Wednesday, May 25, 2011

बहुत कठिन है डगर राजनीति की

बहुत कठिन है डगर राजनीति की
बाबा तूफानी दौरे पर हैं। दिन रात चल रहे हैं। हजारों किमी चल चुके हैं। अभी हजारों किमी और चलेंगे। बहुत जोश में हैं। हर रोज दो दो शिविर ले रहे हैं। पांच पंाच सभाएं कर रहे हैं। उनका अपना टेंट हाउस है। अपना खुद का साउंड सिस्टम है। अपना खुद का टी वी चैनल है। हर शहर कस्बे में इनकी दुकान खुल चुकी है। उसके संचालक को सख्त निर्देश है बाबा की पूरी व्यवस्था करो वरना दुकान बंद। बाबा ने घोषणा कर दी है कि सब पार्टियां बेईमान हैं। मेरी खुद की पार्टी बनेगी। मेरे ईमानदार लोग चुनाव लड़ेंगे। वो ईमानदार सरकार बनाएंगे। इस चक्कर में सब पार्टियों के नेताओं ने हाथ खींच लिए। जब संयोजकगण चंदा मांगने गए तो हाथ जोड़ लिए। भैया जब तक बाबा योग सिखा रहे थे तब तक ठीक था। अब वो पार्टीबाजी कर रहे हैं तो हम भी पार्टी से बंधे हैं। हम तो पूरा शिविर करवा देते पर अब नहीं करवा सकते। हम पूरी तरह साथ हैं पर सामने नहीं आ सकते। चंदा ले जाओ। दो पांच हजार। ईमानदारी का इतना ही पैसा है। इससे ज्यादा तो कालाधन ही दिया जा सकता है। वो बाबा लेंगे नहीं। हम देंगे नहीं। अब बाबा का एक यात्रा का खर्च है एक दिन का पन्द्रह से बीस लाख रूपये। इसमें उनके टेन्ट हाउस साउंड सिस्टम और आस्था चैनल की फीस शामिल है। खैरियत है। इतना सारा सफेद धन हर शहर में कहां है। कुछ तो काला मिलाना पड़ता है। कार्यकर्ता परेशान है। जिस पैसे वाले के पास जाओ उसके पास सफेद धन की कमी है। काला लेना नहीं है।
पहले बाबा तीन दिवसीय शिविर करवाते थे। बड़ी तैयारी होती थी। पूरी भाजपा जुट जाती थी। मंत्री से लेकर संत्री तक पूरा सरकारी अमला जुट जाता था। एक बार के आयोजन का बजट बनता था एकाध करोड़ रूपये। अस्थायी कार्यालय खुल जाता था। स्वागत समिति बन जाती थी। स्थान चयन से लेकर टिकिट बिक्री तक सभी व्यवस्थाएं होती थीं। बाबा के शिविर में कोई फ्री सर्विस नहीं थी। कम से कम पांच सौ तो लगना ही है। एक शिविर पचास साठ लाख के फायदे में जाता था। फिर लोगों को पातंजलि ट्रस्ट के लिए दान देना होता था। सभी राजनेता उद्योगपति अपना अपना धन बाबा को दान करते थे। उस समय तक बाबा ने सफेद काले का कोई भेदभाव रखा नहीं था। जिसके पास जो हो सो दे।
अब बाबा को कुछ और सूझ गया है। अब योग एक बहाना हो गया है। अब राजनीति सूझ रही है। अब इंस्टेंट काफी के समान इंस्टेंट योग शुरू हो गया है। बीमार परेशान आदमी ऐलोपैथी फिर आयुर्वेद फिर होम्योपैथी में जाता है। जब कहीं फायदा नहीं मिलता तो भगवान की शरण में जाता है। यहां बाबा के यहां सबकुछ है। भगवान भी हैं बाबा स्वयं हैं आयुर्वेद भी है और योग भी है। आस्था चैनल भी है। और सबकुछ तुरंती है। एकदम तुरंत फायदा होता है। मैदान मंे योग करो। तुरंत बताओ कि ब्लडप्रेशर कम हो गया। फिर बाहर आकर दवाईयां खरीद लो। सिंगल विंडो सिस्टम। एक ही खिड़की से सभी सुविधाएं उपलब्ध। अब दवाईयां ही नहीं आटा और कास्मैटिक्स भी बाबा बेच रहे हैं। सामान अच्छा है और अपेक्षाकृत सस्ता है।
बाबा से भाजपा को बहुत उम्मीदें थीं। भाजपा को बाबा से बहुत उम्मीदें थीं। बाबा भी राष्ट्र राष्ट्र करते हैं। भाजपा तो राष्ट्र राष्ट्र करती ही है। अभी अभी बाबा अन्ना हजारे के अनशन में अपने निजी विमान से दिल्ली आए तो साथ में विमान में आर एस एस के प्रवक्ता राम माधव को लाए। ये एक संकेत है। बाबा ने योग बेचकर एक नये उद्योग को जन्म दिया है। पहले योग व्यायाम और आध्यात्म से जुड़ा था। बाबा ने उसे घर घर पंहुचाया और स्वास्थ्य व धंधे से जोड़ा। योग सीखने का पैसा देना होगा। लोगों ने दिया। बाबा ने प्रवचन नहीं दिया। धर्म के नाम पर धंधा नहीं किया। बाबा ने स्वदेशी सामान बनाया। अच्छा बनाया और उसे बेच रहे हैं। इसीलिए बाबा यह चाहते हैं कि विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हो स्वदेशी का इस्तेमाल हो। सभी स्वदेशी कंपनियों का भला होगा। स्वदेशी कंपनियां बच नहीं पा रही हैं। सबको उदारीकरण चाट गया है।
बाबा को न जाने किसने ज्ञान दे दिया कि जितने लोग तुम्हें सुनने देखने और योग करने आते हैं वो सब तुम्हारे वोटर हैं। तुम वोट मांगोगे तो वोट दे सकते हैं। तो बाबा को राजनीति सूझ गई है। बाबा का एजेंडा है विदेशों में जमा काला धन वापस लाना है। काला धन कांग्रेस का है। इसी की सरकार वापस नहीं लाना चाहती। इसी को बदलना है। चोर राष्ट्रद्रोही और गद्दार जो शासन कर रहे हैं उन्हें मार भगाना है। बड़े नोट बंद करना है। जनलोकपाल बिल बनवाना है। बाबा अनशन पर बैठ रहे हैं। अब अनशनों की लड़ाई शुरू होगी। पहले अन्ना हजारे बैठे। अब बाबा बैठे। जबसे बाबा रामदेव ने राजनैतिक तेवर अपनाए हैं तबसे राजनीतिज्ञों ने उनके पीछे से हाथ खींच लिए हैं। प्रेस और इलेक्टॉनिक मीडिया से बाबा गायब हो चुके हैं। राजनीति शुरू हो चुकी है।
पहले भी अनेक बाबाओं ने राजनैतिक पार्टी बनाई है। चुनाव लड़े हैं। हारे हैं। राजनैतिक पार्टी एकसूत्री या दो सूत्री एजेंडे पर नहीं बनती। हमारे देश में बहुत सी प्रादेशिक पार्टियां हैं जो बिना किसी आर्थिक नीति, विदेश नीति के बनती हैं और चलती रहती हैं। ये केन्द्र सरकार में शामिल भी रहती हैं। पर इनका काम एकसूत्री होता है अपना भला करना जैसे तृणमूल का हो या डी एम के का हो। मगर यदि आप देश पर शासन करना चाहते हो तो अपनी पार्टी को सामने तो लाओ। बताओ तो कि इसमें कौन शामिल हैं। जनसंख्या, पेयजल, पर्यावरण, साम्प्रदायिकता, असंगठित मजदूर, बेरोजगारी, बंद होते कारखाने, करोड़ों शिक्षित बेरोजगार, अशिक्षा, मंहगी होती उच्च शिक्षा, आर्थिक असमानता, स्वास्थ्य, उर्जा संकट, पेट्रोल के दाम यातायात इन सबके बारे में आपकी नीति घोषित होना चाहिए। आर्थिक नीति, विदेश नीति, प्रजातंत्र, लोकतंत्र, गणतंत्र, जनतंत्र, पंूजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, तानाशाही ये शब्द दुनिया में यूं ही नहीं हैं इन सबका मायने है।
बाबा अभी बहुत दूर जाना है। .........................................................सुखनवर

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