है खूब कहा सरकार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bhai inki kya kya baat batayein ..ye to
हमारे यहां जी हजूरी करने की आदत पड़ चुकी है। सो छूटने से रही।गुलाम लोगो की अपनी कोई सोच नही होती।तभी तो देश का बेड़ा गर्क हो रहा है।
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