अखबार रोज निकलते हैं। अखबार रोज पढ़े जाते हैं। अखबार पढ़ने के बाद घर में रखे जाते हैं। सुबह से रात तक कई किश्तों में अखबार पढ़ा जाता है। मनन किया जाता है। बहस की जाती है। अखबार में पत्रकार होते हैं। लेखक होते हैं। लेख और अन्य सामग्री लिखी जाती है। सम्पादकीय लिखा जाता है। यह जिम्मेदारी का काम होता है। लेकिन जब से टी वी आया तो खबरें पढ़ने की जगह खबरें देखने की चीज हो गई हैं। समय बदला और अब चौबीस घंटा समाचार दिखाने की जिम्मेदारी चैनलों ने ले ली है। ऐसे कई चैनल हैं। इसीलिए इनमें प्रतियोगिता है। और इसीलिए इसके मुंहचलाऊ पत्रकार दौड़ जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
कुछ तो इतने जोश में रहते हैं कि हकलाने लगते हैं। ये कहते हैं कि इनके पास समय बहुत कम है। इनके मुंह से शब्दों की बौछार निकलती है। इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि इनके ऑफिस में देश की जनता बैठी हुई है। ये तत्काल जान जाते हैं कि देश की जनता क्या जानना चाहती है। इन्हें हर रोज मुद्दा चाहिए। इसीलिए तेल की कीमतों में वृद्धि आदि इनके लिए वरदान बनकर आते हैं। दो तीन दिन उसमें निपट जाते हैं। यदि कोई मुद्दा नहीं मिलता तो फिर इन्हें मुद्दा बनाना पड़ता है।
चौबीस घंटा समाचार बटोरने के लिए बहुत से लड़के लड़कियां भरती हैं। ये बेचारे माइक और कैमरा लिए दौड़ते रहते हैं। राजनैतिक दलों ने इनसे निपटने के लिए कुछ लोग रख छोड़े हैं जो बहुत अभ्यास के साथ अटक अटक कर सम्हल सम्हल कर वक्तव्य देते हैं। कुछ केवल हिन्दी बोलते हैं कुछ केवल अंग्रेजी बोलते हैं। कुछ द्विभाषी भी हैं। कुछ केवल बदमाशी के लिए रखे गये हैं। ये ऐसे वक्तव्य देते हैं कि हल्ला मच जाए और मूल मुद्दा कहीं और चला जाए। बाइट लेने वालों के लिए ये सबसे उपयुक्त हैं।
अखबारों में समाचार अलग रहते हैं विचार अलग रहते हैं। जनता के और लेखकों बु़िद्धजीवियों के विचार अलग छपते हैं। अखबार और सम्पादक के विचार अलग छपते हैं। लेकिन इन चैनलों में विचार का कोई झंझट नहीं है। इनका खुद का कोई विचार है भी नहीं । इनका एक विचार है सनसनी और अधिक से अधिक विज्ञापन। इनके विचार बहुत तात्कालिक होते हैं। किसी से बात की और तुरंत मुंह मोड़ा और बातचीत को तोड़ा मरोड़ा और परोस दिया। ये छोकरे छोकरियां जिनका राजनैतिक ज्ञान शून्य है वो विश्लेषण कर देते हैं। ये समाचार नहीं बताते समाचार का विश्लेषण बताते हैं। इन्होंने दर्शक की ओर से सोचने समझने की जिम्मेदारी ले रखी है। ये एक घंटे में प्रतिशत में बता सकते हैं कि फलां मुद्दे पर देश की जनता क्या सोचती है। इनके पास पूरे देश से एस एम एस आ जाते हैं। इनका देश हमसे अलग है। हम तो एस एम एस करते नहीं।
पत्रकारिता में जिसे पीत पत्रकारिता कहा जाता है। घृणा से देखा जाता है। ऐसे अखबारों और इससे जुड़े लोगों को बिरादरी से बाहर रखा जाता है वही टी वी मीडिया में छाए हुए हैं। ये प्रायोजित कार्यक्रम बनाते हैं। ये प्रायोजित इंटरव्यू लेते हैं और प्रायोजित सर्वे करवाते हैं। हमारे देश में समाचार चैनलों को देखकर लगता है कि पूरा देश चोरी बटमारी लूट रिश्वत हत्या बलात्कार दुर्घटनाओं का शिकार है। पूरा देश बेइमानों और चोरों से भरा हुआ है। इसमें कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। इन चैनलों में देश की नारी कपड़े पहनती ही नहीं है। फिल्मों में नग्नता और हिंसा के अलावा कुछ नहीं हैं।
पर इस देश में बहुत कुछ अच्छा हो रहा है। नए उद्योग लग रहे हैं। बांध पुल सड़क बन रहे हैं। गांव गांव में कृषि में नए प्रयोग हो रहे हैं। समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है। बहुत से लोग बहुत मेहनत से अच्छा रच रहे हैं। अच्छा साहित्य रचा जा रहा है। अच्छी फिल्में बन रही हैं। अच्छी पढ़ाई हो रही है। बहुत सी नई खोजें हो रही हैं। विज्ञान आगे बढ़ रहा है। चिकित्सा के क्षेत्र में हम आगे बढ़ रहे हैं। नाटक हो रहे हैं। लोग कलाओं में रूचि ले रहे हैं। देश में जो कुछ अच्छा हो रहा है उसे दिखाने और बढ़ाने की जरूरत है। ...........................................सुखनवर
Wednesday, July 6, 2011
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