Wednesday, May 4, 2011

भ्रष्टाचार केवल पैसे का नहीं होता

दरअसल ये एक मुगालता है कि भ्रष्टाचार अमीरों या पैसे वालों का चांेचला है। मैं कण कण में व्याप्त हूं। मैं समस्त चराचर जगत को चलाता हूं। मैं संज्ञा भी हूं। सर्वनाम भी हंू। क्र्रिया भी हूं और विशेषण भी हूं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि मैं पूरी व्याकरण हूं। समाज मेरे बिना मूक बधिर है। मैं हर गरीब अमीर के साथ हूं। मैं सर्वहारा हूं। अमीर हो या गरीब जब जिसे जहां मौका मिलता है मुझे कर लेता है। जो नहीं कर पाता वो मेरा आलोचक हो जाता है। मैं उससे नहीं डरता क्योंकि मुझे मालूम है वो मेरा विरोधी इसीलिए है कि वो मुझे कर नहीं पाया।
मुझसे अपेक्षा की जाती है कि मैं न होऊं, मगर मैं क्यों न होऊं। मेरे होने में ही समाज की सार्थकता है। जहां जो कुछ भी हो रहा है वो मेरे ही कारण हो रहा है। मैं जगत का स्वामी हूं। मेरे बिना पत्ता भी नहीं खड़कता। मुझे नहीं मालूम की वो पत्ता कहां रखा रहता है जिसके खड़कने का नोटिस लिया जाता है। पर फिर भी कहावत है तो वो सही है। दो परिवारों में शादी की बात चलती है। दोनों ही पवित्र हैं। मगर जब सब तय होता है तो दरअसल लड़की लड़के की बिक्र्री होती है। बाजार भाव के अनुसार। और इसे कहा जाता है हैसियत के अनुसार। हैसियत वो बाजार भाव है जिसके आधार पर लड़की वाला अपनी लड़की के लिए लड़का खरीदने को तैयार हो जाता है। यहां भी मैं हूं। मुझे करने वाले तक नहीं मानते कि शादी ब्याह में मैं हूं पर मैं हूं। मेरी मजबूत उपस्थिति के बिना ब्याह कैसे होगा। दहेज नकदी लेन देन द्वार चार जयमाला सब जगह मैं हूं। आप देखिये तो सही।
चुनावों के समय सबसे ज्यादा चर्चा मेरी ही होती है। सब कोई मुझे मिटा डालना चाहते हैं। चुनाव जीतने के लिये करोड़ों रूपये चाहिये। कोई मेहनत की कमाई से करोड़ों रूपये कमा नहीं सकता और मेहनत की कमाई को चुनावों में गवां नहीं सकता। मैं ही इन सभी उम्मीदवारों के काम आता हूं। मेरे द्वारा कमाई गई दौलत लुटाई जाती है। पर मैं घाटे मंे नहीं रहता। चुनाव जीतते ही जीतने वाला मेरी सेवा में लग जाता है। अगले चुनाव तक उसे चुनाव जीतने के लिए लगाया हुआ पैसा वापस लाना होता है वरन् अगले चुनाव के लिए लगाया जाने वाला पैसा भी उगाहना है। इसीलिये मेरा उपयोग द्विगुणित हो जाता है। मैं दूनी रफतार से काम करता हंू। जो मेरे सबसे बड़े विरोधी हैं वो मीडिया वाले पहले विज्ञापनों आदि के माध्यम से चुनावों में कमाई कर लेते थे। अब चुनाव आयोग के नियमों की मजबूरी में कुछ नए रास्ते निकाले गये हैं। मीडिया का काम होमियोपैथी के समान हो गया है। जैसे होमियोपैथी की दवाई खाने से फायदा न हो नुकसान नहीं होता उसी प्रकार मीडिया को नगद पैसे दे दो तो ये चुप हो जाते हैं नुकसान नहीं करते। यदि दवाई से फायदा लेना हो तो उसका रेट और ज्यादा है। ये बात अलग है कि इस सबके बाद सब मेरी बुराई करने से नहीं चूकते। मैं हूं न।
कई लोगों की मजबूरी है। वो मुझे करना नहीं चाहते। मगर सरकार के नियम ऐसे हैं शिष्टाचार ऐसा है लोकाचार ऐसा है कि मैं हो जाता हूं। कितने ही विभाग ऐसे हैं जहां के अफसर परेशान रहते हैं। कुछ न कहो, कुछ न करो फिर भी देखो कि आज सफाई की और कल फिर करोड़ रूपये घर में पड़े हैं। क्या करें। कुछ समझ में नहीं आता। कुछ बंगले बनवा लिये कुछ फार्म हाउस खरीद लिये मगर ये साला पैसा है कि खत्म ही नहीं होता। कुछ पैसा दीवारों में चुनवा दिया फिर भी पैसा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। चलो तिरूपति चले गये। दो चार किलो सोना बिना नाम के चढ़ा दिया। भगवान भी खुश हो गये। परलोक सुधर गया। मगर फिर पैसा ही कि आए जा रहा है। मना करो तो और ज्यादा आने लगता है। देेने वाले को लगता है कि साहब को कम पड़ रहा है। वो और पंहुचाने लगता है। देने वाला और लेने वाला दोनों आध्यात्मिक हैं। न वो देना चाहता है न लेने वाला लेना चाहता है मगर मजबूरी दोनों की है न वो देने से पीछे हट रहा है और न लेने वाला लेने से। विनम्रता और ईमानदारी भी कोई चीज होती है भाईसाब। जो कमिटमेंट है वो तो पूरा करना ही है। दस परसेंट की बात हो गई याने हो गई। वो तो साहब पूजापाठ वाले आदमी हैं भगवान को मानते हैं इसीलिए कम रेट लग गए वरना आजकल तो ये साले बीस और पच्चीस परसेंट के लिये मुंह फाड़ते रहते हैं।
हमारे समाज में मेहनत करना नीच काम माना जाता है। बिना मेहनत के यदि दोनों वक्त का खाना भी मिल जाए कोई कमाई भी न हो तो आदमी बहुत खुश होता है। बिना मेहनत के चोरी बदमाशी से पैसा कमा लो तो समाज में पूछ परख होगी। सारी सुख सुविधाएं होंगी। अपने पैसे से आप चाहे जिस मेहनत करने वाले को खरीद सकते हो। ये पवित्र भावना समस्त धरतीपुत्रों में घर कर गई है। जब तक ये भावना रहेगी मुझे कोई कैसे खत्म कर सकता है। लोगों को जब यह मालूम ही नहीं कि मैं कौन हूं और कहां कहां व्याप्त हूं तब तक मुझे कैसे खत्म किया जा सकता है। आज कुछ नौजवान लाखों लाख वेतन पा रहे हैं वो सुबह से रात तक काम करते हैं। उनका कोई जीवन नहीं है। वो पूरी तरह अपनी नौकरी को समर्पित हैं। वो मेरे खिलाफ हैं पर उन्हें नहीं मालूम कि मेहनत करने वालों ने अपना खून सड़कों पर बहाकर काम के घंटे तय करवाये थे। आठ घंटे काम। बाकी समय हमारा। आखिर मैं यहां भी तो हूं।
सरकार के एक विभाग ने एक विचार पत्र तैयार किया है कि क्यों न मुझे कानूनी रूप दे दिया जाए। बहुत अच्छी बात है। जिस दिन आप उसे कानूनी रूप दे देंगे वो मेहनत की कमाई हो जाएगी। उसके उपर की हराम की कमाई फिर चालू हो जाएगी क्योंकि मुझे वो नष्ट नहीं कर सकता जो खुद भ्रष्ट हो। और भ्रष्टाचार केवल पैसे का नहीं होता। ये एक मानसिकता है। ,,,,,,,सुखनवर

2 comments:

tension point said...

बहुत अच्छे | लिखे जाओ |

tension point said...

बहुत अच्छे | लिखे जाओ |