Sunday, March 13, 2011

इस देश को कौन चला रहा है

पूरा देश विश्वकप में डूब उतरा रहा है। हर समस्या का हल देश का क्र्रिकेट है। इसीलिए इस देश में पूरे समय क्र्रिकेट होता है। ठंड बरसात गर्मी हर मौसम क्र्रिकेट का मौसम। इसी में रहस्य छुपा है। क्र्रिकेट हर समस्या का हल है। जैसे हर आदमी थकहार कर शराब पी लेता है या कोई दूसरा नशा कर लेता है वैसे क्र्रिकेट में डूब जाना भी एक नशा है। इस नशे में देश की बड़ी से बड़ी समस्या भूली जा सकती है। ये मार्च का महीना है। 28 फरवरी को बजट पेश होता है। बजट पेश होते ही विश्व कप क्र्रिकेट शुरू हो जाता है। बजट की आलोचना एक दो दिन में विश्वकप की चर्चा में गुम हो जाती है।
क्या क्र्रिकेट इस देश के बच्चों का भविष्य नष्ट करने के लिये नहीं हैं ? मार्च में पूरे देश में बच्चों और कालेजी छात्रों की परीक्षाएं होती हैं। मार्च में विश्वकप का रखा जाना किसी अंतर्राष्टीय षडयंत्र का हिस्सा नहीं है ? यही नहीं विश्व कप समाप्त होते ही आई पी एल शुरू हो जाएगा। वो तो शुद्ध धंधा है। पैसे से पूरी दुनिया के खिलाड़ी खरीदे और फिर उनसे कहा खेलो सालों जब तक हमें मजा न आए। नहीं खेलोगे तो निकाल देंगे और पैसा नहीं देंगे। खराब खेलोगे तो निकाल देंगे और पैसा नहीं देंगे। बूढ़े हो जाओगे तो नहीं खिलाएंगे और पैसा तो खैर देंगे ही नहीं। आज से पचास साल पहले राजा हरिश्चंद्र फिल्म आई थी। उसमें एक दृश्य था एक मंडी है जहां बहुत से गुलाम खड़े है और एक आदमी उनकी बोली लगा रहा है। राजा हरिश्चंद्र भी गुलामों के बीच में खड़े हैं और उन्हंे भी एक चांडाल बोली लगाकर खरीदकर ले जाता है। हमारे आज की दुनिया के धुरंधर खिलाड़ी भी मंडी में खड़े होते हैं और बिकते हैं। न बिकने पर रोते हैं। खरीदने वाले भी कहते हैं कि हम जवान और सुंदर को खरीदेंगे बूढ़ों अधेड़ों को नहीं खरीदेंगे। एक बूढ़े ने न बिकने पर शिकायत भी कि मेरा मन इस बात से खट्टा हो गया है। अब मैं कभी बिकने नहीं जाउंगा। सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया।
क्र्रिकेट, क्र्रिकेट और क्र्रिकेट। उसी के चैनल, उसी की पत्रिकाएं और उसी के अखबार। जब भी आप कुछ पढ़ना चाहो कुछ देखना चाहो तो आपको केवल क्र्रिकेट देखना होगा। रास्ते में जाओगे तो दुकानों में झांक झांक कर क्र्रिकेट देखते लोग दिखंेगे। ऑफिस में काम करोगे तो चारों ओर कल का देखा हुआ मुंह से उगलते सहकर्मी मिलेंगे। ये कोई आज ही हो रहा है ऐसा नहीं है। क्र्रिकेट का जुनून इस देश में बहुत सोच समझ कर बनाया गया है। जब टी वी नहीं था तब रेडियो और कमेन्टी सबको उलझाए रखती थी। पर तब कम से कम आंखें खाली रहती थीं। कान और मुंह व्यस्त रहता था। अब तो क्र्रिकेट पूरे देश की रफतार रोक देता है। सारे काम बंद। बच्चों की पढ़ाई बंद।
मगर सबसे अच्छी बात ये है कि दुनिया में प्रलय आ जाए और देश में क्र्रिकेट चल रहा हो तो प्रलय का समाचार रोक दिया जाएगा। जापान में इस शताब्दी का सबसे बड़ा भूकंप आया सुनामी से न जाने कितने मारे गये लेकिन यदि आप टी वी देखें अखबार देखें तो यह त्रासदी पूरी तरह गायब है। एक एस एम एस चलाया गया कि उनके लिए प्रार्थना करो क्योंकि हम यही कर सकते हैं। और यह कह कर छुट्टी पा ली गई। पर क्र्रिकेट चल रहा है। इंडिया जीत रही है या हार रही है। बस यही जीवन है। यही जीवन मरण का प्रश्न है। इस बीच सतर्कता आयुक्त थॉमस का मामला चल रहा था। प्रधानमंत्री ने अपनी गलती मान ली। पर मानी तब जब सुप्रीम कोर्ट ने मनवायी। जब थॉमस को नियुक्त किया जा रहा था तो ये बात सच है कि सुषमा स्वराज ने उस मीटिंग में आपत्ति की थी और बहुत शालीन आपत्ति की थी। उनने कहा था कि तीन लोगों का पैनल है। जब थॉमस के नाम पर कुछ आपत्तियां हैं तो इन्हें न बनाकर दूसरे बेदाग आदमी को बनाइये। ये बात दूसरे ही दिन अखबारों में छपी थी। मगर जो भी कारण रहा हो इन्हीं प्रधानमंत्री महोदय ने थॉमस को बनवाया और फिर अड़े भी रहे कि बिलकुल ठीक किया है। उधर थॉमस भी अड़े रहे कि मैं क्यों दूं स्तीफा। नहीं दूंगा। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर थॉमस हटे। उन्हें बनाने वाले प्रधानमंत्री ने माफी मंागी। ऐसा लग रहा है जैसे मनमोहन सिंह जी से कोई व्यक्तिगत गलती हो गई हो। पर मनमेाहन सिंह जी आप जब माफी मांग रहे हैं तो आप भारत की संप्रभु सरकार की विश्वसनीयता दांव पर लगा रहे हैं। ये कैसी सरकार है जो देश के सबसे बड़े चौकीदार की नियुक्ति में जानबूझकर एक दागी को चुनती है और फिर उसे पाक साफ बताती है और फिर माफी मांग लेती है। ये कोई छोटी मोटी बात नहीं है। इससे पता चलता है कि देश कौन चला रहा है। कम से कम वो लोग तो नहीं चला रहे जो चलाते दिख रहे हैं। मगर क्र्रिकेट के हल्ले में सबकुछ डूब जाता है। इसीलिए तो क्र्रिकेट है।

...........................सुखनवर

No comments: