मजबूरी है साहब। बाप दादों की प्रापर्टी है। ऐसे कैसे छोड़ दें। मेरा तो पालिटिक्स में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मैं तो अच्छा भला स्टेट्स में रह रहा था। सिस्टर यहां थी ही। उसका इंटरेस्ट भी है। उसमें ग्रेंड मा के समान लुक भी है। वो सम्हाल रही थी। मगर मेरे पीछे पड़ गए। मदर भी अकेली पड़ रही थीं। उनने भी कहा बेटा आओ मदद करो। यहां तो एक से एक घाघ हैं। क्या बताऊं आपको।े कहा कि मॉम की मदद करने आ जाओ। तो आ गए हैं साहब। घूम रहे हैं गांवों में। क्या क्या नहीं करना पड़ रहा है ? कभी तो लगता है कि सब कुछ छोड़ो छाड़ो और वापस चलो। यहां इंडिया में तो इतनी धूप है इतनी गर्मी है कि जीना मुश्किल है। न जाने लोग कैसे रहते हैं।
क्या था कि जब तक ग्रेंड मा थीं तब तक चलता था। वो पॉलिटिक्स जानती थीं। वो सबको चराती रहती थीं। पूरी पार्टी में कोई चीं नहीं बोल सकता था। वो जानती थीं कब क्या करना है। कब किसे उठाना है कब किसे गिराना है। लोग कहते हैं कि हममें उनका खून है। हमें स्वाभाविक रूप से ये सब आना चाहिए। पर पहले बहुत लायक लोग हुआ करते थे। लायकों में से नालायक निकालना बहुत बड़ा काम हुआ करता है। अब क्या हाल हैं ? कितने स्टेट हैं जिसमें हमारी पार्टी ही नहीं है। अब बताइये क्या करें। ग्रेंड मा के जमाने में और आज के जमाने में बहुत फर्क है। तब सोवियत यूनियन था। उधर स्टेट्स से प्रेशर आया और यहां ग्रंेड मा ने मास्को फोन लगाया उधर वाशिंगटन वाले सीधे हो गए। अब कौन है जिसके बल पर हम एंेठें। और हमारी पार्टी ? कितने स्टेट में तो है ही नहीं। लोग कांग्रेेेस को वोट क्यों दें ? कांग्रेस हो तब न वोट दें। हमारा फार्मूला लेकर न जाने कितने प्रोडक्ट मार्केट में हैं। कितना काम्पटीशन है। आप समझिये। ये मुलायम सिंह ये मायावती ये लालू यादव ये पासवान ये करूणानिधि ये जयललिता ये ममता बैनर्जी ये सब कांग्रेस ही तो हैं। मगर इस बीच जो वैक्यूम क्रियेट हुआ है उसके कारण इन लोगों की बन आई है। हर स्टेट में अलग अलग पॉकिट्स बन गए हैं। वो तो भला हो इस भारतीय जनता पार्टी का जो हिन्दुत्व का मुद्दा लिए हुए है। ये यदि इस मुद्दे को छोड़ दे तो आज इसका कब्जा हो जाए देश पर। आखिर बताइये हममें और इनमें क्या फर्क है। इकॉनॉमिक पॉलिसी एक। फॉरिन पॉलिसी एक। फर्क ये है कि हम लोगों को कुछ वैल्यूज़ हमारे पुरखे सिखा गये हैं वैसे ही इनके पुरखे इन्हें सिखा गये हैं दंगे और धर्म की पॉलिटिक्स। हम लोग ये नहीं करते बस। अब तो मुझे भी समझ में आ गया है कि इन्हें धर्म की पॉलिटिक्स करने से मत रोको। खूब करने दो। और दो की चार लगाओ। जब तक ये सब करते रहेंगे गलतफहमी में बने रहंेगे कि हम सत्ता में आने वाले हैं। एक बार आ गए थे। फिर कैसे चले गए। कहां गया शाइनिंग इंडिया।
मेरी तो बड़ी मुश्किल है। मुझे पॉलिटिक्स आती नहीं। मुझे भाषण देना नहीं आता। बीसों साल से हिन्दी बोली नहीं। गांवों में अनपढ़ लोग हैं। अंग्रेजी आती नहीं। कैसे मैं अपने थॉट्स को कन्वे करूं। पापा को भी मेरी तरह पॉलीटिक्स में धक्का दिया गया था। वो तो पाइंट्स बनवा लेते थे और चिट्स रखे रहते थे। मैं क्या करूं। मेरी क्या हालत है बताऊं आपको। मुझे तो पानी में फेंक दिया है। अब सिवाए तैरने के कोई चारा नहीं है। दौड़े जाओ। एक स्टेट में चुनाव खत्म होते हैं तो दूसरे में चालू। उस पर से मुझे यूथ कांग्रेस सम्हालने को दे दी। अरे बाप रे। ये कांग्रेस का यूथ है ? इनकी शकल देखकर तो खून ठंडा हो जाता है। दे आर जस्ट..... खैर जाने दीजिए पार्टी का मामला है। कुछ मुंह से निकल गया तो मीडिया वाले जान ले लेंगे। एक तो इस देश के मीडिया से मैं बहुत परेशान हूं। इन्हें लगता है कि देश इनसे पूछ कर चलाया जाए। क्यों भई हम लोग चुनाव लड़ कर सत्ता में आए हैं। हमें जो करना है करेंगे। आपसे क्यों पूछेंगे। आप कोई कोर्ट हैं कि रोज हर बात का जवाब देते रहें। पर वैसे पिछले चुनाव से काफी ठीक हो गया है। रेट तय हो गया है। पैसा ले लेते हैं और चुप रहते हैं। अब बेसिक प्राब्लम्स पर बात नहीं करते। क्राइम वगैरह दिखाकर समय काटते रहते हैं।
अब बताऊं आपको परमाणु समझौते के बारे में। बुश का टाइम खत्म हो रहा था। उसने कहा कि मुझे तो एग्रीमेंट करना है। आपको करना पड़ेगा। पी एम ने कहा कि हमारे यहां सी पी एम वाले समर्थन वापस ले लेंगे। बुश ने कहा नथिंग डूइंग। कह दिया मतलब कह दिया। कल आ जाओ और साइन करो। अब बताइये। इस कंडीशन में हम क्या करते। वैसे भी सरकार गिरती और ऐसे भी सरकार गिरती। तो सी पी एम वाले बुरा मान गए। अब मान गए तो माने रहो। हमारी भी मजबूरी थी। अच्छा ही हुआ। इन लोगों से पीछा छूटा। सरकार में शामिल भी नहीं होते थे। जिम्मेदारी भी नहीं लेते थे और काम भी नही करने देते थे। इधर ये ब्लैकमेलिंग कर रहे थे उधर बुश ब्लेकमेलिंग कर रहे थे।
अब हम लोग तो किसी को जानते नहीं। जो जैसा बता देता है। कर देते हैं। लोग समझते हैं कि हम पार्टी के मालिक हैं। जबकि सचाई क्या है ? हम तो डमी हैं। असली पार्टी तो इंडस्ट्री वाले हैं। उनके पास पैसा है। उन्हें पैसा कमाना है। हम तो उनके लिए सरकार चला रहे हैं। हमें तो पता भी नहीं चलता। जो वो चाहते हैं वो हो जाता है। हमारी सरकार भी कोई सरकार है। सरकार में शामिल किसी पार्टी को हम कुछ नहीं बोल सकते। चाहे वो चोरी करे चाहे डकैती करे। हमारी पॉलिसी कुछ है और मिनिस्ट्री करती कुछ है। बोल नहीं सकते। क्योंकि गठबंधन धर्म है। अजीब प्राब्लम है इंडिया में। इन सबके लिए मैं गांव गांव घूम रहा हूं। मजाक है न। बाप दादों की इस प्रापर्टी का मैं क्या करूं? कहां तक सम्हालूं। .................................................सुखनवर
Wednesday, May 18, 2011
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1 comment:
nice one
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