बाबा का फुग्गा कब फूटेगा
बाबा के केश घने हैं। अच्छे काले हैं। ब्रम्हचर्य, योग, शीर्षासन, महाभृंगराज तेल इत्यादि का प्रताप है। केशों कोे लहराते हुए, कभी बांध कर पोनी टेल बनाकर बाबा योग करवाते हैं। बाबा ने योग की मार्केटिंग की। अब तक योग सीखना सिखाना पुण्य का काम माना जाता था। कोई योग के लिए पैसा ले तो उसे पापी माना जाता था। बाबा ने उसका अच्छा व्यापार किया। थोक व्यापार। प्रायः 10 15 लोगों को इकठ्ठा करके योग शिक्षक योग कराते हैं ताकि हरेक पर पूरा ध्यान दिया जा सके। बाबा ने इस रिटेल को थोक में बदला। 2-5 हजार लोगोें को एक साथ योग सिखाया। बाबा ने इस योग की फीस लगाई। न्यूनतम रू 500। बाकी फिर डीलक्स योग 1000। सुपर डीलक्स योग 2000। हाई प्रोफाइल योग रू 5000, 10000। एक बार में एक शहर से बाबा 30 -40 लाख रूपया उठाते हैं। इसके अलावा हर रोज दानदाताओं को प्रेरित करते हैं। पातंजलि ट्रस्ट में दान के लिए। उससे भी पैसा आ जाता है। कुछ लाख रूपये और। हर शहर में जब बाबा पंहुचते हैं तो महीनों पहले एक आयोजन समिति बन जाती है। शहर के प्रमुख व्यापारी और भाजपा नेता उसमें जुड़ जाते हैं। इस योग शिविर के लिए लाखों रूपये चंदा होता है। मैदान बुक होता है। लाखांे रूपयों की हरे रंग की दरी बिछाई जाती है। माइक सिस्टम लगता है। सभी कुछ अति भव्य। हम सबने अपने शहरों में देखा ही है बाबा के साथ जो पवित्र व्यापारी पवित्र राजनेता और पवित्र धर्माचार्य बैठते हैं। इनके पास केवल सफेद पैसा होता है। कभी कभी तो सरकार इतनी बेशर्म हो जाती है कि इनसे इनका सफेद पैसा ही काला कहकर जब्त कर लेती है। इन पवित्र लोगों पर छापे मारे जाते हैं। करोड़ों रूपये जब्त होते हैं। फिर भी ये लोग पीछे नहीं हटते। अच्छे काम किये ही जाते हैं। किये ही जाते हैं। हाय रे संसार की महिमा अजब कौतुक।
संसार का नियम है कि ज्यों ही पैसा आता है आदमी को और पैसा कमाने की सूझती है। और साथ में पैसे को न्यायपूर्ण साबित करने के लिए कुछ भले काम करने की सूझती है। छोटे लोग मंदिर बनाते हैं। सड़क के बीचोंबीच बन जाए तो उसका पुण्य ही अलग होता है। इसके बाद राजनीति करने की इच्छा जोर पकड़ लेती है। बाबा ने जब अटाटूट धन कमा लिया तो उन्हें राजनीति करने की सूझने लगी। बाबा को लग रहा है कि जो लाखों लोग उनसे फीस लेकर योग सीख रहे हैं और एक एक दो दो दिन में उनकी वर्षों की व्याधियां दूर हो रही हैं तो इस चमत्कार को वोट में बदला जाए। पिछले चुनाव में बहुत सोच समझ कर भाजपा ने योजनाबद्ध तरीके से यह मामला उठाया था कि विदेशी बैंकों में विदेशों में जो भारतीयों का कालाधन जमा है उसे वापस लाया जाए। चुनाव में पटकनी खाने के बाद भाजपा ने इस मुद्दे को बाबा रामदेव को सौंप दिया। बाबा इस बॉल से अब कुछ दिन आप खेल लो। बाबा ने अपनी पार्टी बना ली है। चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी है। बाबा की आर एस एस से दोस्ती जगजाहिर है। भाजपा उनके साथ है ही। भगवा वस्त्रधारी सब एक हो चुके हैं। तो बाबा ने कहा कि काला धन वापस आना चाहिए। इससे देश की सभी समस्याओ का हल हो जाएगा।
होम्योपैथी और आयुर्वेद में रोग को जड़ से खत्म करने की बात की जाती है। केवल लक्षण और बाहरी दर्द को खत्म नहीं करना है बल्कि रोग को जड़ से उखाड़ देना है। बाबा ने यहां थ्योरी बदल दी। रोग की जड़ के बारे में बात ही नहीं करते। काला धन वापस ले आओ। बस। सारा देश ईमानदार हो जाएगा। सरकारी लोग रिश्वत खाना बंद कर देंगे। व्यापारी रिश्वत देना बंद कर देंगे। भ्रष्टाचार बंद हो जाएगा। बाबा के पास हर चीज का हल है। भ्रष्टाचार मिटाओ। कांग्रेेस मिटाओ। मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी चिदंबरम सबको हटाओ। बाबा के पास हर समस्या का हल है। करेंसी बदल दो काला धन बाहर आ जाएगा। संधि तोड़ तो काला धन वापस आ जाएगा। पर बाबा यह नहंीं बताते कि जिन लोगों का काला धन विदेशों में रखा है उनके साथ क्या सलूक किया जाना है। ये काला धन हमारे देश की पवित्र लोकतंात्रिक व्यवस्था की पैदाइश है। भ्रष्टाचार कोई व्यवस्था नहीं है। यह हमारी व्यवस्था की पवित्र संतान है। जब तक व्यवस्था नहीं बदलोगे तब तक भ्रष्टाचार जारी रहेगा। बाबा तो निजाम बदलने की बात ही नहीं करते। गरीब किसान मजदूर की बात ही नहीं करते। देश की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या है। उसकी बात नहीं करते।
हर समझौते हर ठेके में पैसा लगता है। चुनाव लड़ने में हर चुनाव क्षेत्र में आज कल करोड़ों रूपये लगते हैं। बाबा चुनाव लड़ेंगे तो उनके उम्मीदवारों को भी हर चुनाव क्षेत्र में करोड़ों रूपये खर्च करने होंगे। ये कहां से आएंगे। बाबा किसी को मुफ्त में योग सिखाते नहीं। बाबा का काम कौन कार्यकर्ता मुफ्त मेें करेगा। ये करोड़ों रूपये कहां से आयेंगे। सवाल इस व्यवस्था का है जिसमें आर्थिक असुरक्षा इतनी है कि हर कोई ज्यादा से ज्यादा कमा लेना चाहता है। इसीलिये आज कल बाबा बनना भी धंधा हो गया है। संतों के रंगीन विज्ञापन छपते हैं। इंडिया टुडे में जैन संत अपने आपको विज्ञापित करते हैं। क्यों ? संतों को विज्ञापन की क्या जरूरत ? प्रतियोगिता का जमाना है। संतगिरी में भी प्रतियोगिता है। प्रवचन देना भी धंधा है। हर चीज धंधा है। तो जरूरत इस व्यवस्था को बदलने की है जिसकी चिंता कम से कम बाबा रामदेव को तो नहीं है। इसी लिए ये फुग्गा फूट्रेगा। कब फूटता है यही देखना है। ..........सुखनवर
Sunday, March 13, 2011
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