सनसनी के थोक व्यापारी
कलमाडी जेल पंहुच गये हैं। कलमाडी खेल से जुड़े हैं। तो उनमें जेल जाते हुए भी खिलाड़ी भाव है। एकदम उसी तरह की चाल है जो पहलवान की अखाड़े जाते समय होती है। हाथ में एक ब्रीफकेस है। जब कोई महत्वपूर्ण आदमी जेल जाता है तो सिपाही सब इंस्पेक्टर आदि की बन आती है। वो वी आई पी को यूं पकड़ते हैं जैसे यदि ये न पकड़ेंगे तो वो भाग खड़ा होगा। कोई हाथ पकड़े है तो कोई कंधा तो कोई गर्दन। खैर कलमाडी के साथ फिर भी काफी सज्जनता का बर्ताव हुआ। जब से खेल की तैयारी शुरू हुई थी तब से सारे चैनल वाले खेल में भ्रष्टाचार पर अलख जगाए हुए थे। फिर खेल हो गए तो खेल की तारीफ करना पड़ी। जब खेल खत्म हो गए तो फिर वापस राग कलमाडी गाया जाने लगा। उसके बावजूद कलमाडी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। मीडिया काफी निराश था। मीडिया को आदत पड़ चुकी है। जिसे वो चोर कह दे उसे सजा होना ही चाहिए। इसी साध्य का दूसरा चरण है कि जो सरकार में है या जो किसी काम की जिम्मेदारी सम्हाल रहा है उसे चोर कहा जाए और दर्शक को समझाया जाए कि देखो ये सब चोर हैं बस हम भर साहूकार हैं। सरकार को यह प्रयोग करके देख लेना चाहिए कि एक एक दिन के लिए इन्हें किसी काम की जिम्मेदारी सौंप दी जाए और कहा जाए कि आज शाम को तुमसे हम लोग सीखेंगे कि काम कैसे करना चाहिए। ये चैनल वाले हर काम के विशेषज्ञ हैं। तब पता चल पायेगा कि ये 20 25 साल के छोकरे कितने पानी में हैं। इनकी मजबूरी ये है कि इन्हें सनसनी चाहिए। इन्हें पूरे समय हत्या, बलात्कार, घूस, भ्रष्टाचार, स्टिंग आपरेशन जैसी चीजों का वियाग्रा चाहिए। इसके बिना इनका चैनल नकारा हो जाएगा। इसीलिए कोई बहुत सीधी बात कहता है तो ये उसे उलट पलट कर तिरछी बना देते हैं। जब कोई इनके मूर्खतापूर्ण प्रश्न पर इन्हें डपट देता है तो ये चीखते हैं कि हमारे सवालों से ये बौखला गये। शीला दीक्षित दो बार चुनाव जीत चुकी हैं। दिल्ली बी जे पी का गढ़ रहा है। पाकिस्तान से आए हिन्दू व्यापारियों का गढ़। पर शीला दीक्षित यहां लगातार सरकार चला रही हैं। इसीलिए चैनलों की आंख की किरकिरी हैं। इनके हर बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है। अभी खेलों के मामले में भी इन चैनलों का अभियान यही है कि शीला दीक्षित कहीं तो फंस जाएं। एक महिला दिल्ली जैसी राजधानी में सफलतापूर्वक सरकार चला रही है तो उसका साथ देने के बजाए उसी के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं।
दरअसल शिकायत इस बात की है कि जनता को समाचार मिलने चाहिए। उसका विश्लेषण जनता स्वयं करेगी। यदि आपको यह लगता है कि आपको ही विश्लेषण ही करना है तो उसके लिए अलग से प्रोग्राम बनाएं मगर समाचार तो बिना लागलपेट के दिखाएं। मीडिया जनशिक्षण का माध्यम है। जनता को मीडिया के माध्यम से सचाई पता चलना चाहिए। मगर................
तो एंकर और एंकरनियां बहुत ही उत्तेजित हैं। सफेद बाल वाले आशुतोष जी तो कुर्सी से उछल उछल पड़ रहे हैं। कलमाडी को हमने गिरफ्तार करवाया। हम न होते तो अंदर न हो पाते। दूसरे चैनल वाले विद्वान एंकर तो एक छड़ी लेकर केक काटकाटकर समझाने चले थे कि अठारह हजार करोड़ रूपये कैसे खर्च हुए पर कुल दो हजार करोड़ रूपये का हिसाब दे पाये। बाकी बता भी नहीं पाये कि कहां खर्च हुआ। कोई ये समझाने को खाली नहीं है कि काम होगा तो खर्च होगा। बड़ा काम होगा तो बड़ा खर्च होगा। कोई काम होगा तो उसका ठेका होगा। कोई ठेका लेगा और कोई न कोई किसी न किसी को ठेका देगा। यही प्रक्रिया है चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो। मगर एंकरों को इससे क्या। यदि इतने साधु तरीके से समझाने लगेंगे तो इनका चैनल कौन देखेगा। इसीलिए सबको चोर कहो। एंकरों की शिकायत ये थी कि हमारे कहने के बावजूद कलमाडी को इतने दिन बाद क्यों गिरफ्तार किया गया। जब बैलगाड़ी चलती है तो बैलगाड़ी वाला अपना कुत्ता भी साथ रख लेता है। ये कुत्ता बैलगाड़ी के नीचे नीचे चलता है। बीच बीच में भांेक लेता है। कुछ देर तक चलने के बाद उसे ये गुमान हो जाता है कि बैलगाड़ी वही खींच रहा है। बैल साले हरामखोर हैं। कोई काम नहीं करते। मैं अकेला बिचारा भोंकता भी हूं और गाड़ी भी खींचता हूं।
एंकरों को एक राग और है कि वो देश की आवाज हैं। जब दिल्ली में लाखांे मेहनतकश मार्च करते हैं तो ये चैनलों के लिए कोई खबर नहीं होती। मगर राखी सावंत इनके लिए देश हो जाती है। उस पर घंटो खर्च हो जाते हैं। सैकड़ों किलोमीटर दूर किसी खेत में किसी कारखाने में कोई मेहनतकश देश के लिए कुछ गढ़ रहा है। समाचार वहां बन रहा है। बशर्ते कि आपकी आंखे और कान वहां तक पंहुचें। ..............................................................सुखनवर
Wednesday, May 4, 2011
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