देश की कांग्रेस पार्टी में कई ऐसे महान नेता हुए हैं जो अपने पद पर अंतिम राजा साबित हुए। जब तक इन्होंने राज किया तब तक किसी को बढ़ने न दिया। देश में एक ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्हें पी वी नरसिंहाराव के नाम से जाना गया। इन महाशय ने न केवल अपनी देखरेख में बावरी मस्जिद गिराई बल्कि ऐसी सरकार चलाई कि इनके बाद पूरी कांग्रेस पार्टी को विपक्ष में बैठना पड़ गया। या तो हम रहेंगे या फिर कोई नहीं रहेगा। ये इतना प्रभावकारी सिद्धांत साबित हुआ कि कई लोग जो प्रधानमंत्री बन सकते थे उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। अंतिम राजा ने पूरी व्यवस्था कर दी थी कि उनकी पार्टी चुनाव हार जाए। इसीलिए जो विपक्षी ये समझते हैं कि वो चुनाव जीते हैं वो गलत हैं दरअसल वो चुनाव नहीं जीते हैं वरन् नरसिंहाराव चुनाव हारे हैं। यही स्थिति मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की रही। ये नौ साल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पहले पांच साल के बाद जब चुनाव हुए तो सभी मान रहे थे कि कांग्र्रेस चुनाव हार जाएगी मगर जीत गई। जीतने वाले खुद आश्चर्य में पड़ गये कि हम कैसे जीत गये। हम तो अपने आपको हारा हुआ मान रहे थे। इसके बाद दिग्विजय सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनको मालूम था कि यदि पीछे मुड़ कर देखेंगे तो आगे नहीं बढ़ पायेंगे। अगले पांच साल तक मध्यप्रदेश की जनता को दिग्विजय सिंह को जिताने की सजा मिली। इसी बीच दिग्विजय सिंह को ज्ञान प्राप्त हो गया। उन को समझ में आ गया कि यदि बिना कुछ काम किये हम चुनाव जीत जाते हैं तो इसका मतलब चुनाव जीतने के लिए काम जरूरी नहीं है। काम तो होते रहते हैं असल चीज है दाम, जो यदि पास में हों तो चुनाव जीतने से लेकर मैच तक सभी कुछ जीता जा सकता है। इसीलिए भरपूर दाम कमाए गए और जैसा कि तय था इस बार दिग्विजय सिंह हारे और बढ़िया हारे। इसीलिए यदि बी जे पी को ये लगता है कि उन्होंने चुनाव जीता है तो ये उनकी गलतफहमी है। दिग्विजय सिंह राजा हैं और उनका ये राजसी अंदाज हर जगह दिखाई देता है। आज यदि मध्यप्रदेश में बी जे पी सरकार चला रही है तो दिग्विजय सिंह की उदारता के कारण। न वे चुनाव हारते न मध्यप्रदेश में दूसरी सरकार आती। कांग्रेस की हार के पीछे एक कारण ये भी था कि दिग्विजय सिंह को बिना पीपल के झाड़ के नीचे बैठे ये ज्ञान प्राप्त हो गया था कि सरकार चलाना है तो अपना भला देखो। ये जीवन सुख से जीना है और उसके लिए पैसे कमाना है। चुनाव काम करके नहीं जीते जाते गणित करके जीते जाते हैं। दिग्विजय सिंह इंजीनियर आदमी हैं। गणित में अच्छे नंबर मिलते रहे होंगे। तो उनने गणित लगा लिया कि किस जाति के कितने लोग हैं। उनके वोट कैसे प्राप्त किए जाएं। मगर अंततः वही हुआ। दिग्विजय सिंह चुनाव हार गये।इसे कहते हैं दुनिया को समझना। उन्हें मालूम था कि जनता उनसे आजिज चुकी है। इसी बीच उनने बिना मांग के ये घोषणा की कि वो आगामी दस साल तक चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्हें मालूम था कि जो दशा उन्होंने 9 साल में की है उसके कारण आगामी दो चुनाव तक तो कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकती। सो उनने भी कह दिया कि हम दस साल तक चुनाव नहीं लड़ेंगे। बाकी लोग चुनाव लड़ें और हारें। हम न लड़ेंगे और न हारेंगे।
अब यही दिग्विजय सिंह जो मध्यप्रदेश में सरकार नहीं चला पाये कांग्रेस को पूरे देश में चलाने की जिम्मेदारी निभाने पर उतारू हैं। पूरे देश में अपना दायित्व निभा रहे हैं। आजकल अन्ना हजारे की मुहिम के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। उनका काम है दिनभर में कोई एक ऐसी बात बोल देना जिससे दिनभर मामला गर्म रहे। अब लोकपाल बिल की बात कम और दिग्विजय की बात ज्यादा चल रही है। वो हर नो बॉल खेल रहे हैं। विरोधी छक्के मार रहे हैं और खुश हैं कि वो बहुत अच्छा खेल रहे हैं।उनका काम असल मुद्दे से ध्यान हटाना था जो पूरा हो गया। अन्ना हजारे के प्रेशर कुकर की हवा निकल चुकी है। मुहिम का भट्टा बैठ चुका है। हो सकता है कि ये झगड़ा इतना बढ़े कि आसां हो जाए। केवल झगड़े होते रहें और असल मुद्दा दफ्न हो जाए। अब असल मुद्दा लोकपाल बिल नहीं है असल मुद्दा है बिल बनाने वाली कमेटी में कौन रहेगा। जो भी रहेगा उसके खिलाफ आरोप लगाए जाएंगे जिससे वो न रह पाये। इस तरह जब कमेटी ही नहीं रहेगी तो बिल कहां से बनेगा और जिम्मेदारी भी अन्ना हजारे की है कि वो भ्रष्टाचार हटाना चाहते हैं पर दो पाक साफ लोग नहीं बता पा रहे। ..........................................................सुखनवर
Wednesday, May 4, 2011
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