Friday, July 8, 2011

प्रधानमंत्री पद की इंटर्नी शिप

देखिये साहब मेरी इंटर्नशिप चल रही है। देर सबेर ये तो होना ही है। मुझे जिम्मेदारी सम्हालना ही है। आपने फिल्म गाइड देखी हो तो याद होगा कि देवानंद की कोई इच्छा नहीं थी आमरण अनशन करने की जैसे अभी रामदेव की नहीं थी। मगर जनता का दबाव ऐसा बना कि देवानंद के पास कोई चारा नहीं था आमरण को मरण में बदलने के अलावा। रामदेव तो खैर सलवार कुर्ते के कारण होनहार होते होते रह गये। तो मुझे मालूम है कि मुझे प्रधानमंत्री बनना है। बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी। कांग्रेस के नाम पर जो लोग देश में इकठ्ठे हैं वो मुझे प्रधानमंत्री बनाकर रहेंगे। मुझे अपना भविष्य साफ दिख रहा है।
मेरी हालत वही हैं चढ़ जा बेटा सूली पर भला करेंगे राम। कांग्रेस को आज मेरी जरूरत है। कांग्रेस के नाम पर इस समय सत्ता मिल सकती है। कांग्रेस में लोग बहुत होशियार हैं। उन्हें मालूम है कि वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। उन्होंने सच को स्वीकार कर लिया है। इसीलिए कांग्रेस में कुर्सी और पद लड़ाई नहीं है। लोग अधिक से अधिक से नंबर दो बनने की सोचते हैं। पहली सीट हमारे परिवार के लिए आरक्षित कर दी है। ये चालाकी नहीं तो और क्या है। ये तो वो सीट है जिसमें बम लगा है। कम से कम हमारे परिवार के लिए। मगर नहीं साहब बनना पड़ेगा। प्रधानमंत्री बनना पड़ेगा। जान का खतरा है तो भी बनो। देश के लिए बनो। आपको मालूम है देश क्या है ? आप समझते हैं 120 करोड़ लोग जहां रहते हें वो देश है। अरे नहीं साहब जहां एक करोड़ लोग रहते हैं वो दिल्ली ही देश है। यहां रहने वाले सौ दो सौ लोग देश चलाते हैं।
वैसे देश चलाना कोई कठिन काम नहीं है। दुनिया में अमेरिका का राज्य है। वो तय कर देता है कि हमें क्या करना है। व्यापार में अमेेरिकी कंपनियां का राज है। वो तय कर देती है कि हमारी आर्थिक नीति क्या होगी। अनाज चीनी के दाम सब ग्लोबल तय होते ैहैं। हथियार कंपनियां हैं वो हथियार दे देती हैं। अमेरिका है जो झगड़ा करा देता है। हम लोग हैं जो लड़ लेते हैं। हथियार खर्च हो जाते हैं। लड़ाई बराबरी की रहती है। दोनों के पास एक से हथियार हैं। लोग कहते हैं मनमोहन सिंह कुछ नहीं करते। कुछ नहीं कहते। अरे वो क्या कहें और क्या करें। उनके हाथ में क्या है। कल को मैं ही प्रधानमंत्री बन जाउंगा तो क्या कर लूंगा। मेरा और मेरे परिवार का एक ही काम है चुनाव जिताना और कांग्रेस की सरकार बनाना। अब इन कलमाडी को ही लें। वो क्यों प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे। जरूरत क्या है जब साधारण मंत्री बने रहने पर ही आप पूरा देश लूट सकते हो। अफसरों के और मजे हैं। जब तक मंत्री के मातहत रहो तब तक उसके साथ मिलकर कमाओ। जब मंत्री मुसीबत में पड़ जाऐ तो उसे दगा देकर कमाओ।
देश को चलाने के कुछ नियम समझ में आते हैं। मसलन कोई निर्णय मत लो। हमेशा टालो। निर्णय करना ही पड़ जाए तो ऐसा निर्णय करो कि समझ में ही न आए कि निर्णय आखिर क्या हुआ है। सारी परेशानी तो मध्यवर्ग को है। इसे अच्छी तनखाह दे दो सुविधाएं दे दो तो ये राजनीति छोड़कर प्रभु के गुन गाने लगता है। आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक हो जाता है। बजट में दस बीस हजार रूपये की छूट दे दो। मीडिया को मैनेज कर लो तो ये असली मुद्दे पर बात करना बंद कर देते हैं। तो देश तो चल जाता है।
असल चीज़ है मुनाफा। हम लोग इस दुनिया में क्यों हैं ? इसीलिए कि देशी विदेशी कंपनियांे को मुनाफा हो। जब तक हमारे जीने से मुनाफा होता है तब तक हम जीते हैं। जब हमारे मरने से मुनाफा होता है तो हमें मरना होता है। दुनिया चल ही इसीलिए रही है कि कुछ लोगों को मुनाफा हो रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध क्यों हुआ था ? क्योंकि इटली, जर्मनी, जापान को मुनाफा नहीं हो रहा था। उनने कहा हमें भी खिलाओ नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे। उनको नहीं खिलाया तो उनने पूरी दुनिया का खेल बिगाड़ दिया।
तो ऐसा है कि आप लोग देखेंगे कि मैं न चाहते हुए भी एक दिन इस देश का प्रधानमंत्री बनूंगा। इस देश की और मेरी नियति ही यही है। .................................................................सुखनवर

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