ब्रेंडेड आंदोलन का इवेंट मैनेजमेंट
ये अच्छा हुआ कि पिछले दिनों देश से भ्रष्टाचार खत्म हो गया। जिस दिन रंग गुलाल हुई और खुशियां मनाईं गईं उस दिन के बाद से सारे भ्रष्टाचारी साधू हो गये। बहुत दिनांे से सब लोग परेशान थे कि देश से भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा। कब खत्म होगा ? पिछले बार भ्रष्टाचार खत्म हो ही गया था। जयप्रकाश जी ने खत्म कर दिया था। मगर फिर ऊग आया। जड़ों में मठा नहीं डाला गया था। कुछ दिन दबा रहा फिर निकल आया। उस समय जयप्रकाश जी आगे थे। भ्रष्टाचार से परेशान लोग उनके पीछे थे। इस बार भ्रष्टाचार के पुनर्जन्म की कोई गुंजाइश नहीं है। पुराना जमाना और था। उस समय भ्रष्टाचार से लड़ने के तरीके भी पुराने थे। इवेन्ट मैनेजमेंट नाम की कोई चीज नहीं थी। टी वी नहीं था। 24 घंटे चलने वाले न्यूज चैनल नहीं थे। इतने ओजस्वी टी वी वाले नहीं थे। अब तो टी वी वालों को देखकर लगता है कि क्या जरूरत किसी अदालत की। क्या जरूरत किसी वकील की। उत्साह से ऐसे भरे हुए कि हकलाने लगते हैं, लड़ने लगते और मुंह से झाग छोड़ने लगते हैं।
इसको कहते हैं योजनाबद्ध तरीके से काम करना। क्रमवार काम करना। एक के बाद एक कदम उठाना। अपने टाइम टेबिल पर काम करना। चौतरफा मार करना। पूरे देश में एक साथ आंदोलन। आंदोलन का झंडा होना चाहिए तो ठीक है और कोई झंडा क्यों रहे तिरंगा ही ठीक रहेगा। मगर ये क्या है लोग तिरंगा सीधे पकड़े रहते हैं। आप लोग ऐसा कीजिए कि इस इवेंट के लिए इसे ऊपर नीचे लहर के समान लहराइये। आजकल ब्रेंड के साथ ब्रंेड एम्बेसेडर, बें्रड फ्लैग, ब्रेंड कास्ट्यूम, बैं्रड स्लोगन सबकी जरूरत होती है। सारी व्यवस्था हो चुकी है। ब्रंेड स्लोगन रखो। वंदे मातरम। भ्रष्टाचार से लड़ाई का ये कैसा स्लोगन ? देखिये बहस मत करिये। हमें काम करने दीजिए। दादा जी के पीछे बैकड्राप में गांधी का बड़ा सा पोट्रेट रखो। एक दम सीधे पब्लिक के दिमाग में जाना चाहिए। एक वो गंाधी एक ये गांधी। मगर ब्रैंड एम्बेसेडर कौन रहेगा। जैसा आंदोलन है उसी टाइप का होना चाहिए। पता करो कौन हो सकता है जो कुछ दिन अनशन भी कर सके। अड़ियल हो, किसी की न माने।
पता चला कि महाराष्ट्र के एक गांव में एक लड़ाकू आदमी रहता है। कई बार अनशन कर चुका है। रामदेव टाइप नहीं निकलेगा कि तीन दिन में हवाइयां उड़ने लगें। महाराष्ट्र में कई मंत्रियांे को हटवा चुका है। अख्खड़ आदमी है। किसी की नहीं सुनता। बस एक मुश्किल है। राष्ट्रीय स्तर का नहीं है। प्रांतीय स्तर का है। चलो कोई बात नहीं। उन्हंे ही पकड़ो। मगर ध्यान रखना-आंदोलन और बातचीत हम करेंगे। हम तीनों की यह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है। ये हमारी कंपनी का इवेंट है। इसमें जो चाहे वो आए लेकिन अपनी सीमा में रहे। जो और लोग हैं उनको भगाओ। अपमान कर दो खुद भाग जाएंगे। दादा को आगे रखो। इवेंट के हिसाब से सौ जोड़ी सफेद कुर्ता पाजामा और टोपी तो दादा के लिए रखो। आंदोलन के समय हर चार घंटे में उनकी ड्रेस बदलो। हमेशा एकदम झक सफेद ड्रेस दिखना चाहिए। टी वी पर अच्छा दिखेगा। गांधी से इनकी तुलना करवाओ। तीन चार बार राजघाट ले चलेंगे। वहां बिल्कुल गांधी टाइप मुद्रा में एक फोटो सैशन करवा देना। दादा तो महाराष्ट्र वाली टोपी पहनता है। ऐसा करो टोपी को भी ब्रेंड बनाओ। उसमें लिखो आइ एम अन्ना। बहस मत करो यार। एकाध लाख टोपी बनवा कर बंटवा दो। पैसे को मुंह मत देखा। ये क्यों क्यों मत पूछा करो।
देश का मतलब होता है दिल्ली। यहीं पर सारे टी वी वाले हैं। उनको सबसे पहले साथ में लो। दिल्ली के स्कूलों में सौ डेढ़ सौ बसंे लगवा दो। बच्चों केा ढ़ो ढ़ो कर लाएंगी। बच्चों को दे दो मोमबत्ती और तिरंगा। मंुह पे पुतवा दो तिरंगा जैसे क्रिकेट मैच हो रहा हो। माहौल खिंच जाएगा। और बात समझ लो अपना मुद्दा है। जनलोकपाल बिल। इसके बारे में पब्लिक से कोई बात नहीं करना है। इस बिल पर कोई बहस हमें करना ही नहीं है। ये बिल क्या है ये किसी को पता नहीं चलना चाहिए। बस मुद्दा ये उठाओ कि इसमें प्रधानमंत्री को आना चाहिए। इसी पर बहस चलने दो। सरकार को उधेड़ के रख दो। जनता के बीच ये संदेश चला जाना चाहिए कि देश में तीन भ्रष्टाचारी हैं। प्रधानमंत्री, कपिल सिब्बल और चिदंबरम। सरकार भ्रष्ट है मतलब केन्द्र की कांग्रेस सरकार भ्रष्ट है। दस बारह दिन तो ये दादा अनशन खींच ले जाएगा। नहीं भी खींच पाएगा तो भी अपना काम तो बन जाएगा। यदि तबियत काफी बिगड़ गई तो बिगड़ जाए। अपना काम बन जाए फिर इनका जो होना होगा सो होगा। पूरे आंदोलन को इतनी ऊंचाई पर ले जाना है कि फिर आगामी तीस साल तक कोई आंदोलन न हो पाये। जनता का सारा गुस्सा प्रेशर कुकर की सीटी के समान निकल जाए। .....................................सुखनवर
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01 09 2011
Thursday, September 1, 2011
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