चुनाव हो चुके हैं। मंत्रिमंडल बनना है। पार्टियों की शक्ति देखिये। कांग्रेस के 200, बीजेपी के 150 और उसके बाद सीधे समाजवादी पार्टी के तीसरे नंबर पर 23 चैथे नंबर पर मायावती 20 और तृणमूल कांग्रेस पांचवें नंबर पर 19 सांसदों के साथ। द्रमुक और राष्ट्रवादी कंाग्रेस पार्टी के केवल 8 सांसद हैं। मगर गठबंधन सरकार है तो मंत्री पद के लिए रूठना मनाना चल रहा है। द्रमुक में तो बहुत ही अंदरूनी संघर्ष चल रहा है। वे करूणानिधि हैं। उन्होंने तीन महिलाओं पर तरस खाया और उन्हें अपनी पत्नी बनाया। अब उनके बाल बच्चों पर तरस खाने के दिन आ गये हैं। तीनों केा बराबरी का हिस्सा चाहिए संपत्ति में। दुर्भाग्य से यह संपत्ति भारत सरकार है। तृणमूल कांग्रेस के लिए यह देश प बंगाल है। वे भारत सरकार की रेल मंत्री बनेंगी पर रेल चलेगी बंगाल में। इस समय विजय का दर्प इस कदर सिर पर सवार है कि बस चले तो प बंगाल सरकार को तोप से उड़ा दें। राष्ट्रवादी कांगे्रस क्यों बनीं ? ये सभी कांग्रेसी हैं। पवार ने किसी गणित में सोनिया गंाधी के विदेशी मूल के होने का मुद्दा उठाया। फिर राष्ट्रवादी हो गये। झगड़ा महाराष्ट्र का था। कालचक्र घूमा तो उन्हीं सोनिया जी के साथ मिलकर यूपीए में कृषि मंत्री बने बैठे हैं। इनसे कोई पूछ नहीं सकता कि क्यों महाशय जब सोनिया जी के साथ हैं तो फिर आपकी अलग से कांग्रेस क्यों ?
हमारे देश में मंत्री पद योग्यता का सूचक नहीं है। कौन किसका कितना और क्या बिगाड़ सकता है इसका पैमाना है। शरद पवार या द्रमुक या तृणमूल सरकार का बहुत कुछ बिगाड़ सकते हैं इसीलिए इन्हें 200 सांसद वाली कांग्रेस पार्टी से ज्यादा मंत्री पद चाहिये। आप देखेंगे कि कोई पार्टी ये नहीं कहती कि हमें गृहमंत्री या रक्षा मंत्री या वित्त मंत्री बनाया जाये। इन्हें रेल, कृषि , कोयला, पेट्रोलियम, जैसे विभाग चाहिए। इन विभागों के बारे में कहा जाता है कि इनमें सात पुश्तों तक के कल्याण की व्यवस्था हो जाती है। किसी विभाग का मंत्री बनने के लिए किसी विशेष योग्यता की जरूरत नहीं है। आपकी पार्टी को दस मंत्री पद दिये गये हैं। बन जाइये मंत्री। मंत्री बनते ही सांसद को कारें, बंगला, आॅफिस, एसी हवाई यात्रा, इत्यादि सुविधायें मिल जाती हैं जो सामान्य भारतीय आदमी के लिए एक सपना है। कुछ साहब मिल जाते हैं जो सर सर करते रहते हैं। जीवन सफल हो जाता है।
अधिकांश मंत्रियों का मंत्रित्व काल सुविधाओं को भोगने में चला जाता है। अधिकारी भी यही चाहते हैं कि आप देशाटन कीजिये और उद्घाटन ,सम्मान वगैरह करिये कराइये। विभाग के कामों में टांग मत अड़ाइये। विभाग में यदि ऊपरी कमाई है तो आपको भरपूर हिस्सा मिलेगा ताकि आप अगला चुनाव लड़ सकें और पिछले चुनाव की लागत निकाल सकें। बाकी चुप रहें। खुद खायें और दूसरों को खाने दें।
यदि कोई मंत्री वास्तव में कुछ करना चाहता है तो उसे अनुभव चाहिये, ज्ञान चाहिये और अपने मातहत अधिकारियों से ज्यादा बुद्धि और विवेक चाहिये। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी यही चाहते हैं कि इस तरह से थोक में बने मंत्री अपनी दुनिया में रहें और सत्ता की दुनिया में टांग न अड़ायें। इसीलिए मंत्रीगण झूठे वादे करने वाले बेदर्दी बालमा कहलाते हैं। वे झूठे वादे न करें तो और क्या करें ? वो तो पार्टी में अपनी ताकत के कारण अपने कोटे में से मंत्री बने हैं। यदि योग्य होते तो किसी अच्छे काम में न लग गये होते।
हमारे देश में एक जादू और होता है। समय समय पर मंत्रिमंडल में फेरबदल होता है। इसके कारण तरह तरह के होते हैं। पर परिणाम एक ही होता है। एक विभाग के अयोग्य मंत्री को दूसरे विभाग का मंत्री बना दिया जाता है। वो वहां भी कुछ नहीं करते थे। यहां भी कुछ नहीं करंेगे। बड़ा हास्यास्पद लगता है ये सुनना कि कल तक जो कपड़ा मंत्री थे आज आदिवासी कल्याण के मंत्री हो गये। रातोंरात उनकी विद्वत्ता का क्षेत्र बदल गया।
मनमोहन सिंह जी का पिछला मंत्रीमंडल बड़ा जोरदार था। उसमें सभी मंत्री गण स्वतंत्र थे। उनके कामों में प्रधानमंत्री का कोई हस्तक्ष्ेप नहीं रहता था। अर्जुन सिंह ने आरक्षण आदि पर अनेक बड़े फैसले लिए। कभी ऐसा लगा नही कि ये मनमोहन सरकार के मंत्री हैं। विरोध में जो आंदोलन हुए वो भी अर्जुन सिंह के विरूद्ध हुए। निर्णयों की घोषणा भी अर्जुन सिंह जी ने की। इसका परिणाम ये हुआ कि जो निंदा हुई वो अर्जुन सिंह की हुई और जो प्रशंसा हुई वो प्रधानमंत्री और कांग्रेस की हुई। एक डा रामदौस थे। वे स्वास्थ्य मंत्री थे। वे एम्स में मनचाहे निर्णय लेते रहे। मगर पता नहीं चला कि ये मनमोहन सरकार के मंत्री हैं और प्रधानमंत्री के नीचे काम करते हैं। एकदम आजाद। लालू की रेल चाहे जहां चलती रही चाहे पटरी हो चाहे न हो मगर प्रधानमंत्री एकदम खामोश। इसीलिये यूपीए गठबंधन बहुत मजबूत रहा।
मंत्री पद पाकर सांसदों और विधायकों को जनता से दूर कर दिया जाता है। आप मंत्री हैं। आपकी सुरक्षा होगी। आप सबसे दूर रहिये। किसी से मिलिये नहीं। आप लालबत्ती में चलिए। आगे एक जीप में साइरन बजेगा। पीछे पुलिस की गाड़ी दौड़ेगी। परिणाम ये होगा कि आप मंत्री पद की मायावी दुनिया में खो जायेंगे और तब तक खोये रहेंगे जबतक आप अगला चुनाव न हार जायें या अगले बार मंत्री न बनाये जायें। ..........................................सुखनवर
Wednesday, May 27, 2009
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2 comments:
bahut hee vichaarottojak aalekh likhaa hai....sach hai aaj raajniti yahee sab kuchh ban kar rah gayee hai...
सियासत, तेरे खेल निराले.
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