Tuesday, March 29, 2011

देश चल रहा है।

मैं पिछले कई दिनांे से काफी परेशान हूं। मैं राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना चाहता हूं। मैं अपने देश का श्रेष्ठ नागरिक बनना चाहता हूं। इसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं। यहां तक की मैं लगातार टी वी देखने तक को राजी हूं। राजी हूं क्या बल्कि देख ही रहा हूं। इस देश का आम नागरिक टी वी में जो कुछ दिखाया जा रहा है और अखबारों मंे जो कुछ छप रहा है उसी को देखने और पढ़ने के लिए मजबूर है। युवा पीढ़ी जरूर इन्टरनेट देखती है। और उसमंे जो ज्ञान का भंडार संचित है बल्कि सूचनाओं का भंडार संचित है उसका प्रस्फुटन उसके दिमाग और व्यवहार में दिखाई दे रहा है। मगर मैं युवा पीढ़ी से क्यों जलूं ? जब मैं युवा था तब मैंने अपने समय में क्या जुलुम नहीं ढ़ाए ? मैं तो आज की बात कर रहा हूं मैं टी वी देख देख कर राष्ट निर्माण के लिए प्रेरित हो रहा हूं। इसके तहत मुझे सुबह उठकर योग करना चाहिए। ये बात तो मेरी समझ में आ गई है। सुबह घूमने भी जाना चाहिए। जब मैं सुबह घूमने जाता हूं तो देखता हूं कि इक्का दुक्का लोग घूम रहे हैं। और ये भी इसीलिए घूम रहे हैं क्योंकि इन्हें डाक्टर ने कहा है। हमारे देश में यदि कोेई सुबह घूमता मिले तो समझ लीजिए कि ये ब्लड प्रेशर या डायबिटीस का ताजा मरीज है और इसे कल परसों ही डाक्टर ने घूमने को कहा है। ये ताजा मरीज जरूर एक नया खरीदा टेकिंग सूट धारण किए होगा। ये आदमी एकाध महीने से ज्यादा मार्निंग वॉक न करेगा। व्यायाम और मेहनत हमारे खून में ही नहीं है।
तो हमारे खून में क्या है ?
सुस्ती, अपने काम से काम। काम भी यदि हो तो वरना बैठे रहो। पहले घर के बाहर बैठो। फिर चौराहे पर जाकर बैठो। फिर घर आकर टी वी के सामने बैठ जाओ। आजादी मिलने के पहले कुछ लोगों के पास अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाने का काम था। ये लोग व्यस्त रहते थे। अंग्र्रेज चले गए तो ये लोग भी बेरोजगार हो गए। इन लोगों को जेल जाने की आदत पड़ गई थी। ये आदत गांधी जी ने डलवायी थी। आजादी के बाद काफी दिनों तक ये अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करते रहे और जेल जाते रहे। दूसरी आदत उन्होंने बहुत सोच समझ कर डलवायी थी। भूखे रहने की। उपवास करने की। उन्हें मालूम था कि कोई आदमी यदि कोई काम न करेगा तो उसके भूखे रहने के दिन आएंगे। उसके लिए भूखे रहने को एक आदर्श नाम दे दो। उपवास। एक और शब्द उन्होंने ईजाद किया था। वो भी इसी मजबूरी की उपज थी। वो है सत्याग्रह। कहीं भी जाकर बैठ जाओ। उठो नहीं कहो हम सत्याग्रह कर रहे हैं। आज भी हमारे यहां करोड़ों निखट्टू बिना काम किए अपने घर में सत्याग्रह करते रहते हैं। आखिरकार उन्हें बिना कुछ किए भोजन मिल ही जाता है। घर की महिला चाहे मां हो या पत्नी इन निखट्टुओं के लिए खाने का इंतजाम तो कर ही देती है।
सुबह आप ऑफिस चालू होने के पहले पंहुच जाएं और ऑफिस में काम करने वालों को आते हुए देखें। ऑफिस कर्मी बहुत धीरे से ऑफिस में प्रवेश करेंगे और इतने हारे थके दिखेंगे कि लगता है दसेक मील पैदल चलकर आ रहे हैं। इनकी दाढ़ी बढ़ी होगी जो ये साबित करेगी कि इन्हें समय नहीं मिला दाढ़ी बनाने का। कपड़े गंदे होेंगे क्योंकि इन्हें धोने का समय नहीं मिला। पर एक बात इनके चेहरे को देखते ही पता चलेगी कि इन्होंने नहाया है। इनके माथे पर भांति भांति के तिलक लगे रहेंगे। पूजा पाठ जरूर करेंगे। ऑफिस में पंहुचते ही ये लोग धम्म से कुर्सी पर गिर जाएंगे। अब काफी देर तक इनसे कोई उम्मीद नहीं की जाए। ये आफिस आने में थक चुके हैं और वैसे भी इनके जीवन का आज के दिन का सबसे महत्वपूर्ण काम हो चुका है। आफिस में ये हाजिर हो चुके हैं। जब ऐसे हारे थके लोगों का एक समूह बन जाएगा तो ये अपने शरीर को उठायेंगे और चाय पीने चले जाएंगे। धीरे धीरे जाएंगे और धीरे धीरे आएंगे। उनके लौटने के बाद ये लोग कुछ लोगों को ये कहकर टरकाएंगे कि बहुत काम है कल आना या साहब नहीं आए हैं। इस तरह टरकाने पर आदमी पैसे दे देता है। इसी बीच खाना खाने का समय हो जाएगा। ये खाना खायेंगे या घर चले जाएंगे या सो जाएंगे। शाम होने लगी है। घर चले जाएंगे। ये एक आम ऑफिसकर्मी की दिनचर्या है।
जो लोग ऑफिस नहीं जाते उनकी दिनचर्या भी कोई दिनचर्या है। वो धंधा करते हैं। और इन्हीं आफिसों में काम कराने के लिए चक्कर लगाते हैं। देश चल रहा है।

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