Thursday, June 9, 2011

मि. भ्रष्टाचार

मि. भ्रष्टाचार आत्मविश्वास से भरे हुए थे जब मैंने पूछा
प्रश्न: आप इस समय बहुत चर्चा में हैं। कैसा लग रहा है ?
उत्तर: चर्चा में रहूं न रहूं मेरा अस्तित्व सनातन है। मैं कण कण में व्याप्त हूं। मैं हर खाये पिये के दिल में बसता हूं। वो सब मुझे हृदय से चाहते हैं’
प्रश्न:आपका मतलब गरीब अमीर सभी भ्रष्टाचारी हैं ?
उत्तर: जिनके पास खाने को नहीं है वो कैसे भ्रष्टाचार करेंगे। उनके लिये तो भुखमरी और ईमानदारी ही बची है। उनके पास बेईमान होने का अवसर ही कहां है ? जिनके पास है वो कोई मौका नहीं छोड़ते। बहुत ज्यादा लोग ऐसे हैं जो जीवन भर भ्रष्ट होने के लिए तैयार बैठे रहे पर मौका ही नहीं मिला। ये दूसरे तरह के ईमानदार हैं। ये काफी जोर से बोलते हैं।’
प्रश्न:अभी रामलीला मैदान में हजारों लोग जमा हुए आपकी इतनी मिट्टी पलीद की। आपको डर नहीं लगा ?
उत्तर: जो लोग जमा हुए उन्हें पता ही नहीं था कि वे किस लिए जमा किए गए हैं। जब कारसेवक अयोध्या जा रहे थे तो क्या उन्हें पता था कि वे क्यों जा रहे हैं ? जो ले जा रहे थे उन्हें पता था कि इनसे क्या करवाना है। उनने करवाया और आज तक उसी की दाल रोटी खा रहे हैं। रामलीला मैदान में तो सरकार की सावधानी ने सारा खेल ही बिगाड़ दिया। रामलीला मैदान में आग से या भगदड़ से या विस्फोट से या किसी और नायाब तरीके से सौ दो सौ लोग मर जाते तो कहा जाता कि इस भ्रष्टाचारी सरकार ने ये करवाया। देश भर में इतना खराब माहौल हो जाता कि सरकार तो गिर ही जाती देश कहां जाता इसकी कल्पना की जा सकती है। लेकिन इस बार सरकार ने वो मूर्खता नहीं की जो नरसिंह राव सरकार ने की थी। रातों रात एक्शन लेकर सारी योजना का सत्यानाश कर दिया। इसीलिए तो भगवा पार्टी चोट खाए सांप की तरह बर्ताव कर रहीं है। सारा दर्द उसी को है। बाबा बौरा गए हैं कभी कुछ बोलते हैं कभी कुछ। रोज नई पोल खुल रही है। संघ को खुलकर सामने आना पड़ा। सारे भ्रम टूट रहे हैं।
प्रश्न:भ्रष्टाचार जी आपका भाई काला धन तो संकट में है। मजे से स्विट्जरलैंड में ठंडी आबोहबा में रह रहा था। उसे अब भारत की गर्मी सहन करना पड़ेगी। सरकार भी उसे वहां से लाने को तैयार है।
उत्तर: पुराने जमाने में एक महान राजा हर्ष हुए थे। उनकी खासियत ये थी कि वो हर दो चार साल में अपना पूरा धन जनता को बांट देते थे। पाठ्य पुस्तकों में ये तो लिखा है पर ये नहीं लिखा कि हर दो चार साल में उनके पास फिर धन कैसे इकठ्ठा हो जाता था। आदमी दस लाख कमाता है और एक लाख की घोषणा करता है। काला धन इस तरह से बनता है। काला धन का उत्पादन रोकने की इच्छा या ताकत या अक्ल इन बाबाओं में तो नहीं है। कालाधन तो अंधों का हाथी है। हर कोई अपनी औकात के मुताबिक नाप रहा है।’
प्रश्न:क्या मतलब ?
उत्तर: सामान्य आदमी से पुलिस वाला दस रूपये ले लेता है तो उसके लिए वो भ्रष्टाचार है। बड़े कार्पोरेट से बड़ा अधिकारी या मंत्री करोड़ो ले लेता है तो उसके लिए वो भ्रष्टाचार है। सामान्य आदमी आम सभा में गुस्सा निकालता है। कार्पोरेट पांच सितारा होटल में बैठकर गुस्सा निकालता है। अपने अपने भ्रष्टाचार हैं। अपना भ्रष्ट आचरण आदमी नहीं देखता। दूसरे का देखता है। इसीलिए में हूं और रहूंगा।..............................................................सुखनवर

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