Thursday, September 1, 2011

अंग्रेजी बोलने वालों का संघर्ष


बुधिया खाना बना रही थी। सामने टी वी चल रहा था। बच्चे खेलते हुए बाहर चला गया। उसेन देखा कि एक बहुत सफेद झक्क कपड़े पहने दादा जी टोपी लगाकर बैठे हैं। उनके सामने हजारों लोग तिरंगा झंडा लहरा रहे हैं। ऐसा तो टी वी चाहे जब दिखता रहता है। पर आज खास बात ये थी कि ये दादाजी बैठे थे और सामने लोग तिरंगा लिये थे। दादा जी भाषण दे रहे थे। वो मालूम नहीं क्या बोल रहे थे। कुछ समझ नहीं आ रहा था। पर बाकी लोग बहुत जोर जोर से नारे लगा रहे थे सो लग रहा था कि जरूर कोई बड़ी बात कह रहे होंगे। उसका बड़ा लड़का घर आया तो उसने पूछा कि ये क्या हो रहा है। लड़के ने बताया कि बहुत अच्छा काम हो रहा है। अपने सब्जी के ठेले में से पुलिस वाला जो सब्जी उठा ले जाता है उस पर रोक लगने वाली है। वो जो डंडा फटकार कर हमसे पैसा वसूलता है वो भी अब खत्म होने वाला है। राशन दुकान वाला चाहे जब कह देता है कि राशन नहीं है मिट्टी का तेल नहीं है वो भी खत्म होने वाला है।
बुधिया बहुत खुश हुई। उसने लड़के से पूछा कि ये लोग ये बात तो कह नहीं रहे। फिर तू कैसे कह रहा है कि ये लोग पुलिसवाले राशनवाले का अत्याचार खत्म करने वाले हैं। लड़के ने बताया कि ऐसे सारे कामों को भ्रष्टाचार कहते हैं। ये खत्म होने वाला है। बुधिया को विश्वास नहीं हुआ। लड़के ने बताया कि अबकी बार जरूर खत्म हो जाएगा क्योंकि अब अंग्रेजी बोलने पढ़ने लिखने वाले लोग ये कह रहे हैं। हम लोगों की सुनता कौन है। जब अंग्रेजी में बात कही जाती है, जब अंग्रेजी बोलने वाले बच्चे बूढ़े ये बात कहते हैं तो उसका वजन होता है। ये लोग सफेद रंग की टी शर्ट पहने हैं। उसमें अंग्रेजी में लिखा है। काले लाल गोले बने हैं। इस सबका मतलब होता है अम्मा तू नहीं समझेगी। ये लोग बहुत ज्ञानी हैं। इन लोगों ने खुद अपना कानून लिखा है। उसे बनवाने वाले हैं।
बुधिया को फिर भी समझ नहीं आया। उसे समझ नहीं आया कि अभी किस कानून में लिखा है कि झूठ बोलो। बेईमानी करो। फिर भी दुनिया कर रही है। इन्हें कोई रोकता क्यांे नहीं ? अभी हमारी सब्जी नहीं बिक पाती है। मुश्किल से घर चल रहा है उस पर से एक बड़ी दुकान खुल गयी है चमचमाती हुई उसमें कार में बैठ कर लोग जाते हैं और सब्जी खरीदते हैं। हम दो पैसा कमा रहे थे तो ये भी इन अमीरों से नहीं देखा गया।
लड़के ने समझाया कि अम्मा उनका मतलब दूसरा है। वो बड़े लोग हैं। उन्हें बड़ा खेल खेलना पड़ता है। उनके खेल करोड़ों के होते हैं। उन्हें करोड़ों खिलाना पड़ते हैं। उनके लिए वो भ्रष्टाचार है। ये लोग एक दूसरे को जेल डालते रहते हैं। सारा नियम कानून वो ही समझते हैं। वही तोड़ते हैं। वही जेल जाते हैं। वही मुकदमा लड़ते हैं। वही कानून बनाते हैं। वही तोड़ते हैं। इन बड़े धंधे वालों को ये करोड़ों देना बहुत अखर रहा है। इसीलिए अब एक और कानून बना रहे हैं। हम लोगों के लिए तो पहले से कानून है। हमारी ठुकाई तो उसी कानून से होती है। पिछले साल पुलिस ने बापू जी को अंदर कर दिया था। एक साल लग गया उनको छुड़वाने में। कितना पैसा लगा। उसी अदालत में कितना पैसा लगा वकील को दिया बाबू को दिया। पुलिस को दिया। तब कहीं जाकर छूट पाये बापू।
अच्छा हुआ अभी ये नया कानून नहीं बना है। छोटी अदालत, मंझली अदालत, बड़ी अदालत और कहते हैं कि एक सबसे बड़ी अदालत दिल्ली में है। अपन लोगों के लिये तो अपने शहर की अदालत ही ठीक है। अपन कभी दिल्ली गये तो उस अदालत में तो घुसने भी नहीं मिलेगा। अब ये अंग्रेजी बोलने वाले आपस में लड़ रहे हैं। अभी कुछ दिन बाद एक दिन शहर बंद होगा। अम्मा उस दिन की रोटी पानी का इंतजाम करना पड़ेगा। उस दिन की कमाई तो गई। .................................सुखनवर
26 08 2011

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